सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि वह जनहित के मामलों में कोर्ट के आदेशों की सीमा तय करने पर विचार करेगा। इलाहाबाद हाईकोर्ट की ओर से उत्तर प्रदेश की स्वास्थ्य सेवा को ‘राम भरोसे’ बताने वाले मामले में SC ने यह टिप्पणी की। जस्टिस विनीत शरण और दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने राज्य सरकार की याचिका पर पहले ही 21 मई काे आदेश पर राेक लगा दी थी।
बेंच ने बुधवार काे सुनवाई के दाैरान सालीसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि आप इस मामले में दिए गए सभी आदेशों को मिलाकर हमारे समक्ष रखें। हमें जनहित के मामलों में दिए जाने वाले कोर्ट के आदेशों की सीमा तय करने पर विचार करना होगा। हम हाईकोर्ट की चिंता को समझते हैं। लेकिन अदालतों को भी कुछ संयम रखना चाहिए। न कि ऐसे आदेश पारित करें, जिन्हें लागू करना मुश्किल हो। भले ही हाईकोर्ट का उद्देश्य सबके प्रति न्याय का था, परंतु हमें सीमा का आदर करना होगा।
अधिकार क्षेत्र को लेकर जस्टिस माहेश्वरी की टिप्पणी
जस्टिस माहेश्वरी ने कहा कि सवाल यह है कि क्या यह वह अधिकार क्षेत्र है, जहां अदालतों को काम करना चाहिए? व्यवहारिक होने पर भी यह सवाल कार्यपालिका के लिए निश्चित कर दिया गया है और जब संकट का समय होता है, तब हर किसी को सावधानी से आगे बढ़ना चाहिए। इस बात का ध्यान रखा जाना बेहद आवश्यक है कि कौन सा कार्य किसके द्वारा किया जाना है।
आदेश काे रद्द करना जरूरी
जस्टिस शरण ने कहा कि हम मानते हैं कि हाईकोर्ट का आदेश अव्यवहारिक था। हाईकोर्ट स्थानीय कंपनियों से वैक्सीन तैयार कराने और उनका निर्माण करने के लिए कैसे कह सकती है? ऐसे निर्देश कैसे दिए जा सकते हैं? उन्होंने यूपी सरकार से पूछा कि क्या औपचारिक रूप से हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करना जरूरी है? मेहता ने कहा कि अगर ऐसा नहीं किया गया तो भविष्य में यह फैसला अन्य मामलों में परेशानी खड़ी करेगा।
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