राजनीति को नरेश पटेल की NO:पाटीदार समाज के नेता का राजनीति में आने से साफ इंकार, 6 महीने से जारी अटकलों का अंत

राजकोटएक वर्ष पहले
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तीनों दल (बीजेपी, कांग्रेस और आप) उन्हें अपने पाले में लाने की कोशिशों में लगे हुए थे। - Dainik Bhaskar
तीनों दल (बीजेपी, कांग्रेस और आप) उन्हें अपने पाले में लाने की कोशिशों में लगे हुए थे।

आखिरकार पाटीदार समाज के नेता नरेश पटेल के सियासी सफर के शुरुआत को लेकर जारी अटकलों का दौर आज खत्म हो गया। नरेश पटेल ने राजकोट में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में राजनीति में आने से साफ इंकार कर दिया। इसे भी कांग्रेस के लिए एक झटका माना जा सकता है। क्योंकि हार्दिक पटेल के बीजेपी में जाने के बाद इसी की चर्चा हो रही थी कि नरेश पटेल कांग्रेस जॉइन करेंगे।

पाटीदार समाज में जबरदस्त वर्चस्व
नरेश पटेल भले ही सक्रिय राजनीति में न रहे हों, लेकिन पिछले एक दशक में उनके नाम की खासी चर्चा रही है। खोडलधाम पर भव्य मंदिर के निर्माण को लेकर अग्रणी रहे नरेश पटेल का पाटीदार समाज में जबरदस्त वर्चस्व है। नरेश पटेल जिस पाटीदार समुदाय के नेता हैं वह गुजरात की राजनीति में हमेशा से निर्णायक भूमिका में रहा है। लेउवा पटेल, सौराष्ट्र और कच्छ के इलाके में ज्यादा, राजकोट, जामनगर, अमरेली, भावनगर, जूनागढ़, पोरबंदर, सुरेंद्रनगर जिलों में बड़ी संख्या में पाटीदार समाज के लोग रहते हैं।

नरेश पटेल की सौराष्ट्र की 35 से ज्यादा सीटों पर उनकी भूमिका निर्णायक रहती है।
नरेश पटेल की सौराष्ट्र की 35 से ज्यादा सीटों पर उनकी भूमिका निर्णायक रहती है।

तीनों दल अपने पाले में लाना चाहते थे
अबसे करीब 6 महीने पहले जब नरेश पटेल की राजनीतिक शुरुआत की चर्चा हई तो सबसे पहले उनके बीजेपी में शामिल होने का बाजार गर्माया। इसी दौरान दिल्ली में उनकी केजरीवाल से मुलाकात हुई तो चर्चा होने लगी कि वे आप पार्टी के सीएम कैंडिडेट हो सकते हैं। इसके अलावा गुजरात की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस भी नरेश पटेल को अपने साथ लाने के प्रयास में थी। गुजरात कांग्रेस के कई बड़े नेता उनसे संपर्क कर चुके थे।

सौराष्ट्र के अलावा सूरत में भी नरेश पटेल का प्रभुत्व
नरेश पटेल सिर्फ बड़े पाटीदार नेता नहीं हैं, बल्कि सौराष्ट्र की 35 से ज्यादा सीटों पर उनकी भूमिका निर्णायक रहती है। इसके अलावा सूरत की कई सीटों पर भी उनका खासा असर है। दरअसल, नरेश लेउआ पटेल समाज से हैं, जिनकी गुजरात में अच्छी खासी तादात है। ऐसे में उनका किसी भी पार्टी के साथ जुड़ना वोटों के समीकरण को बदल सकता था।

नरेश पटेल भले ही सक्रिय राजनीति में न रहे हों, लेकिन पिछले एक दशक से उनके नाम की खासी चर्चा रही है।
नरेश पटेल भले ही सक्रिय राजनीति में न रहे हों, लेकिन पिछले एक दशक से उनके नाम की खासी चर्चा रही है।

चुनावों में निर्णायक रहा है पाटीदार समाज का वोट
नरेश पटेल भले ही सक्रिय राजनीति में न रहे हों, लेकिन पिछले एक दशक में उनके नाम की खासी चर्चा रही है। खोडलधाम पर भव्य मंदिर के निर्माण को लेकर अग्रणी रहे नरेश पटेल का पाटीदार समाज में जबरदस्त वर्चस्व है। नरेश पटेल जिस पाटीदार समुदाय के नेता हैं वह गुजरात की राजनीति में हमेशा से निर्णायक भूमिका में रहा है। लेउवा पटेल, सौराष्ट्र और कच्छ के इलाके में ज्यादा, राजकोट, जामनगर, अमरेली, भावनगर, जूनागढ़, पोरबंदर, सुरेंद्रनगर जिलों में बड़ी संख्या में पाटीदार समाज के लोग रहते हैं।

नरेश पटेल ने कराया था सर्वे
मिली जानकारी के अनुसार नरेश पटेल ने अपने समाज के बीच भी एक सर्वे करवाया था। उस सर्वे में वे यही जानने का प्रयास कर रहे थे कि उन्हें राजनीति में कदम रखना चाहिए या नहीं? कहा जा रहा है कि सर्वे के नतीजों में साफ कर दिया गया कि नरेश पटेल को राजनीति से दूर रहना चाहिए और इसलिए आज उन्होंने सारी अटकलों पर पूर्ण विराम लगा दिया।

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