जर्मनी में भारतीय पति-पत्नी का दर्द:17 महीने की बिटिया 10 महीने से सरकार के कब्जे में, भारतीय दूतावास भी मदद नहीं कर पाया

अहमदाबाद/बर्लिनएक वर्ष पहले
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जर्मनी में रहने वाला गुजरात का कपल 10 महीने से बेटी को दुलारने के लिए तरस रहा है। इनकी 17 महीने की बेटी जर्मन प्रोटेक्शन अथॉरिटी के पास है। माता-पिता को उससे मिलने की इजाजत नहीं है। पेरेंट्स लगातार अथॉरिटी के अफसरों से गुहार लगा रहे हैं। भारतीय दूतावास से भी संपर्क किया, लेकिन अब तक मदद नहीं मिली।

बच्ची के माता-पिता (भावेश और धारा शाह) को ‘फिट टू बी पेरेंट्स’ सर्टिफिकेट लाने को कहा गया है। यह सर्टिफिकेट जर्मनी का ही एक डिपार्टमेंट देगा। बच्ची एक दुर्घटना की वजह से जर्मन प्रोटेक्शन अथॉरिटी के पास है। इस मामले को विस्तार से समझते हैं।

क्या है मामला?
भावेश सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं, जबकि धारा हाउस वाइफ हैं। 2018 से बर्लिन में जॉब कर रहे हैं। 2021 में बेटी का जन्म हुआ। 10 महीने पहले बिटिया के नाना-नानी नातिन से मिलने पहुंचे। एक दिन बच्ची के प्राइवेट पार्ट में किसी वजह से चोट लगी। खून बहने लगा। धारा उसे लेकर लोकल हॉस्पिटल गईं। डॉक्टरों ने उनसे कहा कि बच्चों में इस तरह की चोट सामान्य है।

इसके बाद धारा बेटी को घर ले आईं। दूसरे दिन भी ब्लीडिंग नहीं रुकी तो वो बच्ची को फिर हॉस्पिटल लेकर गईं। अस्पताल के स्टाफ ने चाइल्ड प्रोटेक्शन टीम को मामले की जानकारी दी। इसके अफसरों को पहली नजर में मामला सेक्शुअल एब्यूज का लगा। बच्ची को इसी डिपार्टमेंट के हवाले कर दिया गया। खास बात यह है कि जांच में यौन उत्पीड़न की बात साबित नहीं हुई।

फरवरी 2021 में हुआ था बच्ची का जन्म। भावेश और धारा के साथ बेटी।
फरवरी 2021 में हुआ था बच्ची का जन्म। भावेश और धारा के साथ बेटी।

अब 'फिट टू बी पेरेंट्स' के सर्टिफिकेट की मांग
सेक्शुअल एब्यूज की बात साबित न होने के बावजूद बच्ची को भावेश और धारा के हवाले नहीं किया गया। उनसे साबित करने को कहा गया कि वे बच्ची को पालने के काबिल हैं। इसके लिए ‘फिट टू बी पेरेंट्स’ सर्टिफिकेट लाना होता है। धारा-भावेश इस सर्टिफिकेट को पाने के लिए लीगल अथॉरिटी के दो सेशन अटैंड कर चुके हैं, लेकिन 'फिट टू बी पेरेंट्स' की लीगल प्रोसेस अब तक खत्म नहीं हुई है।

मेरी बेटी का क्या कसूर...
धारा कहती हैं- मेरी बेटी सिर्फ 17 महीने की है। आखिर उसकी क्या गलती है। उसे मां-बाप से दूर रहने की सजा क्यों दी जा रही है। इससे बड़ा दुख और क्या होगा कि हमारे होते हुए भी बेटी अनाथ की तरह जी रही है। 10 महीने से उसे प्यार करना तो दूर, हमें उसकी एक झलक देखने तक का मौका नहीं दिया गया है। उसे मां के दूध और लाड़-प्यार की जरूरत है, लेकिन वह जर्मन बाल संरक्षण प्राधिकरण की हिरासत में है।

बेटी की कस्टडी के लिए बर्लिन की सिविल कोर्ट में केस भी चल रहा है।
बेटी की कस्टडी के लिए बर्लिन की सिविल कोर्ट में केस भी चल रहा है।

एक ही देश में होते हुए भी मिल नहीं सकते?
धारा की मां कहती हैं- पूरे परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है। धारा को एक मिनट का भी चैन नहीं है। वो हर समय बेटी को देखने की गुहार लगाती है। आखिर ये कैसा कानून है कि एक देश में रहते हुए भी मासूम बच्ची को उसके माता-पिता से मिलने नहीं दिया जा रहा है। अगर अथॉरिटी माता-पिता की गलती मानती है तो बेटी को हमें सौंप दें। हम उसकी देखभाल कर लेंगे।

भारतीय दूतावास से लगाई गुहार
परिवार जर्मनी में भारतीय दूतावास से भी गुहार लगा चुका है। उन्होंने इस मामले में सहयोग करने का वादा किया था, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पाई। बेटी को वापस दिलाने के लिए सिविल कोर्ट में केस भी दर्ज कराया गया है। वहां कानूनी लड़ाई जारी है।