गरबा की तरह गुजरात में हर वर्ष सावन के महीने में लोग राजकोट के लोकमेले का इंतजार करते हैं। लेकिन, इस बार कोरोना महामारी के चलते राजकोट में सौराष्ट्र का प्रसिद्ध लोकमेला आयोजित नहीं किया जाएगा। पांच दिनों तक चलने वाला यह मेला सप्तमी-अष्टमी को हर वर्ष आयोजित होता है। इस बार यह अगस्त के पहले-दूसरे सप्ताह में आयोजित होना था। इस संबंध में जिला कलेक्टर की ओर से आधिकारिक रूप से घोषणा की गई है कि हाल की परिस्थिति को देखते हुए कोई भी मेला आयोजित करने पर मनाही है।
मेले से मिलता है करीब 2 लाख लोगों को रोजगार
राजकोट में पांच दिनों तक चलने वाले इस मेले में सौराष्ट्र से ही करीब दस लाख लोग पहुंचते हैं। इसके अलावा इससे प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से करीब 2 लाख लोगों को रोजगार मिलता था। मेले की तैयारी में लोग महीनों पहले से जुट जाया करते थे। इसमें हथकरघा से लेकर खिलौने बनाने वाले तक शामिल हैं। वहीं, मेले में लगने वाले राइड्स चालकों को ही इससे 30 से 40 लाख रुपए का नुकसान हुआ है।
ब्याज से पैसे लेकर राइड्स का मैंटेनेंस कर रहे हैं
राजकोट के मेला में प्रतिवर्ष राइड्स लगाने वाले जाकिरभाई बताते हैं कि लॉकडाउन के चलते इस बार कहीं भी मेला आयोजित नहीं हुआ है। लॉकडाउन से पहले महाराष्ट्र के मेले में उन्होंने राइड्स लगाई थीं। लॉकडाउन के बाद डबल किराया देकर राइड्स महाराष्ट्र से गुजरात बुलवाईं। सोचा था अगस्त तक हालात ठीक हो जाएंगे तो राजकोट के लोक मेला में राइड्स लगाएंगे। लेकिन, अब सबकुछ चौपट हो गया। हालत ऐसी हो चली है कि अब ब्याज से पैसा लेकर राइड्स का मेंटैनेंस करना पड़ रहा है। जाकिरभाई बताते हैं कि उनकी राइड्स में करीब 75 लोग काम करते हैं। हर साल इससे ही 30-40 लाख रुपए की कमाई होती थी, जिससे हम 70-80 लोगों के कई महीनों के खर्च के अलावा राइड्स का साल भर का मैटेनेंस भी निकल जाता था।
मेले में 10 करोड़ तक के खिलौने बिक जाते हैं
खिलौनों के रिटेलर व्यापारी कमलेशभाई दोशी बताते हैं कि पांच दिन के इस मेले में ही करीब 10 करोड़ रुपए तक के खिलौने बिक जाते हैं। इससे हजारों लोगों को रोजगार मिलता है। इस बार लॉकडाउन के चलते खिलौनों का पूरा बिजनेस चौपट हो गया है। मेले से उम्मीद थी और अब वह भी खत्म हो गई। मेले के अलावा इस बार जन्माष्टमी के सार्वजनिक आयोजनों पर भी प्रतिबंध है। इससे भी खिलौनों का मार्केट 50 फीसदी तक ही पहुंचना बड़ी बात है।
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