गुजरात विधानसभा चुनाव की घोषणा होने के बाद प्रदेशभर में चुनावी सरगर्मियों का दौर शुरू हो गया है, लेकिन मोरबी मौन है। यहां चुनाव की कोई बात नहीं होती। एक साथ 135 मौतों की सिसकियां चुनावी सरगर्मियों पर भारी पड़ रही हैं।
शहर के नेहरू गेट चौक, ग्रीन चौक, बापा सीताराम चौक, पानी की रेहड़ी से लेकर चाय की केतली... जहां भी जाओ, वहां सिर्फ हादसे का दर्द है। ऐसे समय में राजनीतिक दल किस मुंह से लोगों के पास वोट मांगने जाएं, इसको लेकर उलझन में हैं। यहां प्रचार में किस मुद्दे को उठाएं, इस पर भी अजीब सी स्थिति बनी हुई है।
राजनीतिक दलों को डर है कि वोट मांगते समय लोगों की नाराजगी झेलनी पड़ेगी। मोरबी माणिया विस क्षेत्र में ही केबल ब्रिज त्रासदी हुई। यह सीट भाजपा का गढ़ रही है। 1979 के मच्छ हादसे में मोरबी के 1400 लोगों की जान चली गई थी। उसके बाद 2001 का भयावह भूकंप और अब 30 अक्टूबर को केबल ब्रिज टूटने से मोरबी में त्रासदी का एक और अध्याय लिख दिया गया। लोगों में अपनों को खोने की लाचारी दिख रही है। न्याय की गुहार लगाता मोरबी चुनाव के लिए तैयार नहीं है।
दोबारा उठने की कोशिश कर रहा शहर
हादसे के बाद स्तब्ध हुआ शहर फिर से उठने की कोशिश कर रहा है। एक सप्ताह बाद धीरे-धीरे मोरी शहर के बाजार खुलने लगे हैं। लोग फिर से खरीदी करने के लिए आने लगे हैं, पर हादसे से पहले वाली रौनक नहीं है। हर ओर उदासी है। बता दें कि मोरबी के बाजार में एक सप्ताह तक सन्नाटा पसरा रहा था।
हाईकोर्ट ने मोरबी हादसे का स्वत: संज्ञान लिया
मोरबी केबल ब्रिज हादसे का गुजरात हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया है। हाईकोर्ट ने सरकार से इस मामले में अब तक उठाए गए कदमों पर रिपोर्ट मांगी है। कोर्ट ने 10 दिन में रिपोर्ट सौंपने के आदेश दिए हैं। अगली सुनवाई 14 नवंबर को होगी। गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री शंकर सिंह वाघेला ने हाईकोर्ट को पत्र लिखकर हादसे का स्वत: संज्ञान लेने की गुहार लगाई थी।
मोरबी का राजनीतिक माहौल बदला
मोरबी केबल ब्रिज हादसे से पहले भाजपा की ओर वातावरण दिखाई दे रहा था। लेकिन अब माहौल बिल्कुल बदल गया है। यहां अभी भाजपा का ही विधायक है, लेकिन कोई भी राजनीतिक दल अपने प्रत्याशी के लिए लोगों से वोट मांगने आगे नहीं आ रहा है। लोगों में दर्द के साथ गुस्सा भी भरा हुआ है।
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