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कुरुक्षेत्र में करीब साढ़े पांच साल से अपने निजी खर्च व अपनी जमीन पर घायल-बीमार गोवंश के लिए गोशाला बनाकर सेवा कर रहे गोभक्त का प्रशासन व सरकार की ओर से कोई सहयोग न मिलने के कारण अब गोशाला बंद करने की नौबत आ गई है। गोभक्त सेक्टर-दो निवासी कुलवंत सिंह का कहना है, गोशाला को जीवित रखने के लिए दस से 12 घंटे गोशाला की देखरेख कर रहे हैं। साथ में एक कर्मचारी का मेहनताना से लेकर गोशाला के खर्च उठा रहे।
आजतक न तो कोई ऐसा समाजसेवी सामने आया जो गोशाला चलाने में सहयोग करे और न ही प्रशासन ने सुध ली। हर माह डेढ़ से दो लाख रुपए का जो खर्च आ रहा है, वह खुद वहन कर रहा है। अब उसे डिस्क प्रॉब्लम व प्रशासन के सहयोग न मिलने पर गोशाला बंद करने का फैसला लेना पड़ रहा है। डिस्क प्रॉब्लम के कारण अब गोशाला में कामकाज नहीं कर पा रहा है।
गोशाला को बंद करने का लिया फैसला: कुलवंत ने बताया पलवल स्थित बालाजी गोशाला को अपनी निजी जगह करीब दो हजार गज में 20 से 25 लाख रुपए खर्च कर 2015 में गोशाला रजिस्टर्ड करवाई थी। गोशाला के सदस्यों के तौर पर कुछ अन्य लोग भी जुड़े थे, लेकिन समय बीतने के साथ-साथ अब अकेले ही गोशाला में सेवा से लेकर पूरा खर्च वहन कर रहा है। उन्होंने बताया कि गोशाला में बोर्ड लगाया है कि न तो किसी भी गाय का यहां दूध निकाला जाता है, न ही गोवंश की खरीद-फरोख्त गोशाला में होती है।
गोमाता सड़कों पर न भटके इसी सोच के साथ उन्होंने सेक्टर एरिया से सटे अपने प्लाट में गोशाला खोली थी। वे आज भी गोशाला को जीवित रखना चाहते हैं, लेकिन हालात के कारण गोशाला बंद करने का फैसला लेना पड़ा।
गोशाला को नहीं होने देंग बंद: विधायक: विधायक सुभाष सुधा का कहना है, उनके संज्ञान में नहीं है, कि कोई व्यक्ति अपने स्तर पर गोशाला का संचालन कर रहा है और अब गोशाला बंद होने की कगार पर है। उन्होंने कहा गोशाला संचालक उनसे संपर्क करेगा, तो वे गोशाला को किसी सूरत में बंद नहीं होने देंगे। शहर में अन्य गोशालाओं को भी प्रशासन सहयोग दे रहा है। प्रशासन की ओर से हर संभव मदद की जाएगी।
ट्रेनिंग लेकर चलाएं गोशाला: चेयरमैन: उधर हरियाणा गो सेवा आयोग के चेयरमैन सरवन कुमार गर्ग का कहना है। गोवंश के संरक्षण-संवर्धन के लिए प्रदेश सरकार द्वारा कई योजनाएं बनाई है। गोशाला का संचालन करने के लिए आयोग की ओर से ट्रेनिंग करवाई जाती है। जिससे गोशाला प्रबंधन इस तरीके से चलता है, जिससे गोशालाओं का खर्च खुद गोशालाएं उठा सकें। ट्रेनिंग में गोबर से खाद बनाने, और गोवंश के नस्ल सुधारीकरण के लिए इंजेक्शन लगाने जिससे बेहतर नस्ल की बछड़ियां पैदा होगी और दूध भी गोशालाओं में हो, जिससे पूरा खर्च गोशाला खुद उठा सके। यह व्यवस्था रहती है। वे खुद भी गोशाला का निरीक्षण कर ऐसी व्यवस्था बनवाने का प्रयास करेंगे।
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