सरदार जस्सा सिंह अहलुवालिया का 303वीं जयंती मनाई गई। नारायणगढ़ में अहलुवालिया बिरादरी के लोगों ने महाराजा जस्सा सिंह की प्रतिमा को फूल मालाएं पहनाकर श्रद्वांजलि दी। जस्सा सिंह कपूरथला के राजा थे और नारायणगढ़ के बहुत से गांव कपूरथला रियासत का हिस्सा रहे हैं। महाराजा ने टोका साहब गुरुद्वारा के दर्शन भी किए थे, जहां उनके नाम पर एक कुआं भी है। अहलुवालिया का जन्म 3 मई 1718 को लाहौर के अाहलु गांव में हुआ था। मास्टर जरनैल सिंह बताते हैं कि महाराजा जस्सा सिंह कपूरथला रियासत के राजा थे। उन्होंने नारायणगढ़ को मुगल शासकों से जीत कर अपनी रियासत में शामिल कर लिया था। इसके बाद जस्सा सिंह अहलुवालिया के वंशज फतेह सिंह अहलुवालिया नारायणगढ़ के राजा रहे। नारायणगढ़ सहित 57 गांव कपूरथला रियासत का हिस्सा थे। जस्सा सिंह उत्तर प्रदेश की कई रियासतों पर विजय प्राप्त करने के बाद नारायणगढ़ आए थे।
किला आज भी है माैजूद
-1857 की क्रांति से पहले दो एंग्लो सिक्ख लड़ाइयां हुईं। जिसमें लाडवा के राजा और नारायणगढ़ के राजा फतेह सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। दोनों राजाओं की इस लड़ाई में हार हुई और इस हार की बहुत बड़ी कीमत फतेह सिंह और लाडवा के राजा को चुकानी पड़ी थी। अंग्रेजों ने नारायणगढ़ के 57 गांव जुर्माने के तौर पर अपने राज में शामिल कर लिए थे। नारायणगढ़ का किला आज भी मौजूद है। इस किले में अब नारायणगढ़ का पुलिस थाना और सीआईए स्टाफ मौजूद हैं।
1783 में दिल्ली पर किया कब्जा
मास्टर जरनैल सिंह बताते हैं कि महाराजा जस्सा सिंह ने विजय अभियान को जारी रखते हुए बाबा बघेल सिंह और जस्सा सिंह रामगढ़िया की अगुवाई में 40 हजार सैनिकों के साथ दिल्ली में दाखिल हो गए। सेना को तीन टुकड़ों में बांट दिया गया 5000 सैनिक बुराड़ी घाट पर, 5000 सैनिक अजमेरी गेट और 30000 सैनिक सब्जीमंडी व कश्मीरी गेट के बीच लगाया गया। जिसे आजकल तीस हजारी के नाम से जाना जाता है। तीस हजारी को यह नाम लाल किले पर आक्रमण करने वाली 30 हजार सिख सेना के कारण दिया गया है। इसी सेना ने बादशाह शाह आलम को पराजित किया था। माेरी गेट से उन्हाेंने सुराग करके लाल किला पर हमला किया था। उसके बाद जीत की मिठाई जहां बांटी थी उसे मिठाई पुल के नाम से जाना जाता है।
उनके नाम से बन रही है आईटीआई
हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग के सदस्य विजयपाल सिंह अहलुवालिया ने बताया कि पूरे हरियाणा में लगभग दाे से तीन लाख अहलुवालिया हैं। 5 मई 2017 में जस्सा सिंह आहलुवालिया के 300 सालां पर जींद के सफीदों के पास गांव खेड़ा खेमावती में महाराजा जस्सा सिंह के नाम पर आईटीआई बनने का एलान हुआ था। अब 8 कराेड़ के बजट में इस आईटीआई का निर्माण किया जा रहा है। इसके अलावा सफीदाें, पंचकूला और भिवानी में इनके नाम पर चाैक का निर्माण किया जाना है। सफीदाें में चाैक का शिलान्यास हाे चुका है।
अमृतसर में हैं समाधि:
जस्सा सिंह अहलुवालिया की समाधि गाेल्डन टैंपल के अंदर बनी हुई है। बेटी बचाअाे-बेटी पढ़ाअाे का नारा अब दिया जाता है लेकिन बाबा जस्सा सिंह ने 17वीं शताब्दी में ही इसे अपने जीवन में धारण कर लिया था। उनकी दाे बेटियां थी। वे चाहते ताे दाेबारा विवाह कर सकते थे लेकिन उनके अनुसार बेटी ही बड़ा धन सामान थी।
आज भी सुरक्षित हैं उनके शस्त्र
बाबा जस्सा सिंह अहलुवालिया चाैथे जत्थेदार थे। वर्तमान में 14वें बाबा बलबीर सिंह जत्थेदार हैं। पटियाला में उनके पास जस्सा सिंह के शस्त्र आज भी सुरक्षित पड़े हैं।
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