देश की आजादी के लिए 1857 की क्रांति में बहुत बड़ा बलिदान व कुर्बानी देने वाले भिवानी के रोहणात गांव में धरने के दौरान मरे ग्रामीण का तीसरे दिन भी अंतिम संस्कार नहीं किया जा सका। ग्रामीण तीन दिन से शव लेकर धरने पर बैठे हैं, लेकिन प्रशासन चुप्पी तोड़ने को तैयार नहीं। ग्रामीणों में इससे रोष है।
अग्रेजों के सहे जुलम
बता दें कि अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ सबसे पहले जब 1857 की क्रांति शुरू हुई तो भिवानी ज़िला के रोहणात गांव ने सबसे पहले अंग्रेजों के खिलाफ जंग शुरू की। जिसके विरोध में अंग्रेज़ सरकार ने रोहणात गांव के लोगों को कुचलना शुरू किया। लोगों पर बुलडोज़र तक चलाया गया। पूरे गांव व क्रांतिकारियों पर तोपें चलाई गई और गांव की 20 हजार 656 बीघा ज़मीन को 8100 रुपए में नीलाम कर दिया गया।
इस मांग पर भी अमल नहीं
1947 में देश आजाद हुआ। अलग-अलग सरकारें आई, पर रोहणात गांव को आज तक ना तो शहीद गाव का दर्जा मिला और न ही अपनी ज़मीन मिली। संयुक्त पंजाब के समय तत्कालीन सीएम प्रताप कैरो ने रोहणात गांव को शहीद का दर्जा देने और साढ़े 12 एकड़ के 57 प्लॉट हिसार के बिहड़ में देने की घोषणा की थी। यह अभी भी अधूरी है।। इस गांव में आजादी के बाद कभी तिरंगा नहीं फहराया।
धरने पर हुई संतलाल की मौत
देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा था तो रोहणात गांव के लोगों ने अपने गांव में धरना शुरू किया। ग्रामीणों को लगा कि अब उनकी मांग पूरी हो सकती है। पर उनकी सुनने कोई नहीं आया। उल्टा 17 अगस्त को धरने पर 59 वर्षीय संतलाल की हार्ट अटैक होने से मौत हो गई। अब ग्रामीण संतलाल के शव को धरने पर रख कर तीन दिन से धरना दे रहे हैं। पर बड़ी हैरानी की बात है कि ज़िला प्रशासन कोई समाधान करने या शव का अंतिम संस्कार करवाने में लगातार नाकाम है।
ग्रामीणों की ये तीन मांगे
ग्रामीण धर्मबीर फ़ौजी ने बताया कि उनकी तीन मांगे है। गांव को शहीद का दर्जा दिया जाए, कैरो प्रताप की घोषणा पूरी की जाए या उनकी ज़मीन उन्हें दिलाई जाए और मृतक संतलाल के परिवार को एक करोड़ रुपए की आर्थिक सहायता देकर उसके एक बच्चे को सरकारी नौकरी दी जाए। चेतावनी दी है मांग पूरी होने तक ना शव का अंतिम संस्कार होगा।
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