दादरी पब्लिक स्कूल में जिला बाल कल्याण विभाग के तत्वावधान में आयोजित ग्रीष्मकालीन रुचिकर कक्षाओं में बच्चों द्वारा अपनी रूचियों के अनुसार अपने अंतर में छिपे हुए हुनर को निखारा जा रहा है। विशेष तौर पर बच्चों द्वारा नृत्य व संगीत की कला को खासकर पूरे उत्साह के साथ आत्मसात किया जा रहा है। इसके साथ ही समय समय पर कैंप में बच्चों की प्रतिभा को निखारने के लिए उनके बीच स्पर्धाओं का आयोजन भी विद्यालय प्रबंधन द्वारा किया जा रहा है।
विद्यालय निदेशक मुन्ना लाल गुप्ता ने कहा कि संगीत भारत की आत्मा में बसा है इसे कभी खत्म नहीं किया जा सकता वर्तमान में यह केवल मनोरंजन भर नहीं बल्कि इसके नियमित अभ्यास से कई क्षेत्र ऐसे हैं। जहां विद्यार्थी अपने भविष्य का निर्माण कर सकते हैं। संगीत व नृत्य यह दो ऐसी कलाएं हैं जो आज से नहीं बल्कि जब से मानव जीवन का अस्तित्व इस धरा पर अवतरित हुआ था। तभी से इनकी अवधारणाएं हम अपने अपने बुजुर्गों से सुनते आ रहे हैं। अपने अंदर के भावों को बाहर निकालना वह उन्हें सबके सामने प्रस्तुत करने का सशक्त माध्यम गीत व संगीत हमेशा से ही रहे हैं। चाहे विश्व की कोई भी संस्कृति हो उसने हमेशा अपनी परंपराओं को आगे ले जाने के लिए गीत व संगीत को एक सशक्त माध्यम के रूप में चुना है।
नृत्य का सीधा रिश्ता आत्मा से है। संगीत अगर आत्मा की पुकार है, तो नृत्य आत्मा की अभिव्यक्ति है, जो हमारे शरीर को विभिन्न भाव-भंगिमाओं में उद्घाटित करने के लिए मजबूर कर देता है। भाव-रस में लीन होकर जब शरीर अपने आप थिरकने लगता है, वही नृत्य हैं। मीरा की इस कृष्ण भक्ति को किसी परिचय की जरुरत नहीं है। वह कृष्ण भक्ति में इस तरह लीन रहती थीं कि उनके पदों को गाते हुए अनायास ही झूम उठती थीं। नृत्य सिर्फ किसी नृत्यांगना या अदाकार द्वारा रंगमंच पर प्रस्तुत करने तक ही सीमित रहने वाली कला नहीं है। नृत्य का सीधा रिश्ता आत्मा से है।
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