स्याहड़वा के कुएं में रेस्क्यू ऑपरेशन के तीसरे दिन सेना और एनडीआरएफ की टीमाें ने अपनी स्ट्रेटजी को बदला। बालू रेत खिसकने का रिस्क खत्म करने के लिए कुएं के चारों तरफ से करीब 100 से 150 फीट तक मिट्टी को हटाने के लिए पोकलेन मशीनों काे लगाया।
दोपहर एक बजे सेफ्टी बेल्ट पहनकर जवान कुएं में उतरे। रोपअप लिफ्टिंग के जरिए जवान द्वारा अंदर भरी मिट्टी को बाल्टी से बाहर निकालना शुरू किया। रात करीब 9 बजे 50 से 55 फीट के बीच गीली मिट्टी निकालते समय जयपाल दबा हुआ नजर आया। उसके ऊपर ईंटें व बरगा गिरा हुआ था। ऐसे में उसे बाहर निकालने से पहले बरगा व ईंटें निकालने का काम शुरू किया। मंगलवार रात करीब 11:30 बजे कुएं के अंदर मिट्टी फिर खिसक गई। करीब पांच फीट मिट्टी और भर गई। जिसकी वजह से रेक्स्यू ऑपरेशन में अभी और समय लग रहा है।।
रिस्क खत्म करने काे कुएं के चारों तरफ से मिट्टी हटाई
कुएं के पास मिट्टी हटाने के लिए खेत में बना कोठरा, रजबाहा तोड़ने के साथ पेड़ों को उखाड़ दिया। दोपहर तक नॉनस्टॉप काम चला, जिसके कारण चारों तरफ मिट्टी के पहाड़ बन गए। इन्हें दूर तक फैलाने के लिए ट्रैक्टरों का सहारा लिया। कुएं की बाकी पक्की दीवार तोड़ने के लिए 15 से 20 फीट तक खुदाई की। दीवार टूटने के बाद कुएं का मुंह करीब 20 फीट तक चौड़ा किया। दोपहर एक बजे सेना व एनडीआरएफ टीम ने कुएं में उतरने का फैसला लिया था।
उठाई मांग परिजनों को 50-50 लाख मुआवजा और नौकरी मिले
भाकियू के प्रदेशाध्यक्ष दिलबाग सिंह हुड्डा का कहना है कि बेहद दुखद घटना है। सरकार से मांग करते हैं कि दिवंगत जयपाल व जगदीश के परिजनों को 50-50 लाख रुपए मुआवजा, परिवार के एक-एक सदस्य को नौकरी दी जाए। रेस्क्यू ऑपरेशन में दिन-रात जिन ग्रामीणों ने अपने वाहनों का प्रयोग किया है, उनकी आर्थिक मदद की जाए। अभी तक जितनी खुदाई हुई है, रेस्क्यू ऑपरेशन खत्म होने के बाद गड्ढे को भरवाना होगा। ऐसा नहीं किया तो कोई बड़ा हादसा हो सकता है। इन तमाम मांगों को लेकर डीसी डॉ. प्रियंका सोनी और एसडीएम अश्वीर नैन से बात की थी, जिन्होंने हर संभव मदद का आश्वासन दिया है।
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