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कोरोनावायरस के बाद स्वास्थ्य हर किसी की प्राथमिकता में है। प्रदेश में भी हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर पर फोकस किया गया, लेकिन डॉक्टरों की बड़ी कमी है। सरकारी अस्पताल में 3250 पदों में से करीब 3 हजार डॉक्टर काम कर रहे हैं। प्राइवेट समेत प्रदेश में 14517 डॉक्टर पंजीकृत हैं, लेकिन डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइंस के अनुसार एक हजार की आबादी पर एक डॉक्टर जरूरी है।
इस हिसाब से प्रदेश को 28 हजार 600 डॉक्टरों की जरूरत है। कोरोना काल में जिला अस्पतालों में वेंटिलेटर पहुंचाए गए, लेकिन चलाने वाला नहीं है। विशेषज्ञों का कहना है कि सब सेंटर से लेकर सीएचसी-पीएचसी व जिला अस्पतालों की संख्या भी देखें तो 6800 गांवों में से आधे गांवों में तत्काल स्वास्थ्य सेवा मिल पाती है। बाकी गांवों को क्लीनिकों का सहारा लेना पड़ रहा है।
इन बीमारियों के इलाज के लिए जाना पड़ता है दूसरे प्रदेश
प्रदेश में हार्ट, न्यूरो, कैंसर और किडनी-लीवर ट्रांसप्लांट जैसी बीमारियों के इलाज के लिए मरीजों को दिल्ली, चंडीगढ़, चेन्नई जैसे शहरों की ओर रुख करना पड़ता है। इनके लिए स्पेशलिस्ट डॉक्टर अभी हमारे पास नहीं हैं।
15% परिवारों के पास है हेल्थ इंश्योरेंस, जागरूक हो रहे लोग
प्रदेश में 15% परिवारों के पास हेल्थ इंश्योरेंस हैं, जो देश के औसत 9.5% से काफी ज्यादा है। प्रदेश में करीब 60 लाख परिवार हैं, इनमें 15% यानी करीब 9 लाख ने हेल्थ इंश्योरेंस कराया हुआ है। हेल्थ इंश्योरेंस पर शहरी ज्यादा कर रहे हैं। कोरोना के बाद इंश्योरेंस कराने वालों में 3% बढ़ोतरी हुई है।
जानिए...हरियाणा में डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ की स्थिति
सरकारी अस्पतालों में 3250 पदों में 3098 पद भरे हैं। इनमें करीब 700 स्पेशलिस्ट हैं। यानी 40857 की आबादी पर एक सर्जन है। जबकि सरकारी अस्पतालों में सालाना करीब पौने तीन करोड़ से ज्यादा की ओपीडी होती है। सरकारी अस्पतालों में 10 हजार डॉक्टरों की जरूरत है। सर्विस डॉक्टर एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ. जसबीर सिंह का कहना है कि कोरोना काल में कुछ डॉक्टर भर्ती किए हैं, जो नाकाफी है।
नर्सों के 3656 पदों में से 2224 पद भरे हैं। फार्मासिस्ट के 1024 के मुकाबले 706 तो लेबोरेट्री टैक्नीशियन के 934 में 394, रेडियोग्राफर के 299 में 100 पदों पर कर्मचारी काम कर रहे हैं।
हेल्थ का इन्फ्रास्ट्रक्चर
सब सेंटर-2650 अर्बन हेल्थ सेंटर-11 पीएचसी-531 सीएचसी-128 सिविल अस्पताल-68 मेडिकल कॉलेज-12 (सरकारी-प्राइवेट)
थ्री-लेयर सिस्टम से बने हेल्थ मास्टर प्लान: आईएमए के पूर्व अध्यक्ष डॉ. प्रभाकर ने बताया कि सरकारी अस्पतालों में सेटअप सुधारने की जरूरत है। इसके लिए थ्री-लेयर सिस्टम हो। शहरों में सीएचसी-पीएचसी खोलकर वहां क्वालिफाइड डॉक्टरों की नियुक्ति की जानी चाहिए। जिला अस्पतालों में स्पेशलिस्ट की कमी को पूरा किया जाए। तीसरी लेयर में एक मेडिकल कॉलेज जिले पर होना चाहिए।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
पीपीपी मोड की पॉलिसी बदल इन्फ्रास्ट्रक्चर बढ़ाए
रोहतक पीजीआई के रिटायर्ड सीनियर प्रोफेसर डाॅ. आरएस दहिया ने कहा कि हेल्थ पॉलिसी में सुधार की जरूरत है। हर चीज पीपीपी मोड पर लाई जा रही है, जबकि इन्फ्रास्ट्रक्चर सरकार का है और कंपनियां इस्तेमाल कर रही हैं। इससे अच्छा यह रहेगा कि सरकार खुद सुधारे। प्राइवेट अस्पतालों को पैनल में शामिल किया जा रहा है। यह गलत है। जितना बिल कर्मचारियों की बीमारी के इन अस्पतालों को दिए जाते हैं, उससे सरकारी अस्पतालों में सुविधाएं बढ़ सकती हैं।
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