हरियाणा में ई-टेंडरिंग को लेकर हरियाणा सरकार ने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है। सरकार की ओर से दो टूक में बोला गया है कि पुराने प्रस्ताव पर ही बातचीत संभव हो पाएगी। हालांकि सरपंच इस पर तैयार नहीं हैं। दो दौर की वार्ता के बाद बात नहीं बन पाने के कारण सीएम से सरपंचों की मुलाकात नहीं हो पाई। सरपंचों ने भी आगे की रणनीति को लेकर ऐलान कर दिया है कि 17 मार्च को विधानसभा का घेराव तय है।
सरपंच हुए दो फाड़
बताया यह भी जा रहा है कि सरकार के पुराने प्रस्ताव को लेकर सरपंच भी दो फाड़ हो गए हैं। कुछ सरपंच सरकार के प्रस्ताव पर सहमत हैं, लेकिन कुछ अड़े हुए हैं। हालांकि अब आपसी सहमति को लेकर सरपंचों के बीच बैठकों का दौर जारी है। शाम तक सरपंचों की ओर से आगे की रणनीति को लेकर कोई खुलासा नहीं किया गया है। सरपंचों की ओर से ऐसी किसी भी संभावना से इनकार किया गया है।
आज हुई दो दौर की वार्ता
हरियाणा में ई-टेंडरिंग को लेकर सरकार और सरपंचों के बीच दो दौर की वाता हुई। पहले दौर में सीएमओ के पदाधिकारियों से सरपंच की बात हुई। दूसरे दौर के लिए डीआईजी ओपी नरवाल MLA हॉस्टल पहुंचे। हालांकि ये दोनों दौर की वार्ता सिरे नहीं चढ़ पाई। इसके बाद सरकार की ओर से स्पष्ट कर दिया गया कि पुराने प्रस्ताव पर ही अब चर्चा होगी।
17 मार्च को विस घेराव की चेतावनी
चौथे दौर की वार्ता के लिए मुख्यमंत्री के टाइम नहीं दिए जाने और सरकार की ओर से ई टेंडरिंग और राइट टू रिकॉल पर यू-टर्न से साफ मना करने पर सरपंच नाराज हो गए थे। इसके बाद सरपंचों ने 17 मार्च को विधानसभा के घेराव का ऐलान किया है। सरपंचों ने चेतावनी दी थी कि यदि सरकार के साथ किसी भी मांग पर सहमति नहीं बनी तो वह 17 मार्च को विधानसभा का घेराव करेंगे।
अब तक क्या हुआ?
9 मार्च को को मुख्यमंत्री मनोहर लाल और सरपंचों के साथ हुई मीटिंग में ज्यादातर मांगों पर सहमति बन गई थी। 10 मार्च की सुबह 9.30 बजे फिर सरपंचों के साथ बैठक होनी थी। मुख्यमंत्री ने भी कहा था कि 10 मिनट के लिए वार्ता होगी और सब कुछ ठीक हो जाएगा, लेकिन सुबह पहले प्रस्तावित कार्यक्रमों के तहत मुख्यमंत्री पहले राजभवन चले गए और बाद में करनाल पहुंच गए थे, जिसके कारण चौथे दौर की वार्ता नहीं हो सकी थी।
इन मांगों पर फंसी बात
एक तो सरकार की तरफ से साफ कर दिया गया कि राइट टू रिकॉल एक्ट को वापस नहीं लिया जाएगा। दूसरा, मुख्यमंत्री ने सरपंचों को 2 लाख की बजाए 5 लाख रुपए की पावर देने पर भी सहमति जता दी थी, लेकिन इसमें शर्त लगा दी कि सरपंच साल में केवल पांच बार ही 5 लाख की शक्ति (25 लाख) का प्रयोग कर सकेंगे, जबकि सरपंच इसे 10 मौकों (50) देने पर अड़े रहे। सुबह सरपंचों ने इसी पर फैसला करके सरकार को बताना था, लेकिन सरपंचों में इसको लेकर सहमति नहीं बन सकी।
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