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किसानों का रेल रोको आंदोलन गुरुवार को जिला में शांतिपूर्वक संपन्न हुआ। इस दौरान किसानों ने दिल्ली-बठिंडा रेलमार्ग पर 3 जगहों व जींद-पानीपत रेलवे लाइन पर सफीदों में रेलवे स्टेशन के पास ट्रैक पर धरना दिया।
दिल्ली-बठिंडा रेलवे लाइन पर किसानों ने जुलाना के समीप, बरसोला रेलवे स्टेशन के पास और नरवाना में चंडीगढ़-हिसार नेशनल हाईवे पर बने आरओबी के पास रेलवे ट्रैक पर धरना देकर 3 कृषि कानूनों के खिलाफ रोष जताया। इस दौरान यहां चाय से लेकर खाने तक का इंतजाम था।
इस दौरान दिल्ली-बठिंडा रेलमार्ग पर एक मालगाड़ी दोपहर को 12 बजकर 5 मिनट पर आई। जिसे जैजैवंती रेलवे स्टेशन के पास ही रोक दिया गया। 4 जगहों पर रेलवे ट्रैक पर किसानों द्वारा दिए गए धरने के दौरान महिलाएं काफी संख्या में उपस्थित रही। इसी दौरान किसी प्रकार कोई हो-हल्ला नहीं हुआ।
हालांकि किसानों के रेलवे ट्रैक पर दिए धरने के दौरान पुलिस आसपास में मौजूद रही। इस दौरान कोई पुलिस या प्रशासनिक अधिकारी रेलवे ट्रैक पर बैठे किसानों को समझाने के लिए नहीं पहुंचा। 4 जगहों पर किसानों ने केंद्र सरकार के खिलाफ नारेबाजी की और कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग की।
12 बजे के बाद ही बैठे, 4 बजते ही उठ लिए
जिला में 4 जगहों पर किसानों ने पूरे अनुशासन के साथ रेलवे ट्रैक पर धरना दिया। ऐलान के मुताबिक 12 बजे से पहले किसी जगह पर भी किसान रेलवे ट्रैक पर नहीं बैठे। इसी तरह से 4 बजते ही रेलवे ट्रैक को किसानों ने खाली कर दिया। कोई एक्सप्रैस गाड़ी आ जाए और शरारती तत्व किसी प्रकार की हरकत न कर दे। इसको ध्यान में रखकर पहले ही धरना स्थलों पर युवाओं को सतर्क कर दिया गया था। गांवों के युवा इस पूरी नजर रखे हुए थे।
चाय से लेकर खाने तक का किया गया प्रबंध
किसानों ने रेल ट्रैक रोकने के दौरान मौके पर धरने पर बैठे लोगों के साथ-साथ रेलवे यात्रियों के लिए भी चाय से लेकर खाने तक की व्यवस्था की हुई थी। हालांकि इस दौरान कोई यात्री गाड़ी नहीं आई। लेकिन जो भी रेलवे ट्रैक पर दिए जा रहे धरने पर पहुंच रहा था। उसको चाय पिलाई जा रही थी और खाने के लिए पूछा जा रहा था।
रेलवे ट्रैक पर दादी संग खेले पोता-पोती, ग्रामीणों ने लगाई ताश की बाजी
किसानों के रेल रोको अभियान में पुरुषों से ज्यादा महिलाओं में उत्साह दिख रहा था। दिल्ली-बठिंडा रेल मार्ग पर बरसोला रेलवे स्टेशन के पास दोपहर 12 बजे से पहले ही भीड़ जुटनी शुरू हो गई थी। किसानों द्वारा दिए गए धरने के हालात यह थे कि यहां पर पुरूषों की संख्या कम और महिलाओं की संख्या ज्यादा थी। बुजुर्ग महिलाएं अपने पोता-पोतियों को साथ लेकर आईं थी।
4 घंटे तक धरने पर डटीं रहीं। बच्चा रोने लग जाए तो उसको दादी द्वारा बिस्किट, चाय, पानी जिसकी व्यवस्था की गई थी उसे देकर शांत करातीं थी। इतना ही नहीं पोता-पोतियां परेशान न हो, बुजुर्ग महिलाएं उनका खेल खिलाकर मनोरंजन कर रहीं थीं।
लेकिन महिलाएं धरने से जाने का नाम नहीं ले रही थी। महिलाओं की काफी संख्या को देखते हुए रेलवे ट्रैक पर धरने की अध्यक्षता खटकड़ गांव की बुजुर्ग महिला कृष्णा देवी को सौंपी गई और मौके पर ही खाने की व्यवस्था की गई थी।
हुक्के का कश और रागिनी का आनंद
धरने में ग्रामीणों की कई टोलियां रेलवे ट्रैक पर ही ताश की बाजी लगाने में व्यस्त थी। इसी तरह से ट्रैक पर हुक्के के लिए आग बनाई गई और ग्रामीण हुक्के के कश लगाते रहे। मनोरंजन के लिए आसपास के गांवों से कलाकारों को बुलाया गया जो महिलाओं व पुरूषों के रागनी गाकर मनोरंजन करते रहे। इस दौरान कलाकारों द्वारा भी कृषि कानूनों को लेकर रागनी गाकर बताया गया कि ये किस तरह से किसानों के लिए नुकसानदायक हैं।
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