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रामराए गेट स्थित जैन स्थानक में प्रवचन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसमें सैकड़ों जैन श्रद्धालुओं ने प्रवचन सुने। मुनि समकित ने कहा कि आदमी को आगे बढ़ने के लिए जिज्ञासा का होना जरूरी है। जिज्ञासा के माध्यम से ज्ञान बढ़ता है। ज्ञान ही आदमी में परिपक्वता लाता है। जिज्ञासा का अर्थ ये भी है स्वयं को जानने की इच्छा आदमी बाहर के वातावरण को जानना सीख लिया। परंतु खुद को जानने का प्रयास नहीं किया।
मुनि ने कहा आओ हम अंदर की यात्रा करे। शायद बाहर का भटकना बंद हो जाए। हिरण के अंदर ही कस्तूरी होती है। परंतु उसे उसकी गंध बाहर फिल नहीं होती और इधर से उधर भटकता रहता है। इसी प्रकार व्यक्ति बाहर सुख ढूंढता है परंतु सुख स्वयं से ज्यादा है, बाहर कम। एक गुरु और शिष्य अपने आश्रम में बैठे थे। शिष्य आश्रम के बाहर और गुरु आश्रम में। मौसम सुहावना सा हो गया।
शिष्य को अच्छा लगा। अपने गुरु को आवाज लगाई गुरुदेव बाहर पधारो कितना अच्छा मौसम है। गुरु ने आवाज लगाई, शिष्य अंदर आओ कितना अच्छा मौसम है। यही फर्क है आदमी की सोच में। इसी सोच का हमें समाधान करना है। साधना सामयिक ही इसका मुख्य साधन है। इस अवसर पर प्रधान सुरेश जैन, विनोद जैन, मनोज जैन, सुभाष जैन, मदन लाल जैन, अभय जैन, निरंजन दास गुप्ता मौजूद रहे।
स्वयं को जानना ही हमारी साधना का लक्ष्य
मुनि ने कहा कि स्वयं को जानना ही हमारी साधना का लक्ष्य है। इसी के माध्यम से हम आगे बढ़ते हैं। सच्चा सुख हमें स्वयं को जानने में मिलेगा। इसी शृंखला में मुनि सत्य प्रकाश ने कहा कि क्रोध व्यक्ति के जीवन को बर्बाद कर देता है। क्रोध ही अग्नि से परिवार समाज नष्ट हो जाते हैं। इसलिए हमें क्रोध नहीं करना चाहिए। क्रोध से शरीर में अनेक रोग लग जाते हैं। यहां तक कैंसर जैसे रोग भी क्रोध पीना सीखे। क्रोध पीने वाले शिव शंकर बन जाते है। आओ हमें क्रोध को शांत करना है। इसका परिणाम हमें अच्छा मिलेगा।
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