स्वास्थ्य विभाग ने जिले की सीएचसी, पीएचसी व पानीपत अर्बन के तहत आने वाले जिले के लगभग सभी गांवों व काॅलाेनियाें से पीने केे पानी की जांच की ताे रिपाेर्ट चाैंकाने वाली मिली। पिछले 4 महीने यानी मार्च 2021 से जून 2021 तक 9 हजार 710 पानी के सैंपलाें की जांच की गई। जिसमें 3 हजार 485 पानी के सैंपल अनफिट मिले हैं।
हैरानी की बात ताे ये है कि पानीपत जेल, माॅडल टाउन, सेक्टर-12, 24, 25, 6, 17 सहित अन्य बड़ी काॅलाेनियाें का पानी भी स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं पाया गया है। शहरी एरिया में 4 महीने में 1299 पानी के सैंपल लिए गए हैं। इसमें से 79.52 फीसदी सैंपल फेल मिले हैं। यानी 1299 सैंपलाें में से 1 हजार 33 सैंपल फेल मिले हैं, जबकि सिर्फ 266 पानी के सैंपल सही मिले हैं।
वहीं आपकाे बता दें कि दूषित पानी की वजह से 2015-16 और 2018 में बत्तरा काॅलाेनी, सैनी काॅलाेनी और शिमला-माैलाना में डायरिया बीमारी फैल गई थी। बड़ी संख्या में सैंपल फेल आने पर हेल्थ विभाग ने नोटिस जारी कर पानी की गुणवत्ता सुधारने के लिए भी कहा है।
जानिए, खराब पानी से कब-कब बिगड़े हालात
सप्लाई किए जाने वाले पेयजल की दो तरह से होती है जांच-
पहली जांच माैके पर
स्वास्थ्य विभाग ने शहर में सप्लाई किए जाने वाले पेयजल की दो तरह से जांच की थी। इसमें एक जांच मौके पर की गई। जिसे ऑर्थो टोलीडिन टेस्ट के नाम से जाना जाता है। जिसके तहत पानी में क्लोरीन की जांच की जाती है। इसके लिए टीम सदस्य विभिन्न स्थानों से पानी के सैंपल को एक परखनली में लेने के बाद उसमें ऑर्थो टोलीडिन नामक दवा की एक बूंद डाल कर देखा गया। जिससे यह पता चला कि जनस्वास्थ्य विभाग द्वारा सप्लाई किया गया पानी पूरी तरह क्लेरीफाई किया गया है या नहीं।
दूसरी जांच लैब में-
बैक्टीरियोलॉजिकल टेस्ट फेल- स्वास्थ्य विभाग और जनस्वास्थ्य विभाग ने मार्च, अप्रैल और जून माह में हाईड्रोजन सल्फाइडल (एचटूएस) बैक्टीरियोलॉजिक टेस्ट लिए। इन तीनाें महीनाें में सिविल अस्पताल की लैब में 116 सैंपलाें की जांच हुई। जिसमें 15 अनफिट और 101 पानी के सैंपल ठीक मिले हैं। मार्च माह में 53 टेस्ट हुए इसमें 9 फेल, अप्रैल माह में 36 टेस्ट हुए 3 फेल, जून माह में 27 टेस्ट हुए इसमें 3 फेल मिले हैं।
1 पीपीएम क्लोरीन होना जरूरी
विभाग के अनुसार पेयजल में 1 पार्ट पर मिलियन (पीपीएम) क्लोरीन होना जरूरी है। इससे कम या क्लोरीन न होने से उस पानी को पीने से जलजनित रोग उल्टी, दस्त और पेट दर्द की शिकायत हो सकती है। जरूरत से ज्यादा क्लोरीन होना भी सेहत के लिए हानिकारक होता है, इसलिए पानी में क्लोरीन की मात्रा की जांच समय-समय पर होती रहनी चाहिए।
सैंपल अनफिट पाए जाने पर जनस्वास्थ्य विभाग या जिसका पानी है उसकाे नाेटिस भेजा जाता है। फिर दाेबारा सैंपलिंग की जाती है। कई बार क्लाेरिंग करने वाला डाेजर खराब हाे जाता है, इसलिए भी सैंपल फेल मिल जाते हैं। -डाॅ. कर्मवीर चाेपड़ा, नाेडल अधिकारी, डिप्टी सीएमओ।
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