देशभर में टेक्सटाइल नगरी के नाम से मशहूर हरियाणा के पानीपत जिले में टेक्सटाइल निर्यात में 50% गिरावट दर्ज की गई है। इसकी मुख्य वजह कॉटन और कॉटन यार्न के दामों में बेतहाशा वृद्धि होना है। इतना ही नहीं, अन्य देशों से नए ऑर्डर नहीं मिल रहे। पुराने ऑर्डर रद्द हो रहे हैं। यूरोपियन देशों के बहुत से खरीदारों ने डिलीवरी लेने में देरी की है। निर्यातकों को चार-पांच माह बाद माल भेजने के ई-मेल मिल रहे हैं।
पानीपत एक्सपोर्ट एसोसिएशन के प्रधान ललित गोयल का कहना है कि इस वर्ष रुई (कपास) के दामों में रिकॉर्ड तोड़ तेजी है। पहली बार रुई का दाम 330 रुपए प्रति किलोग्राम पर पहुंचा है। रुई महंगी होने से कॉटन यार्न महंगा पड़ रहा है। आए दिन कॉटन यार्न के दाम में बढ़ोतरी हो रही है।
कॉटन यार्न के दाम तेज होने से टेक्सटाइल निर्यात प्रभावित हो रहा है। आने वाले चार-पांच महीनों में क्या स्थिति बनती है, इस पर निर्यातकों की नजर लगी है। पिछले वर्ष नवंबर में रुई के दाम 120 रुपए किलोग्राम थे जो छह महीने बाद वर्तमान में 330 रुपए किलोग्राम तक पहुंच चुके हैं। पहली बार रुई का दाम इतना ऊंचा दर्ज किया गया।
यार्न के भाव लगातार बढ़ रहे
सरकार ने पहले रुई के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया। उसके बाद अप्रैल में विदेश से कपास मंगवाने के लिए आयात ड्यूटी हटा दी। इसका फायदा भी निर्यातकों को नहीं मिला। यार्न के भाव लगातार बढ़ रहे हैं। पानीपत इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रीतम सचदेवा का कहना है कि जनवरी 22 में ड्यूटी हटती तो आयात हो सकता था, अब तो विदेश में कॉटन महंगा है। तीन-चार महीने शिपमेंट आने में लग जाता है।
पानीपत से टेक्सटाइल निर्यात
वर्ष 2018-2019- 12000-13000 करोड़ रुपए वर्ष 2020-21- 18000-20000 करोड़ रुपए वर्ष 2022 अनुमानित- 12000 करोड़ रुपए
आंकड़े यंग एंटरप्रेन्योर एसोसिएशन (यस) के द्वारा दिए गए
नए ऑर्डर पर लगी रोक
यंग एंटरप्रेन्योर एसोसिएशन (यस) के चेयरमैन निर्यातक रमन छाबड़ा के मुताबिक टेक्सटाइल निर्यात कम होने मुख्य कारक कॉटन, कॉटन यार्न के भाव बढ़ना, कंटेनर के भाव दोबारा बढ़ना, कोरोना काल में यूरोप व अमेरिका के स्टोर में स्टॉक लगना है। दो साल पहले अमेरिका के लिए कंटेनर का भाड़ा 2500 डॉलर था जो 16000 डॉलर पर पहुंच चुका है। महंगाई अधिक होने से विदेशों में ब्रेड-बटर को प्राथमिकता दी जा रही है। साथ ही टूरिज्म पर जोर दिया जा रहा है। इसीलिए टेक्सटाइल की डिमांड कम है। अब अमेरिका के कारोबारी तीन-चार महीने देरी से माल भेजने के लिए कह रहे हैं। ऐसे में नए ऑर्डर तो मिल ही नहीं रहे। पुराने ऑर्डर की डिलीवरी होने के बाद नए ऑर्डर मिलेंगे।
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