सोनीपत (हरियाणा ) के नवीन कुमार मलिक ने महज 19 साल की उम्र में कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड जीता है। वे शनिवार काे गोल्ड जीतने के बाद भावुक हो गए और सेरेमनी के दौरान राष्ट्रीय गान की धुन के साथ जन गन मण गुनगुणाने लगा।
कुछ देर बाद दर्शकों की भीड़ के बीच भी ऐसे दिखाई दिया जैसे ये ही उसके अपने हों। उसके परिवार की हालत भी उससे कोई जुदा नहीं थी। गांव पुगथला में सीलन भरे कमरे में परिजन टीवी पर बेटे का लाइव मैच देख रहे थे। नवीन ने पाकिस्तानी रेसलर मो. शरीफ ताहिर को गोल्डन पटकनी दी तो परिवार के साथ आस पड़ोस के लोग भी झूम उठे और मिठाई बांटी। नवीन ही नहीं बल्कि पाक रेसलर का भी ये पहला कॉमनवेल्थ गेम्स था।
नवीन मलिक हरियाणा के बजरंग पूनिया या रवि दहिया सरीखा पहलवान नहीं था, जिसे कि पूरा विश्व जानता हो। गोल्ड जीतने के बाद खेल प्रेमियों ने इंटरनेट पर नवीन की जीवनी खंगाली तो वहां उसके बारे में कुछ नहीं था। असल में उसका चेहरा अब तक मीडिया और कुश्ती प्रेमियों की भीड़ से परे था।
नेवी में स्पोर्ट्स कोटे से हवलदार
नवीन पुगथला (सोनीपत) के रहने वाले हैं। पिता धर्मपाल मलिक एक छोटे किसान हैं। उनके पास 3 एकड़ जमीन है। नवीन का बड़ा भाई प्रवीण मलिक भी पहलवान हैं। फिलहाल दोनों खेल कोटे से नेवी में हवलदार हैं। पिता के संघर्ष और मेहनत से तपकर निखरे बेटे कुंदन बन गए। पिता धर्मपाल मलिक धूप की तपिश और बारिश के बीच खेत से नहीं हटे तो बेटे भी पिता की इस तपस्या को समझ अपने लक्ष्य की राह से कभी डगमगाए नहीं।
4 साल की उम्र से दंगल लड़ने लगे थे नवीन
पुगथला के धर्मपाल मलिक को कुश्ती का शौक था। घर गृहस्थी में फंस कर रह गया, लेकिन बेटों को छोटी उम्र मे ही तपाना शुरू कर दिया। गांव के ग्रामीणों के सहयोग से धर्मपाल ने गांव में अखाड़ा बनवाया। नवीन मलिक ने मात्र 3 साल की उम्र मे ही लंगोट पहन लिया था। उसका बड़ा भाई प्रवीण तब 9 साल का था। पिता बताते हैं कि नवीन ने 4 साल की उम्र में ही दंगल लड़ना शुरू कर दिया था। नवीन और प्रवीण कुछ बड़े हुए तो पहलवानी के खर्चे बढ़ गए, लेकिन तब 3 एकड़ खेती में इतनी फसल नहीं उगती कि परिवार की जरूरत पूरी हो जाए।
9 साल तक हर सुबह पहुंचाया दूध घी
धर्मपाल मलिक ने ठान ली थी कि दोनों बेटों को पहलवान बना कर ही दम लेगा। पिता ने अपनी इच्छाओं व सुविधाओं से तमाम समझौते किए, लेकिन बेटों के खेल को लेकर कभी पीछे नहीं हटा। बेटे खेल के मैदान में उतरे तो आर्थिक परेशानी समेत तमाम तरह के व्यवधान आए। एक किसान पिता के लिए इसे झेलना आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। धर्मपाल मलिक लगातार 9 साल तक अखाड़े में हर रोज सुबह 5 बजे दूध और धी पहुंचाता रहा। इस संघर्ष ने आखिरकार बेटों को खेलों में मुकाम दिलाया। उनकी हर रोज सुबह अखाड़े की डगर तब थमी जबकि दोनों बेटे खेल कोटे से नेवी में हवलदार बने।
74 KG भार वर्ग का खिलाड़ी
नवीन कुमार ने नेवी में भर्ती होने के बाद भी कुश्ती नहीं छोड़ी। उसने ठान रखी थी कि पिता के सपने को पूरा करना है। नवीन ने जूनियर गोल्ड, अंडर-23 में गोल्ड, मंगोलिया में सिल्वर मेडल जीतने के बाद कॉमनवेल्थ गेम से पहले 74 वर्ग भार में ट्रायल दिया था। उसने गोल्ड जीता और कॉमनवेल्थ का टिकट हासिल किया। अपने पहले ही कॉमनवेल्थ गेम में नवीन ने गोल्ड लेकर झंडा गाड़ दिया।
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