टोक्यो ओलिंपिक में नीरज चोपड़ा के बाद अब पैरालिंपिक में हरियाणा के एक और लाल का भाला गोल्ड पर गिरा है। जैवलिन थ्रो इवेंट में भारत का प्रतिनिधत्व कर रहे सुमित आंतिल ने सोमवार को गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया। सुमित सोनीपत के गांव खेवड़ा का रहने वाला है। उसने पहली बार पैरालिंपिक में हिस्सा लिया और इतिहास रच दिया। सुमित ने जैवलिन थ्रो के एफ-64 इवेंट के अपने दूसरे प्रयास में 68.55 मीटर का थ्रो कर गोल्ड तो अपने नाम किया ही, साथ में विश्व रिकॉर्ड भी बना डाला।
सुमित का पैरालिंपिक तक का सफर चुनौतियों से भरा रहा है। सुमित ने करीब 6 साल पहले सड़क हादसे में अपना एक पैर गंवा दिया था। लेकिन खराब हालात सुमित का हौसला तोड़ न सके। बेटे के साथ हुए हादसे के बाद जब भी मां निर्मला देवी की आंसों में आसूं आ जाते, तो सुमित उन्हें पोंछते हुए एक दिन उनसा नाम रोशन करने का वादा करता था। सुमित ने कड़ी मेहनत के बल पर अपने इस वादे को पूरा कर दिखाया और गोल्ड जीत परिवार के साथ देश का नाम भी रोशन किया।
हादसा भी न तोड़ पाया हौसले की दीवार
7 जून 1998 को सोनीपत में जन्मे सुमित आंतिल परिवार में सबसे छोटे हैं। सुमित परिवार का इकलौता बेटा है और परिवार में मां के अलावा बड़ी तीन बहनें रेनू, सुशीला व किरण हैं। सुमित उस समय 7 साल का था, जब एयरफोर्स में तैनात उनके पिता रामकुमार की बीमारी के चलते मौत हो गई। उनकी मां निर्मला ने मुश्किल हालातों से जूझते हुए चारों बच्चों का पालन-पोषण किया। 5 जनवरी 2015 को सुमित एक दर्दनाक सड़क हादसे का शिकार हो गया। 12वीं कक्षा में कॉमर्स की ट्यूशन से लौटते समय एक ट्रैक्टर-ट्रॉली ने सुमित की बाइक को टक्कर मार दी। इस हादसे में सुमित ने अपना एक पैर गंवा दिया।
सुमित की मां निर्मला देवी का कहना है हादसे के बावजूद सुमित के चहरे भी मायूसी कभी नहीं आई। धीरे-धीरे सुमित ने खेलों में रूचि लेना शुरू कर दिया। एशियन रजत पदक विजेता कोच विरेंद्र धनखड़ सुमित ने उसे दिल्ली में द्रोणाचार्य अवॉर्डी कोच नवल सिंह से मिलवाया और वहीं उसने जैवलिन थ्रो के गुर सीखे।
सुमित की उपलब्धियांः-
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