चैत्र नवरात्रि चल रहे हैं। इस मौके पर हम आपको देवी मां के ऐसे शक्तिपीठ के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसमें सिखों की गहरी आस्था है। देवी मां के 52 शक्तिपीठों में से एक यह शक्तिपीठ पंजाब-हिमाचल बॉर्डर पर बिलासपुर में स्थित है और नाम माता नयना देवी का मंदिर। यह नाम इसलिए पड़ा, क्योंकि यहां माता सती के नेत्र गिरे थे। इसलिए मान्यता है कि यहां आकर मां के दर्शन करने मात्र से आंखों की बीमारियां दूर हो जाती हैं।
नयना देवी मंदिर में नवरात्रि का त्योहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। चैत्र मास और अश्विन मास के नवरात्रि में यहां पर विशाल मेला लगता है। पंजाब, हरियाणा, उतर प्रदेश, बिहार, हिमाचल व अन्य राज्यों से श्रद्धालु माता के दर्शनों करने आते हैं। माता को 56 प्रकार की वस्तुओं का भोग लगाया जाता है। श्रावण अष्टमी पर भी यहां मेला लगता है। नवरात्रि में मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या दोगुनी हो जाती है।
हिन्दू-सिखों का सांझा तीर्थ स्थान
नयना देवी मंदिर में मां के दर्शन करने आने वाले श्रद्धालुओं में 60 फीसदी सिख होते हैं, क्योंकि सिखों के 10वें गुरु गोबिंद सिंह ने माता नयना देवी के मंदिर में तपस्या की थी और एक साल से अधिक समय तक मंदिर में हवन किया था। मान्यता है कि तपस्या व हवन से खुश होकर मां भवानी ने स्वयं प्रकट होकर गुरु जी को प्रसाद के रूप में तलवार भेंट की।
गुरु जी को वरदान दिया था कि तुम्हारी विजय होगी और इस धरती पर तुम्हारा पंथ सदैव चलता रहेगा। हवन आदि के बाद जब गुरु जी आनंदपुर साहिब जाने लगे तो उन्होंने अपने तीर की नोक से तांबे की एक प्लेट पर अपने पुरोहित को हुक्मनामा लिखकर दिया, जो आज भी सुरक्षित है।
मंदिर के पीछे का इतिहास
कहते हैं कि जब राजा दक्ष प्रजापति ने महायज्ञ के लिए भगवान शंकर को निमंत्रण नहीं दिया तो माता सती हठ करके यज्ञ में भाग लेने आ गईं। वहां शिव भगवान के लिए उचित स्थान न देखकर माता सती आक्रोश स्वरूप यज्ञशाला में कूद गईं और जब भगवान शंकर को पता चला तो वह मौके पर पहुंचे।
अपने त्रिशूल से माता सती के अधजले शरीर को उठाकर पूरे ब्रह्मांड का भ्रमण करने लगे। तब विष्णु भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र से माता के शरीर के विभिन्न अंगों को विभाजित किया। इसके बाद जहां-जहां पर माता सती के अंग गिरे, वहां पर शक्तिपीठों की स्थापना हुई। श्री नयना देवी जी में माता सती के नेत्र गिरे, इसलिए इस मंदिर का नाम श्री नयना देवी जी पड़ा।
प्राचीन पीपल का वृक्ष आकर्षण का केंद्र
समुद्र तल से करीब 1100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित माता नयना देवी मंदिर के प्रांगण में एक सैकड़ों वर्ष पुराना पीपल का पेड़ है, जिसके बारे में अनेक दंत कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें से एक यह भी है कि अनेक अवसरों पर इस पीपल के हर पत्ते पर ज्योति जलती दिखाई देती है। मुख्य द्वार पर भगवान गणेश और हनुमान जी मूर्तियां हैं, जबकि गर्भ गृह में बाईं ओर मां काली, बीच में मां नयना और दाईं ओर भगवान श्री गणेश विराजमान हैं। माता नयना देवी के भवन के अंदर 3 मूर्तियां हैं, जो दर्शनीय हैं।
विशेषता उस अंदर वाली मूर्ति की मानी जाती है, जिसके मात्र 2 नयन ही दिखाई देते हैं। मंदिर के साथ ही एक हवन कुंड भी बना हुआ है, जिसकी विशेषता है कि इसमें डाली गई सारी सामग्री जलकर उसके बीच में ही समा जाती है, लेकिन यह कई टन भस्म कहां जाती है, आज तक रहस्य बना हुआ है। भवन से कुछ ही दूरी पर एक प्राचीन गुफा भी है। श्रद्धालु जन उसके भी श्रद्धा भाव से दर्शन करते हैं। भवन से 100 मीटर की दूरी पर एक सरोवर है, जिसमें स्नान करना पुण्य माना जाता है।
मंदिर तक पहुंचने के रास्ते
वायु मार्ग: हवाई जहाज से जाने वाले पर्यटक चंडीगढ़ से फ्लाइट ले सकते हैं। इसके बाद बस या कार में मंदिर तक जा सकते हैं। दूसरा नजदीकी हवाई अड्डा अमृतसर में है।
रेल मार्ग: नयना देवी जाने के लिए पर्यटक चंडीगढ़ और पालमपुर तक रेल सुविधा ले सकते हैं। इससे आगे बस, कार व अन्य वाहनों से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
सड़क मार्ग: नयना देवी मंदिर दिल्ली से 350 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। दिल्ली से करनाल, चंडीगढ़, रोपड़ होते हुए पर्यटक नयना देवी पहुंच सकते हैं। रास्ते मे काफी सारे होटल हैं, जहां पर विश्राम किया जा सकता है।
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