भाजपा के अच्छे खासे जनाधार वाली बड़सर सीट पर इसके नेताओं की करनी और कथनी ने वर्कर्स के लिए जो ताना-बाना बुना, वह अब उसी के लिए पिछले 3 चुनाव से मुसीबत बन चुका है। इसका सीधा फायदा कांग्रेस उठा रही है। बड़े नेताओं ने क्षेत्र के निष्ठावान कार्यकर्ताओं से मुकम्मल तौर पर मुंह फेर रखा है।
इस बार के चुनाव में किसी अनदेखी का खामियाजा एक बार फिर भाजपा वर्ग परेशानी में दिख रहा है। परिवारवाद और क्षेत्रवाद के बीच बगावत का जो झंडा यहां कार्यकर्ताओं ने उठाया है। उसी के कारण मुकाबला इस बार तिकोना नजर आने लगा है। यहां बागी को मनाने के भाजपा नेताओं के सारे प्रयास बेअसर साबित हो रहे हैं।
जिद्द ने बिगाड़ी भाजपा की रणनीति
पार्टी ने लगातार 2 चुनाव हार चुके क्षेत्र के पूर्व विधायक और जिला भाजपा के अध्यक्ष बलदेव शर्मा के परिवार में ही जब उनकी धर्मपत्नी माया देवी को फिर से उम्मीदवार बना दिया तो यह पहला मौका था जब वर्कर्स को मुखालफत पर उतरना पड़ा। अब परिस्थिति यहां पर भाजपा के शीर्ष नेताओं के कब्जे से पहली मर्तबा बेकाबू हो चुकी है।
यहां पर जिस संजीव शर्मा को कार्यकर्ताओं की बड़ी फौज ने चुनावी रण में उतार दिया, उसे मनाने के लिए जिलाभर के तमाम बड़े नेताओं के अलावा आलाकमान के कुछ खास लोगों ने भी काफी प्रयास किए, लेकिन यह सारे प्रयास बेअसर साबित हुए हैं। दरअसल, संजीव के सवालों का जवाब यह लोग दे नहीं पा रहे। यही वजह है कि नेता मायूस होकर लौट रहे हैं।
परिवारवाद और क्षेत्रवाद इस बार मुद्दा
संजीव कुमार जिस क्षेत्र से ताल्लुक रखते हैं। उस क्षेत्र से कभी भी किसी भी पार्टी ने चाहे भाजपा हो या कांग्रेस, प्रत्याशी रण क्षेत्र में नहीं उतारा। भाजपा के बागी उम्मीदवार संजीव को इसी का फायदा मिल रहा है। तप्पा ढटवाल के तहत पड़ने वाली तकरीबन 20 से 25 पंचायतों का बड़ा 'समूह' इस क्षेत्र में पड़ता है। संजीव उसी से ताल्लुक रखते हैं। इस क्षेत्र में पार्टी का बड़ा कुनबा उन्हीं के साथ हो लिया है।
दिवंगत बबली के भाई हैं संजीव
कामगार कल्याण बोर्ड के चेयरमैन रहे दिवंगत राकेश कुमार बबली का कुछ महीने पहले हृदय गति रुकने से निधन हो गया था। उसके बाद जो घटनाक्रम घटा। उसी के तहत क्षेत्र में टिकट को लेकर नई चर्चा शुरू हुई। टिकटों के ऐलान से कुछ दिन पहले तक बबली के परिवार से ही टिकट देने की बात पक्की होने लगी तो उन्हें चुनाव लड़ने के लिए संबंधित कागजों की फाइल तैयार रखने की भी हिदायतें दे दी गई थी।
क्योंकि बबली का केंद्रीय हाईकमान में अच्छा खासा रुतबा था। कई केंद्रीय नेता बबली के घर भी संवेदना जताने आते रहे, लेकिन प्रत्याशी घोषित करने के कुछ दिन पहले तक जो माहौल था, उसे अचानक पलट दिया गया। फिर संजीव कुमार को इस क्षेत्र से जो जनसमर्थन मिला, वह अब उसी की सवारी पर पार्टी के बड़े नेताओं को 'चिढ़ा' रहा है।
क्यों है तिकोना मुकाबला
कांग्रेस के यहां लगातार 2 बार विधायक रहे आई डी लखन पाल ने भाजपा की इस कलह का पिछले दोनों चुनाव में फायदा तो उठाया, लेकिन कांग्रेस को भी उन्होंने शुरुआती दौर में एकजुट करने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी, जो भाजपा के परंपरागत उम्मीदवार पर भारी पड़ती रहे, मगर भाजपा के बड़े नेताओं की आंखें इस क्षेत्र में क्यों बंद हो गईं। इस पर कार्यकर्ताओं को कभी भी जवाब नहीं मिला।
अब पार्टी का बड़ा कुनबा संजीव शर्मा के साथ हो लिया है। जिस क्षेत्र से ताल्लुक रखते हैं, उससे वे अकेले उम्मीदवार हैं, जबकि दूसरा क्षेत्र बड़सर उपमंडल मुख्यालय के तहत पड़ता है, जहां से दोनों कांग्रेस के आईडी लखन पाल और भाजपा की माया शर्मा ताल्लुक रखती हैं। कांग्रेस को भी इस बात की चिंता है कि तप्पा ढटवाल से यदि वोट बैंक संजीव के समर्थन में खिसका तो फिर मुकाबला बेहद दिलचस्प हो जाएगा।
विकास पर भारी नेतृत्व
उत्तरी भारत का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल बाबा बालक नाथ मंदिर इसी क्षेत्र में पड़ता है, लेकिन इस क्षेत्र में इसलिए 30 सालों में कोई ऐसा प्रोजेक्ट आधार नहीं बना पाया, जिसके बूते क्षेत्र के लोगों को कोई फायदा हुआ हो। शासन चाहे भाजपा का रहा हो या कांग्रेस का लोगों के पास नेताओं के विजन की चर्चा करने की कोई गुंजाइश इसलिए नहीं दिखती।
क्योंकि आधार पर सब कुछ औंधे मुंह है। जिन योजनाओं को यहां आधार देने की बात चलती रही है। उन पर कारगर सोच प्रभाव नहीं डाल पाई। यही वजह है कि बड़ी समस्याएं और नए प्रोजेक्ट्स की 'पैदावार' यहां पर लोगों के लिए इस बार चुनावी चर्चा में 'शुमार' हो गई हैं।
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