'किंग ऑफ माउंटेन्स' हिमाचल में एक ऐसा गांव है, जिसने देश को अब तक 100 से ज्यादा क्लास वन अधिकारी दिए हैं। यह गांव प्रदेश के जनजातीय जिला लाहौल स्पीति में है ओर इसका नाम है ठोलंग, जिसे राज्य में अफसरों के गांव के नाम से जाना जाता है।
इस गांव के हर घर के 2 से 3 सदस्य अधिकारी हैं और उच्च पदों पर कार्यरत हैं। 35 परिवार वाले इस गांव में मात्र 420 लोगों की जनसंख्या रहती है। 100% साक्षरता दर वाले इस गांव से IAS-IPS निकले हैं। कई डॉक्टर और इंजीनियर भी देश को मिल चुके हैं।
अमरनाथ विद्यार्थी बने थे पहले IAS
ठोलंग गांव देश को 3 IAS और 3 ही IPS अधिकारी दे चुका है। यहां से 3 HAS ऑफिसर के अलावा रेवन्यू व इंडियन फॉरेस्ट सर्विस सहित कई डॉक्टर व सिविल इंजीनियर निकले हैं। अमरनाथ विद्यार्थी ठोलंग गांव से पहले IAS अधिकारी बने। इसके बाद छोटे से गांव से एक के बाद एक, आज लगभग हर घर में क्लास वन अधिकारी हैं।
गांव के पहले आईएएस अधिकारी विद्यार्थी बाद में हिमाचल प्रदेश के चीफ सेक्रेटरी भी बने। यहां के IAS अधिकारी SS कपूर ने जम्मू कश्मीर में अपनी सेवाएं दीं और शेखर विद्यार्थी ने भी महत्वपूर्ण पदों पर काम किया। ठाेलंग से IPS अधिकारियों में राम सिंह, नाजीन विद्यार्थी, नोरबू राम देश के कई हिस्सों में तैनात रहे।
23 डॉक्टर और 21 इंजीनियर बने
लाहुल घाटी के इस छोटे से गांव से अब तक 23 डॉक्टर बन चुके हैं। इनमें से अधिकतर स्वास्थ्य विभाग में विभिन्न स्थानों व पदों पर काम कर चुके और कई रिटायर भी हो गए हैं। इसके अलावा गांव से 21 युवा इंजीनियरिंग लाइन में निकले। इन्होंने प्रदेश सहित देश के अन्य राज्यों में भी नाम कमाया। 35 परिवारों के साथ 420 लोगों की आबादी वाले इस गांव के लगभग हर घर में सरकारी अधिकारी-कर्मचारी है।
मिशनरियों ने जगाई साक्षरता की अलख
देश में अंग्रेजी राज के समय 19वीं सदी में यहां मिशनरी आए। इन्होंने 1920 के दौरान एक प्राइमरी स्कूल खोला। गांव में लड़कों के साथ ही लड़कियों को भी पढ़ाया गया। पर्यटन व अध्यात्म सहित अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक रूट होने के चलते घाटी में बाहरी लोगों का आना-जाना बढ़ा। तो गांव के लोग भी आधे साल भर बर्फ से ढकी रहने वाले इलाके से बाहर निकलने लगे। कुछ लोग व्यापार के लिए लाहुल से बाहर आए तो कुछ पढ़ाई व नौकरी के लिए।
ST दर्जे से भी मिला संबल
आज यहां पर शत-प्रतिशत लोग साक्षर हैं। गांव की 40 फीसद युवा महिलाएं तक ग्रेजुएट हैं। आजादी व हिमाचल गठन के बाद मिले जनजातीय दर्जे ने भी ठोलंग के शिक्षित युवाओं को सरकारी नौकरी ओर आकर्षित किया। गांव के लोग अपने बच्चों को कुल्लू, शिमला के अलावा चंडीगढ़ व दिल्ली जैसे बड़े शहरों में पढ़ाई करवा रहे हैं। यही कारण है कि इस गांव से शिक्षा विभाग में भी उपनिदेशक से लेकर ऊंचे पदों के अधिकारी हैं।
1960 के बाद बनने लगे अधिकारी
लाहुल घाटी के ठोलंग गांव से वरिष्ठ डॉक्टर रहे और बाद में सफल व्यवसायी बने डॉ. पीडी लाल बताते हैं कि 1950 के दौरान लाला उरज्ञान तंडूप सबसे पहले कुल्लू में दुकानदारी करने आए। उन्होंने अपने भाई के बच्चों को भी कुल्लू लाकर स्कूल में दाखिला करवाया। वर्ष 1960 में लाला के भतीजे प्रेमचंद गांव से पहले डॉक्टर बने। इससे पूरे गांव को प्रेरणा मिली। इलाके के अन्य लोग भी गांव से निकलकर अपने बच्चों को बाहरी क्षेत्रों में पढ़ाने लगे।
कृषि-बागवानी में भी अग्रणी
इस गांव के लोग नौकरी ही नहीं, कृषि-बागवानी के क्षेत्र में भी अग्रणी है। ठोलंग की जमीन में एक्सपोर्ट लेवल की औषधीय पौधों की खेती हो रही है। यहां का आलू बीज देश के पश्चिमी भाग तक सप्लाई हो रहा है। नगदी सब्जियां और हाई क्वालिटी सेब उत्तरी भारत ही नहीं देश भर की मंडियों की शोभा बढ़ाता है।
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