हिमाचल के लाहौल स्पीति स्थित केलांग में माइनस 15 डिग्री में नंगे शरीर पर बर्फ को रगड़ कर होली मनाई गई। रंगों की जगह यहां लोग बर्फ का इस्तेमाल करते हैं। लाहौल के मडग्रां समेत उदयपुर गांव में यह होली खेली गई। मशालों का त्योहार हालड़ा के दूसरे दिन रविवार को मठी खोगला मनाया गया। लोगों को यहां एक दूसरे पर बर्फ फेंकते और शरीर में बर्फ रगड़ते देखा गया।
जिस शख्स को बर्फ रगड़ा जाता है, पहले उसे एक पालकीनुमा लकड़ी के ऊपर उठाकर बर्फ के ढेर तक लाया गया। उसके बाद एक साथ कई लोगों ने उसके शरीर पर बर्फ को मला। यह अनूठी परंपरा पहले हर गांव में मनाई जाती था, लेकिन वक्त के साथ इस परंपरा से लोग दूर होते चले गए। अब यह पारंपरिक उत्सव चंद गांवों मे ही मनाया जाता है।
मान्यता है कि इस उत्सव से आपसी मनमुटाव खत्म करके भाईचारे की सीख दी जाती है । मडग्रां में बुजुर्गों को भी युवाओं की तरह मठी खोगला खेलते हुए देखा गया।
पश्चिमी सभ्यता के पीछे दौड़ रहे लोग
मडग्रां के युवा मोतीलाल, बीर सिंग, महेंद्र का कहना है कि भौतिकतावाद के इस दौर में एक दूसरे को पीछे छोड़ कर आगे बढ़ने की होड़ ने ऐसी अनूठी और समृद्ध परंपरा को खत्म सा कर दिया है। सही मायने में देखा जाए तो लोग अपनी मूल संस्कृति और परम्पराओं की बजाय पश्चिमी सभ्यता के पीछे दौड़ रहे हैं। लिहाजा ट्राईबल इलाकों में भी अब त्योहार और उत्सव महज औपचारिकताएं भर रह गई हैं।
कहा कि इन त्योहार के माध्यम से हम भावनात्मक रूप से एक दूसरे के करीब आते हैं।
ससुर के साथ बहू भी खेलती थीं मठी खोगला
बुजुर्ग बताते हैं कि पहले बहू ससुर के साथ बर्फ की होली खेलती थीं। सुबह सबसे पहले ससुर को बहू बर्फ से मल कर मठी खोगला की परंपरा निभाती थीं। मडग्रां के मोतीलाल ने बताया कि मठी खोगला दरअसल रंजिश को भुलाकर दोस्ती को मजबूत करने वाली परम्परा है। मठी खोगला के दिन पुरानी रंजिश भुलाकर लोग एक दूसरे पर बर्फ फेंकते हैं।
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