हिमाचल में मंडी के सुंदरनगर से पोलिंग टीम मतदान से एक दिन पहले सुबह 9 बजे चली। निहरी होते हुए शाम तक 100 किलोमीटर बस का सफर तय करके जरल पहुंचे। यहां से पैदल यात्रा शुरू हुई, जिसमें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। आजादी के इतने साल बाद भी मझागण गांव तक सड़क नहीं पहुंची। जो रास्ता है, वह केवल खच्चरों व गधों के जरिए सामान ढोने के लिए बना है। जरल से टेढ़े-मेढ़े रास्ते और खड़ी चढ़ाई से पार पाकर सभी लोग आगे बढ़ते रहे। जैसे-तैसे पोलिंग पार्टी के सदस्य थकते-हारते, उठते-बैठते मझागण तक पहुंचे।
रोड कनेक्टिविटी लोगों की मुख्य मांग
मझागण गांव के लोग लंबे समय से सड़क सुविधा की मांग कर रहे हैं। इनका आरोप है कि चुनाव के दौरान नेता यहां आते हैं। वोट मांगकर उन्हें आश्वासन देते हैं और चले जाते हैं। इस पोलिंग बूथ में 300 वोट हैं, शायद इसीलिए यह गांव वोट की राजनीति का शिकार है।
गांव के पूर्ण चंद बताते हैं कि बीमारी की हालत में भी मरीजों को पैदल रास्ते से ही अस्पताल ले जाना पड़ता है। 8-9 किलोमीटर का पैदल रास्ता ग्रामवासियों के िलए जानलेवा साबित होता है।
स्वास्थ्य सुविधा भी नहीं
यहां लोगों का कहना है कि सरकार ने पिछले 75 वर्षों से इस क्षेत्र की ओर ध्यान नहीं दिया। यहां तक की अगर किसी बच्चे को दवाई की जरूरत होती है तो गांव में सिर्फ आयुर्वेदिक डिस्पेंसरी है। अंग्रेजी दवाई के लिए 8 किलोमीटर चलना पड़ता है। वहां भी करियाना की दुकान पर ही बुखार व जुकाम जैसी दवाइयां बिना डॉक्टरी सलाह के लेनी पड़ती है। यही नहीं, सड़क न होने के कारण बच्चों को भी रोज 8 किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल जाना पड़ता है।
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