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हिमाचल प्रदेश की राजनीति को बड़ा झटका लगा है। शुक्रवार को कुल्लू में वयोवृद्ध राजनेता नवल ठाकुर का निधन हो गया। वह अपने जीवन में गरीबों के हक की लड़ाई में सदा आगे रहे, वहीं 12 बार विधानसभा और 4 बार लोकसभा चुनाव भी लड़ चुके थे। साढ़े 96 साल की उम्र में नवल ठाकुर ने आज अपने पैतृक गांव में अंतिम सांस ली। हालांकि अभी तक वह एकदम फिट थे।
21 सितंबर 1924 को जन्मे नवल ठाकुर की घाटी में खासी पहचान है, जिसके पीछे की कहानी बड़ी दिलचस्प है। जिला कुल्लू की इस शख्सियत ने गरीबों की लड़ाई लड़ने में कभी कोई कसर नहीं छोड़ी। डॉ. YS परमार से विशाल हिमाचल मूवमेंट के दौरान हुई इनकी दोस्ती के बाद इन्होंने कई बार आंदोलन में हिस्सा लिया।
इसके अलावा अपने 34 साल के राजनैतिक कॅरियर में 16 इलेक्शन (12 बार विधानसभा और 4 बार लोकसभा चुनाव) लड़े। ज्यादातर आजाद प्रत्याशी के रूप में चुनावी रण में उतरे। उन्होंने 1957 में पहली तो 1991 में अंतिम बार चुनाव लड़ा। 1962 में नवल ठाकुर लाल चंद प्रार्थी से हार गए, वहीं 1967 में भी मैदान में उतरे। उस दौरान वह तत्कालीन कैबिनेट मंत्री लाल चंद प्रार्थी के मुकाबले महज 323 मतों के अंतर से विधानसभा चुनाव हारे थे। वीरभद्र सिंह के खिलाफ भी लोकसभा चुनाव लड़े और हार गए। भले ही एक भी चुनाव वह जीत नहीं पाए, लेकिन घाटी के लोग आज भी इस वयोवृद्ध नेता को याद करते हैं। बताते हैं कि लीक से हटकर काम करते थे और जो मन में ठान लेते थे, उसे पूरा करने के लिए घर से अकेले ही निकल पड़ते थे।
10वें दशक के अंतिम पड़ाव में भी थे एकदम चुस्त
नवल ठाकुर की एक और खास बात है कि आज से करीब 2 साल पहले तक वह 8 किलोमीटर का फासला पैदल तय करके कुल्लू पहुंचते थे। यहां जिला पुस्तकालय में समाचार पढ़ते थे और फिर पैदल ही घर पहुंचते थे। वह कार्यक्रमों में अपने आप को युवा कहना-कहलवाना पसंद करते थे।
...जब दिन में जलती मशाल लेकर पहुंचे थे DC दफ्तर
उस आंदोलन को लोग कभी नहीं भूल सकते, जब 1964 में घाटी में मजदूरों को कई महीने के बाद भी जब तनख्वाह नहीं मिली थी। मजदूरों ने नवल ठाकुर को अपनी स्थिति से अवगत करवाया तो इसके बाद मजदूरों को साथ लेकर ढालपुर पहुंचे और दिनदहाड़े जलती हुई मशाल लेकर DC के दफ्तर पहुंच गए थे। DC और अन्य अधिकारियों ने वजह पूछी तो उन्होंने तर्क दिया कि सरकार और प्रशासन को कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा। ऐसा लग रहा है कि सरकार और प्रशासन के लिए दिन में भी अंधेरा छाया हुआ है। उस अंधेरे को हटाने के लिए ही मशाल जलाई गई है, ताकि मजदूरों की हालत को प्रशासन देख सके। उसके बाद मजदूरों को उनका मेहनताना मिला था।
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