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एक पुरानी कहावत है, 'मानो तो मैं देवी मां, नहीं तो पत्थर की मूरत'। राजस्थान के कुछ भक्त इसी कहावत को चरितार्थ करते हुए नजर आए। दो अलग-अलग ग्रुपों में शामिल 10 पुरुष और 7 महिलाएं यहां हिमाचल प्रदेश के दो देवी धामों के दर्शन करने पहुंचे हैं। इन्हें यहां आने के लिए 800 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ा और यह सफर एक-दो दिन नहीं, बल्कि पूरे 4 महीने में पूरा हो पाया। कारण इनकी आस्था ही है, जिसके चलते ये लोग उल्टी दंडवत करते हुए पहले चिंतपूर्णी तो फिर ज्वाला जी के धाम पहुंचे।
मिली जानकारी के अनुसार राजस्थान के हैदलपुर इलाके के गांव अजीजपुर से 24 अगस्त को कुछ लोग धार्मिक यात्रा पर निकले थे। दो दलों में बंटे ये लोग एक दल में 7 पुरुष तो दूसरे में 6 पुरुष और 4 महिलाएं शामिल हैं। यह दल अपने साथ खाने-पीने का सामान और खाना पकाने का सामान लेकर चला हुआ है। पिछले शुक्रवार को ये श्रद्धालु ऊना जिला मुख्यालय पहुंचे था। इसके 3 दिन बाद माता चिंतपूर्णी के दर्शन किए जो फिर आज आज ये ज्वाला जी पहुंचे। यह इनकी यात्रा का आखिरी पड़ाव है। जहां तक इतना लंबा वक्त लगने के कारण की बात है, ये दंडवत करते हुए आगे बढ़ रहे थे, वह भी उल्टी दंडवत। ऐसे में रोज 8 किलोमीटर के करीब ही आगे बढ़ सके। इसके अलावा जहां रात पड़ी, वहीं डेरा जमा लिया। अधिकतर यह दल किसी सराय या मंदिर की शरण लेता था।
श्रद्धालुओं के जत्थे में ओम प्रकाश, तेजराम, राम स्वरूप, श्रीमन, पप्पू, रत्न, रवि कुमार, मिश्री लाल, मोहन लाल, प्रकाश, सोनू, सेनापति और कमल सहित 4 महिलाएं केसंती, केशो और रामपति सहित एक अन्य महिला शामिल हैं। जत्थे की हिम्मत देखकर यह अहसास होता है कि दिल में आस्था हो तो इंसान कुछ भी कर गुजर सकता है। यही कारण रहा कि इतनी भयंकर ठंड में भी मां की भक्ति से ओत-प्रोत यह दल लगातार आगे बढ़ता जा रहा और इनका सफर मां ज्वालाजी के चरणों में आ पहुंचा। इन श्रद्धालुओं के मुताबिक राम स्वरूप भगत को छोड़कर सभी पहली बार इस तरह की दंडवत यात्रा पर हिमाचल आए हैं। राम स्वरूप 2005 में भी इसी तरह माता के दर्शन को आ चुके हैं। इनका कहना है कि मां ज्वाला जी और मां चिंतपूर्णी की शक्ति के बूते ही यह संभव हो पाया है।
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