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पंचायत चुनाव काे लेकर की तिथियां जैसे-जैसे नजदीक आ रही हैं, अब इसमें राेमांच भी बढ़ता जा रहा है। अब चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी बड़े नेताओं के दरबार में भी हाजिरी भरने लगे हैं। नामांकन भरने से पहले प्रत्याशी नेताओं का आशीर्वाद लेने पहुंच रहे हैं। पंचायत चुनाव में स्थानीय नेताओं का राेल अहम हाेता है। खासकर जिला परिषद, प्रधान और बीडीसी के चुनाव काे लेकर नेताओं की इज्जत भी दाव पर रहती है।
नेताओं के क्षेत्र में उनका कितना दबदबा है, यह चुनाव परिणाम ही तय करते हैं। अगर उनके अपने प्रत्याशियाें की जीत हाे ताे नेताओं का कद भी अपने क्षेत्र में बढ़ जाता है। वहीं अगर हार हाे जाए ताे नेताओं काे क्षेत्र में अपने चुनाव काे लेकर भी खतरा दिखाई देने लग जाता है। ऐसे में पंचायत चुनाव पर नेताओं की कड़ी नजर रहती है।
प्रत्याशी मांग रहे प्रचार में मदद
नेताओं के दरबार में हाजिरी लगाकर अब प्रत्याशी प्रचार में मदद मांग रहे हैं। हालांकि जिला परिषद में खुलकर प्रत्याशी के पक्ष में नेता प्रचार करते हैं, मगर पंचायताें में अन्य पदाें पर नेता खुलकर प्रचार में नहीं आते।
हालांकि प्रत्याशियाें का प्रयास रहता है कि वह अपने करीबी नेताओं काे प्रचार में लाएं ताे उनकी जीत सुनिश्चित हाे जाएगी। नेताओं की एक नुक्कड़ सभा ही उन्हें जीत दिलाने के लिए काफी हाेगी। ऐसे में वह अब नेताओं के चक्कर काट रहे हैं, ताकि नेता उनके पक्ष में प्रचार के लिए अाएं।
जिला परिषद में ही दिया जाता है टिकट पंचायत चुनाव में सिर्फ जिला परिषद के प्रत्याशियाें काे ही पार्टी टिकट देती हैं। जबकि अन्य सीटाें के लिए प्रत्याशियाें काे पार्टी टिकट बिना ही मैदान में उतारा जाता है। ऐसे में इसमें ज्यादातर प्रत्याशी बिना पार्टी के भी मैदान में हाेते हैं।
जबकि वह जीत जाते हैं ताे किसी ना किसी पार्टी में शामिल हाेकर अपने राजनीतिक पकड़ काे मजबूत कर लेते हैं। जिला परिषद के चुनाव में नेताअाें का अहम राेल रहता है। इनमें अगर पार्टी समर्थित प्रत्याशी की हार हाे जाए ताे सीधे ताैर पर स्थानीय नेता काे नुकसान हाेता है।
प्रचार में न जाएं ताे भी रखते हैं नजर
भले ही पंचायत चुनाव में बड़े नेता प्रचार में न जाएं, मगर क्षेत्र में वह अपने कार्यकर्ताओं से पार्टी समर्थित या अपने खास प्रत्याशी के संबंध में वाेट मांगने के लिए कहते हैं। यही नहीं नेता हर पंचायत में राेजाना की रिपाेर्ट भी लेत रहते हैं कि किस गांव या क्षेत्र से उन्हें वाेट आ रहे हैं और कहां के लाेग बागी हैं। अपने खास प्रत्याशियाें काे अपने पास बुलाकर वह रणनीति भी बताते हैं कि किस तरह से वाेटराें काे रिझाना है और कैसे वह जीत सकेंगे।
पहले भीड़ दिखाकर दिखाया जाता था दबदबा
हालांकि काेराेना संकट ने चुनाव प्रचार और नामांकन का पूरा सलीका बदल दिया है, मगर काेराेना से पहले चुनाव प्रचार और नामांकन में भीड़ दिखाकर ही अपना दबदबा दिखाया जाता था। खासकर जिला परिषद के नामांकन के लिए जब प्रत्याशी जाते थे, ताे इसमें स्थानीय नेता उनके साथ नामांकन पत्र दाखिल करवाते थे और सैकड़ाें कार्यकर्ता भी साथ में प्रत्याशी की दावेदारी साबित करते थे।
मगर इस बार केवल पांच लाेगाें काे ही प्रचार और नामांकन की अनुमति है, ऐसे में अब नुक्कड़ सभाओं पर ही प्रत्याशी सीमित रह गए हैं।
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