आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं के अविष्कार की एक नई तकनीक से अब इस्केमिक स्ट्रोक जैसी मस्तिष्क समस्याओं में नसों के कार्यों और मस्तिष्क के रक्त प्रवाह में बदलाव का अध्ययन करने में आसानी होगी। यह अविष्कार न्यूरोलॉजिकल समस्याओं का पता लगाने व बेहतर उपचार करने में सहायक सिद्ध होगा। इस तकनीक से मस्तिष्क के क्षतिग्रस्त हिस्सों (घावों) का पता आसानी से लगाया जा सकेगा।
डॉ. शुभजीत राय चौधरी ने बताया, इस आविष्कार का आधार तथ्य है कि नसों की कोशिकाओं (न्यूरन्स) और रक्त वाहिकाओं (वास्कुलेचर), जिसे न्यूरोवास्कुलर कपलिंग (एनवीसी) कहा जाता है, के बीच जटिल परस्पर प्रतिक्रियाएं होती हैं। इनसे मस्तिष्क में रक्त का प्रवाह नियंत्रित होता है। इस्केमिक स्ट्रोक जैसी बीमारियों का एनवीसी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
न्यूरोवैस्कुलर अनकपलिंग के चलते ऐसे मामले होते हैं जिनमें नर्व के इम्पल्स रक्त प्रवाह का संचार नहीं कर पाते हैं। इसलिए एनवीसी का समय से पता लगना ऐसी बीमारियों की रोकथाम, निदान और उपचार के लिए महत्वपूर्ण है।
उन्होंने बताया कि उनकी विधि में मल्टी-मोडल ब्रेन स्टिमुलेशन सिस्टम का उपयोग किया गया है। ताकि न्यूरोवास्कुलर यूनिट (एनवीयू) के विभिन्न कम्पोनेंट को अलग-अलग स्टिमुलेट किया जाए और ईईजी (इलेक्ट्रोएन्सेफालोग्राफी) से इसके परिणाम स्वरूप विद्युत तंत्रिका संकेतों को और नियर इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी (एनआईआरएस) से रक्त प्रवाह को देखा जाए।
ईईजी व एनआईआरएस का पहले से ही अलग-अलग उपयोग हो रहा है, मगर आईआईटी मंडी के इनोवेटरों द्वारा विकसित प्रोटोटाइप ने उन्हें जोड़ कर एकल उपचार इकाई बना दी है ताकि एनवीसी की अधिक सटीक तस्वीर मिले।
देश में 30 मिलियन लोगों को न्यूरोलाॅजिकल बीमारियां
सर्वे के अनुसार भारत में लगभग 30 मिलियन लोग न्यूरोलाॅजिकल बीमारियों से पीड़ित हैं। इनमें मिर्गी, स्ट्रोक, पार्किंसंस डिजीज़, मस्तिष्क आघात और तंत्रिका संक्रमण शामिल हैं। कम्प्युटोंन एवं इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. शुभजीत राय चौधरी के नेतृत्व में किए गए इस शोध के परिणाम आईईई जर्नल ऑफ ट्रांसलेशनल इंजीनियरिंग इन हेल्थ एंड मेडिसिन में प्रकाशित किए गए। गौरतलब है कि टीम को इस अविष्कार के लिए हाल ही में यूएस पेटेंट भी मिल गया है।
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