हिमाचल विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी पर दबाव बनाने के लिए बगावत करना अब नेताओं का फैशन बन गया है। पहले अपने ही राजनीतिक दल से बागी हो जाओ, फिर कुछ समय बाद किसी आका से सैटिंग करके वापस पार्टी में शामिल हो जाओ। भाजपा-कांग्रेस दोनों ही दलों में टिकट आवंटन से असंतुष्ट नेताओं का पार्टी से इन-आउट होना आम बात हो गई है।
चूंकि पिछले चुनाव में बगावत करने वालों पर हुई अनुशासनात्मक कार्रवाई इन चुनाव में वापसी का कारण बन गई, लेकिन इस बार पहले से दोगुने-तिगुने बागी दोनों पार्टियों में खड़े हो गए। मुद्दा यह कि पार्टियां बागियों पर एक्शन तो लेती हैं, लेकिन वह सिर्फ दिखावे मात्र के लिए रह गया है, इसलिए बगावत करने वाले दिनों-दिन बढ़ रहे हैं।
पार्टियों का बागियों पर कोई स्टैंड नहीं
हिमाचल में सभी राजनीतिक दलों का अपने बागियों पर कार्रवाई को लेकर कोई स्टैंड नहीं रहा है। पार्टियां हमेशा उन पर कभी नरम कभी गरम दिखीं। पार्टी विरोधी गतिविधियों में संलिप्त पाए जाने पर बागियों को एक चुनाव में बाहर का रास्ता दिखाया जाता तो दूसरा चुनाव आते-आते उन्हें न केवल पार्टी में शामिल कर लिया जाता है, बल्कि उन्हें टिकट देकर चुनाव भी लड़वाया जाता है। इस बार चुनाव में भी यही देखने को मिला। भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों ने बागियों की न केवल घर वापसी कराई, बल्कि उन्हें टिकट देकर चुनाव भी लड़ा रहे हैं।
बागियों पर कार्रवाई सिर्फ दिखावा
राजनीतिक पार्टियों में बागियों पर कार्रवाई सिर्फ दिखावा मात्र है। कार्यकर्ताओं या लोगों की आंखों में धूल झोंकने के लिए पार्टी बागियों को 6 साल के निष्कासित करने का फैसला तो ले लेती है, लेकिन उस पर कायम नहीं रहती और चुनाव में वोट बैंक की राजनीति को देखते हुए उन्हें वापस पार्टी में शामिल करना, कार्यकर्ताओं का मनोबल तोड़ रहा है।
न केवल घर वापसी, बल्कि मनचाही उम्मीदवारी मिली बरागटा को
जुब्बल कोटखाई विधानसभा क्षेत्र से पूर्व बागवानी मंत्री नरेंद्र बरागटा के बेटे चेतन बरागटा को भाजपा से बगावत करने का इनाम ही मिला है। इस बार चुनाव में उनकी न केवल घर वापसी हुई, बल्कि उन्हें टिकट देकर प्रत्याशी भी बनाया गया। चेतन ने 2021 के विधानसभा उपचुनाव में पार्टी प्रत्याशी नीलम सरैक के खिलाफ बागी होकर बतौर आजाद उम्मीदवार चुनाव लड़ा। उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी नीलम सरैक की बहुत बुरी हार हुई थी। उनकी जमानत तक जब्त हो गई थी। आम विधानसभा चुनाव आते-आते पार्टी ने बागी चेतन बरागटा को फिर से वापस बुला लिया।
जनारथा को भी शिमला टिकट का गिफ्ट
इसी तरह विपक्षी दल कांग्रेस ने शिमला शहरी सीट से बागी रहे हरीश जनारथा को भी पिछले चुनाव में पार्टी को तीसरे नंबर पहुंचाने का गिफ्ट दिया है। उनकी न केवल घर वापसी हुई, बल्कि कांग्रेस ने शिमला सीट से टिकट देकर उन्हें प्रत्याशी बनाया है। हरीश जनारथा ने 2017 के विधानसभा चुनाव में टिकट न मिलने पर पार्टी प्रत्याशी हरभजन सिंह भज्जी के खिलाफ बतौर आजाद उम्मीदवार चुनाव लड़ा था।
इस सीट पर तब कांग्रेस को भाजपा से करारी हार का सामना करना पड़ा था और पार्टी प्रत्याशी की जमानत तक जब्त हो गई थी। बाद में कांग्रेस ने हरीश पर अनुशासनात्मक कार्रवाई करते हुए उन्हें 6 साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया था। यहां पर भी पार्टी अपनी बात पर कायम नहीं रही और चुनाव आते-आते उन्हें 6 साल से पहले पार्टी में न केवल अपने में शामिल कर दिया, बल्कि टिकट देकर शिमला सीट से प्रत्याशी भी बनाया।
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