गुजरात विधानसभा चुनाव हिमाचल के साथ न कराने की सजा प्रदेश और यहां की जनता भुगत रही है। राज्य में 50 दिन से विकास कार्य ठप हैं। अगले एक सप्ताह तक भी आदर्श आचार संहिता (MCC) के कारण नए काम नहीं हो पाएंगे, जबकि प्रदेश की सभी 68 विधानसभा सीटों पर वोटिंग हुए 21 दिन बीत गए है। फिर भी प्रदेश में MCC की बंदिशें लगी हुई हैं।
आमतौर पर हिमाचल और गुजरात में एक साथ विधानसभा चुनाव होते आए हैं, लेकिन 2017 और 2022 में चुनाव आयोग ने इन दोनों राज्यों में चुनाव की तिथियां अलग-अलग घोषित की हैं। इससे कांग्रेस ने आयोग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल भी उठाए। मगर, कोई असर नहीं हुआ।
पिछली बार और इस बार भी गुजरात चुनाव देरी से होने की सजा हिमाचल ही भुगत रहा है। वर्ष 2017 में भी लगभग 2 महीने तक MCC के कारण विकास की रफ्तार ठप रही थी। इस बार भी 56 दिन तक विकास कार्य ठप रहेंगे। इसी तरह एक सप्ताह का वक्त सरकार बनने में लगेगा।
यह काम हो रहे प्रभावित
प्रदेश में चुनाव आचार संहिता के कारण नए काम के टेंडर नहीं हो पा रहे हैं। इससे खासकर प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY), स्मार्ट सिटी और नाबार्ड योजना के अलावा विभिन्न विभागों के नए काम लटके हुए हैं। इसका ज्यादा असर PMGSY के टाइम बाउंड काम पर ज्यादा पड़ रहा है। बर्फबारी से निपटने के इंतजाम भी विभाग नहीं कर पा रहा है।
ट्रांसफर, प्रमोशन और नई नियुक्तियां भी लटकी हुई हैं। चुनाव में देरी के पीछे आयोग चाहे जो भी तर्क दे। इसे कतई जायज नहीं ठहराया जा सकता कि एक राज्य के चक्कर में दूसरे राज्य की जनता को दो माह तक सरकार के बगैर रखा जाए और वोटिंग के बावजूद रिजल्ट के लिए एक महीने का इंतजार कराया जाए।
हिमाचल में 14 अक्टूबर, गुजरात में 3 नवंबर को ऐलान
हिमाचल में विधानसभा चुनाव की घोषणा 14 अक्टूबर को कर दी गई थी। इसके तहत प्रदेश में आचार संहिता 56 दिन लागू रहेगी। वहीं गुजरात चुनाव का ऐलान 3 नवंबर को किया गया। गुजरात में आचार संहिता 37 दिन लागू रहेगी। इस लिहाज से हिमाचल में 20 दिन ज्यादा बंदिशें झेलनी पड़ रही हैं।
2017 में भी 2 महीने लगी थीं बंदिशें
2017 में भी गुजरात चुनाव की वजह से हिमाचल की जनता ने लगभग 60 दिन तक चुनाव आचार संहिता की बंदिशें झेली थीं। तब भी चुनाव आयोग के इस निर्णय की खूब आलोचना हुई थी।
अधिकारी व कर्मचारी काम करने को नहीं तैयार
हिमाचल में चुनाव आचार संहिता के कारण और सरकार नाम की चीज नहीं होने से अधिकतर सरकारी दफ्तरों में अधिकारी व कर्मचारी बैठने को तैयार नहीं हैं। इससे लोगों के काम नहीं हो पा रहे हैं। इसका सीधी मार प्रदेश की जनता पर पड़ रही है।
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