हिमाचल में 5 साल तक BJP को पानी पी-पीकर कोसने वाले कांग्रेस के धुरंधरों की कलाई इस चुनाव में खुल गई। कांग्रेस के 6 से ज्यादा नेता खुद को CM पद का दावेदार बताते हैं, मगर इनमें से एक भी ऐसा नहीं निकला, जिसने अपनी ‘होम सीट’ छोड़कर BJP के किसी बड़े चेहरे के सामने उसके गढ़ में जाकर चुनाव लड़ने का दम दिखाया हो।
वीरभद्र सिंह और कांग्रेस के इन ‘बड़े’ नेताओं में सबसे बड़ा फर्क क्या है? वह इसी से साफ हो गया। कांग्रेस नेताओं के इसी ‘सेफ गेम’ की बदौलत पार्टी ने BJP पर मनोवैज्ञानिक बढ़त लेने का मौका खो दिया। युद्ध की तरह सियासत का भी उसूल है कि इसमें मनोवैज्ञानिक बढ़त उसी को मिलती है, जो जीत-हार की परवाह किए बगैर ‘दुश्मन’ के गढ़ में घुसकर पूरे जज्बे के साथ लड़ते हुए नजर आए।
हिमाचल विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का कोई बड़ा चेहरा BJP के CM फेस जयराम या उनके मंत्रियों को उनके विधानसभा हलके में जाकर चुनौती देने का साहस नहीं दिखा पाया। सारे कांग्रेसी नेता ‘सेफ गेम' खेल रहे हैं। वीरभद्र सिंह के निधन के बाद हिमाचल में यह पहले विधानसभा चुनाव हैं और कांग्रेस पार्टी में नेतृत्व को लेकर एक तरह से वैक्यूम-सा बना हुआ है।
ऐसे में सुखविंद्र सिंह सुक्खू, मुकेश अग्निहोत्री, ठाकुर कौल सिंह, आशा कुमारी, ठाकुर रामलाल जैसे कांग्रेसी नेता खुद को CM पद का दावेदार बताने का कोई मौका नहीं चूकते। इनमें से एक-दो को छोड़ दें तो ज्यादातर नेता अपने ही हलके में बुरी तरह फंसे हैं। इनमें से कुछ नेता तो अपनी ही पार्टी के दूसरे प्रत्याशियों के प्रचार तक के लिए नहीं निकल पा रहे।
BJP में 2 मंत्रियों की सीट हाईकमान ने बदली
यही स्थिति BJP की भी है। पार्टी 5 साल के दौरान प्रदेश में रिकॉर्ड विकास कराने का दम तो भरती है मगर उसके CM फेस जयराम ठाकुर से लेकर बिक्रम सिंह ठाकुर, वीरेंद्र कंवर, डॉ. राजीव बिंदल तक में से कोई नेता अपनी ‘सुरक्षित’ सीट छोड़कर दूसरे चुनाव क्षेत्र से उतरने का साहस नहीं दिखा पाया।
हां, BJP हाईकमान ने जरूर दो मंत्रियों- सुरेश भारद्वाज और राकेश पठानिया के विधानसभा हलके बदल दिए, लेकिन दोनों ही नेता हाईकमान के फैसले से संतुष्ट नहीं हैं और उनके व उनके समर्थकों में इस बात की टीस है। BJP के ही पूर्व मंत्रियों रविंद्र रवि और रमेश चंद धवाला का निर्वाचन क्षेत्र भी हाईकमान ने ही बदला है।
वीरभद्र दिखाते रहे ऐसा साहस
हिमाचल प्रदेश में अपनी सीट बदलकर चुनाव लड़ने का साहस केवल पूर्व CM स्व. वीरभद्र सिंह ही दिखाते रहे। उन्होंने अलग-अलग समय पर रोहड़ू, रामपुर, जुब्बल-कोटखाई, शिमला ग्रामीण और अर्की से चुनाव लड़े। वीरभद्र सिंह ने लोकसभा चुनाव भी मंडी संसदीय हलके से लड़ा।
सीट बदलने पर हार गए धूमल
वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में BJP ने अपने पूर्व मुख्यमंत्री प्रेमकुमार धूमल को उनकी परंपरागत सीट, हमीरपुर की जगह सुजानपुर से मैदान में उतारा। BJP ने धूमल को उस चुनाव में अपना CM चेहरा भी घोषित किया। इसके बावजूद वह सुजानपुर सीट से चुनाव जीत नहीं पाए। 2017 की उस हार ने धूमल के सियासी करियर का एक तरह से अंत कर दिया।
पंजाब में सिद्धू को हराने उनके सामने उतरे मजीठिया
पड़ोसी प्रदेश पंजाब में इसी साल फरवरी में हुए विधानसभा चुनाव में शिरोमणि अकाली दल के दिग्गज नेता बिक्रम सिंह मजीठिया ने कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू को उनके गढ़ में जाकर चुनौती दी थी। मजीठिया अपनी परंपरागत सीट- मजीठा छोड़कर सिद्धू के सामने उनकी अमृतसर ईस्ट सीट से चुनाव मैदान में उतरे।
यह बात अलग है कि मजीठिया चुनाव हार गए, लेकिन उन्होंने सिद्धू को भी जीतने नहीं दिया। इन दोनों दिग्गजों के आमने-सामने होने की वजह से पंजाब विधानसभा चुनाव में सबकी नजरें अमृतसर ईस्ट सीट पर ही लगी रहीं। सिद्धू-मजीठिया की उस लड़ाई में चुनाव आम आदमी पार्टी की जीवनजोत कौर ने जीता।
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