हिमाचल में आम आदमी पार्टी (AAP) ने बड़े जोश से धमाकेदार एंट्री की थी, लेकिन अब ऐसा लग रहा मानो यहां AAP को सांप सूंघ गया हो। चर्चा ये है कि AAP ने क्या कांग्रेस से कोई डील की है! क्योंकि उत्तराखंड में AAP ने अलग-अलग जिलों में 1 से 14 प्रतिशत तक वोट लेकर जैसे कांग्रेस का खेल बिगाड़ा है और वहां BJP ने फिर से सरकार बनाई। प्रदेश में एंट्री से लेकर वोटिंग तक की AAP की स्थिति की एनालिसिज पढ़िए...
राजनीतिक पंडितों की मानें तो "झाड़ू' के लिए पहाड़ की सियासी चढ़ाई आसान नहीं है। हालांकि पड़ोसी राज्य पंजाब के नतीजों के बाद दिल्ली के CM अरविंद्र केजरीवाल और पंजाब के CM भगवंत मान ने हिमाचल का सियासी पारा सातवें आसमान पर पहुंचा दिया था। तब माहौल भी AAP के पक्ष में लग रहा था।
इस साल मार्च व अप्रैल कांग्रेस प्रदेश में निष्क्रिय हो गई थी, तब भाजपा का सीधा मुकाबला AAP से माना जा रहा था, लेकिन जैसे जैसे चुनाव प्रचार आगे बढ़ता गया। AAP मैदान पर कमजोर पड़ती गई। जब तक सत्येंद्र जैन के पास हिमाचल की कमान थी, तब तक पार्टी का प्रचार सही ट्रैक पर आगे बढ़ रहा था।
जैन के जेल जाते ही पार्टी की धरातल पर गतिविधियां आधी रह गई और पार्टी बेकफुट पर आ गई। प्रदेश में जब प्रचार पीक पर आया तब मनीष सिसोदिया ने भी हिमाचल से मुंह मोड दिया। अरविंद केजरीवाल का फोकस भी गुजरात में रहा।
जितना सत्ता विरोधी वोट AAP लेगी, कांग्रेस को नुकसान
अब चर्चा इस बात की है कि AAP जितना ज्यादा वोट लेगी, कांग्रेस को उतना ही नुकसान होगा, क्योंकि प्रदेश में हर बार 4 से 6% का सत्ता विरोधी वोट ही ज्यादा स्विंग होता है। यही वोट चुनाव में जीत-हार सुनिश्चित करता है। प्रदेश की सत्ता में अभी BJP है। जाहिर है कि सत्ता विरोधी वोट का कांग्रेस को इसका फायदा मिलना था, लेकिन AAP के चुनाव लड़ने से यह वोट बंटने का अनुमान है।
पहाड़ पर AAP के कमजोर पढ़ने की पांच वजह<..trong>..
पहली वजह: यहां के लोगों का भरोसा स्थापित पार्टी होना
हिमाचल में भाजपा और कांग्रेस सालों से लोगों के बीच हैं व आज दोनों प्रदेश में पूर्ण स्थापित दल हैं। भाजपा का करीब 40 साल का इतिहास हो चुका है। कांग्रेस भी कई बार सरकार बना चुकी है। कांग्रेस के वीरभद्र सिंह 6 बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। ऐसे में लोगों का एकदम से AAP पर भरोसा करना मुश्किल है।
दूसरी वजह: पहाड़ के लोग फ्री-सेवाओं पर कम भरोसा करते
दुनिया जानती है कि हिमाचल प्रदेश पहाड़ों का राज्य है और पहाड़ों के रास्तों की तरह वहां के लोगों की जिंदगी भी बेहद दुर्गम है। जितना मुश्किल पहाड़ों को चढ़ना है, उससे ज्यादा मुश्किल पहाड़ों में रहकर जीवन यापन करना है। प्रदेश के लोग सीधे-सादे लोग हैं। आत्मसम्मान का जीवन जीते हैं, वे फ्री की सेवाएं लेना ज्यादा पसंद नहीं करते।
तीसरी वजह: कोई बड़ा चेहरा नहीं जुड़ना
AAP के पास कोई बड़ा व दमदार चेहरा नहीं है। पंजाब के नतीजे आने के बाद हिमाचल के कई नेताओं ने AAP के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल से संपर्क भी साधा, लेकिन तब AAP ने आम वर्कर्स के साथ आगे बढ़ना ही उचित समझा। किसी को भी टिकट देने का वादा नहीं किया, इसलिए लोग पार्टी से नहीं जुड़े।
चौथी वजह: अरविंद केजरीवाल द्वारा समय नहीं देना
हिमाचल में AAP के पिछड़ने की एक वजह अरविंद केजरीवाल का समय नहीं देना है। पिछले 4 महीनों में केजरीवाल ने पूरा जोर गुजरात पर ही लगाया है और ऐसा लगता है कि उन्होंने हिमाचल प्रदेश से मुंह मोड़ लिया है। विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के लिए लगातार मेहनत करनी पड़ती है, लेकिन पार्टी के सबसे बड़े चेहरे और पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने हिमाचल में अपनी सक्रियता लगभग शून्य कर दी है।
5वीं वजह: सत्येंद्र जैन पर भ्रष्टाचार के आरोप
AAP ने दिल्ली सरकार के कैबिनेट मंत्री सत्येंद्र जैन को हिमाचल प्रदेश में पार्टी का प्रभारी बनाया था, लेकिन जैन को मई के आखिर में ईडी ने गिरफ्तार कर लिया था। इससे बाद पार्टी की गतिविधियों पर हिमाचल में विराम सा लग गया।
9 सियासी दल खा चुके मात
हिमाचल में AAP से पहले 9 अलग-अलग सियासी दल तीसरा विकल्प देने की कोशिश कर चुके हैं, लेकिन सभी के हाथ नाकामी लगी। इनमें तृणमूल कांग्रेस (TMC), समाजवादी पार्टी (SP), बहुजन समाज पार्टी (BSP), शिव सेना, राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी (NCP), जनता दल, लोक जनशक्ति पार्टी (LJP), माकपा, भाकपा, हिमाचल लोकहित पार्टी (हिलोपा), हिमाचल विकास कांग्रेस (हिविकां) सहित कई अन्य दल अपनी किस्मत आजमा चुके हैं, लेकिन यहां की जनता ने इन दलों को बुरी तरह से नकारा है।
हिविकां ने कांग्रेस को सत्ता से किया था दूर
भ्रष्टाचार के आरोपों में फंसे पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. पंडित सुख राम ने कांग्रेस छोड़ने के बाद 1998 में हिमाचल विकास कांग्रेस का गठन करके सभी 68 विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव लड़ा था। तब मंडी जिले की 4 व लाहौल-स्पीति की 1 सीट को छोड़ कर मतदाताओं ने हिविकां को पूरी तरह से नकार दिया था। 5 सीटें जीत हिविकां कांग्रेस पार्टी को सत्ता से दूर रखने में सफल जरूर रही थीं, लेकिन भाजपा को समर्थन देकर धूमल ने सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 2003 में वोटरों ने हिविकां को पूरी तरह से नकार दिया था।
महेश्वर सिंह भी बना चुके हिलोपा
भाजपा से रिश्तों में खटास के बाद पूर्व सांसद महेश्वर सिंह ने भी 2012 के विधानसभा चुनाव में हिमाचल लोकहित पार्टी का गठन किया था। तब हिलोपा ने भी सभी हलकों में विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन सिर्फ महेश्वर सिंह ही चुनाव जीत पाए थे।
लोजपा से महेंद्र सिंह ठाकुर जीते
रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) ने भी हिमाचल में अपनी जड़ें जमाने का प्रयास किया। तब महेंद्र सिंह ठाकुर को छोड़ कोई अन्य प्रत्याशी अपनी जमानत तक नहीं बचा पाया था। प्रदेश में इस वक्त AAP फतेहपुर सीट पर अच्छी स्थिति में मानी जा रही है। इसके अलावा पांवटा साहिब में भी AAP को अच्छे प्रदर्शन की आस है।
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