बेशक हिमाचल में पुरुषों की तुलना में महिलाएं हर बार 3 से 4% ज्यादा मतदान करती हैं। मगर यह दुर्भाग्य ही है कि राजनीति में कम अवसर मिलने की वजह से पॉलिटिक्स में महिलाएं कम एक्टिव हैं। इस बार भी विधानसभा चुनाव में भाग्य आजमा रहे 412 प्रत्याशियों में से केवल 24 महिलाएं ही चुनाव लड़ रही है।
हैरानी की बात यह है कि पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश के 40 सालों इतिहास में सिर्फ 42 महिलाएं ही विधानसभा की चौखट को लांघ सकी हैं।
इस बार के विधानसभा चुनाव की बात करें तो BJP सहित अन्य राजनीतिक दलों ने सिर्फ 14 महिलाओं को ही टिकट दिया है। हैरानी इस बात की है कि 68 सीटों पर BJP ने 6 महिला उम्मीदवार ही मैदान में उतारे हैं। यानी 9% सीटें भी महिलाओं को नहीं दी गई।
इसी तरह कांग्रेस ने तो 5% से भी कम यानी 3 महिलाओं और AAP ने भी मात्र 5 महिलाओं को अपना प्रत्याशी बनाया है, जबकि आधी आबादी महिलाओं की है। 24 महिलाओं में सिर्फ एक महिला को ही जीत मिल पाई है। वह भाजपा प्रत्याशी रीना कश्यप हैं। इन्होंने सिरमौर के पच्छाद से चुनाव लड़ा था।
सिर्फ 4 महिलाओं के जीतने की उम्मीद
BJP ने शाहपुर से सरवीण चौधरी, इंदौरा से रीता धीमान, पच्छाद से रीना कश्यप, रोहड़ू से शशिबाला, चंबा से नीलम नैयर और बड़सर से माया शर्मा को मैदान में उतारा है।
कांग्रेस ने आशा, दयाल प्यारी और चंपा ठाकुर पर भरोसा जताया है। डलहौजी से आशा कुमारी, पच्छाद से दयाल प्यारी और मंडी सदर से चंपा ठाकुर पर भरोसा जताया है।
AAP ने नूरपूर से मनीषा कुमारी, सुंदरनगर से पूजा ठाकुर, भोरंज से रजनी कौशल, सोलन से अंजू राठौर और नाचन से जबना चौहान को प्रत्याशी बनाया है।
इस बार भी 4.4% महिलाओं ने अधिक किया मतदान
पॉलिटिकल पार्टियों की अनदेखी की वजह से 1972 से 2017 तक तीन दशक में मात्र 42 महिलाएं ही विधानसभा का चौखट लांघ पाई हैं। सच्चाई यह है विधानसभा, लोकसभा और पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव में अधिकतम बार महिलाओं ने ही ज्यादा मतदान किया है। इस भी भी 72.4% पुरुष वोटरों और 76.8% महिला वोटरों ने वोट डाले हैं।
पंचायती राज में महिलाओं को 50% आरक्षण
हिमाचल की पूर्व प्रेम कुमार धूमल सरकार ने 2007-12 के कार्यकाल में पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए 50% पद आरक्षित कर दिए थे। इससे पंचायती राज संस्थाओं में तो महिलाएं, पुरुषों से अधिक संख्या में जीतकर आ रही है। मगर, विधानसभा में महिलाओं को कम अवसर मिल रहे हैं।
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