हिमाचल प्रदेश के टिंबर ट्रेल रोप-वे (TTR) पर हुए हादसे ने प्रशासन के आपदा से निपटने के इंतजामों की पोल खोलकर रख दी। राहत एवं बचाव कार्य के लिए नालागढ़ से NDRF की टीम करीब पांच घंटे बाद मौके पर पहुंची, जबकि TTR से नालागढ़ की दूरी सिर्फ 47 किलोमीटर है। इस दूरी को तय करने में ज्यादा से ज्यादा डेढ़ घंटा लगना चाहिए।
गनीमत यह रही कि जब तक NDRF की टीम टिंबर ट्रेल पहुंची, तब तक टिंबर ट्रेल रोपवे (TTR) का तकनीकी स्टाफ दो ट्रॉलियों में फंसे 11 में से आठ लोगों को सुरक्षित रेस्क्यू कर चुका था। इस हादसे के बाद लोग प्रशासन और NDRF के देरी से पहुंचने पर सवाल उठा रहे हैं।
होटल प्रबंधन ने भी समय पर नहीं दी सूचना
टिंबर ट्रेल रोपवे में ट्राली (केबल कार) सोमवार सुबह 11 बजे फंसी। आधे घंटे तक इसमें फंसे पर्यटक टिंबर ट्रेल होटल प्रबंधन से संपर्क करते रहे, लेकिन होटल प्रबंधन की ओर से सकारात्मक रिस्पॉन्स नहीं मिलने पर इन्होंने पुलिस और मीडिया को करीब सवा 12 बजे इसकी सूचना दी। तब तक होटल प्रबंधन ने भी अपनी जिम्मेदारी से बचते हुए जिला प्रशासन को इसकी सूचना नहीं दी।
12.30 बजे फंसे हुए पर्यटकों ने दी जानकारी: DC
DC सोलन कृतिक कुल्हरी ने बताया कि प्रशासन को करीब 12.30 बजे टिंबर ट्रेल हादसे की सूचना इसमें फंसे पर्यटकों ने दी है। इसके बाद प्रशासन लोकल लेवल पर राहत एवं बचाव कार्य के रिस्पॉन्स देखता रहा। उन्होंने बताया कि दोपहर एक से डेढ़ बजे के करीब नेशनल डिजॉस्टर रिस्पॉन्स फोर्स (NDRF) को सूचना दी गई।
इसलिए उठाए जा रहे सवाल
पहला सवाल घटना के करीब दो घंटे बाद NDRF को सूचना देने को लेकर लोग कर रहे है, जबकि दूसरा सवाल NDRF के लगभग अढ़ाई घंटे देरी से पहुंचने को लेकर किया जा रहा है। DC सोलन के मुताबिक NDRF को डेढ़ बजे सूचना दे गई थी। ऐसे में नालागढ़ से NDRF को टिंबर ट्रेल पहुंचने में करीब अढ़ाई घंटा कैसे लग गया? जबकि राज्य सरकार ने बरसात शुरू होने से पहले ही NDRF और SDRF को अलर्ट पर रहने के निर्देश दे रखे है,
जिला प्रशासन से मिली लेट सूचना: NDRFएडिशनल कमांडेंट NDRF यूनिट नालागढ़ सागर सिंह पाल के मुताबिक DC कार्यालय सोलन से टिंबर ट्रेल हादसे की सूचना मिलते ही टीम घटनास्थल के लिए रवाना की गई। उनके मुताबिक NDRF को सूचना दोपहर 1:50 मिनट पर मिली, जिसके 10 मिनट बाद टीमें मौक़े के लिए रवाना हुई। ट्रैफिक के कारण भी नालागढ़ से परवाणु पहुंचने में वक्त लगा है।
जिले में ही इतना वक्त लगा तो दुर्गम क्षेत्रों में कैसे होगा रेस्क्यू?
हिमाचल प्रदेश में बरसात के दौरान हर साल आपदाएं आती रहती है। जगह-जगह भू-स्खलन, पत्थर गिरने और नदी नालों में बाड़ इत्यादि घटनाओं से जान और माल का भारी नुकसान होता है। मसलन राहत और बचाव दल की भूमिका अहम हो जाती है। ऐसे में यदि एक जिला के भीतर ही NDRF की टीम पांच घंटे से अधिक देर बाद पहुंचेगी तो किन्नौर, चंबा और लाहौल स्पीति जैसे दुर्गम जिलों में समय पर राहत एवं बचाव कार्य कैसे संभव हो पाएगा।
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