हिमाचल प्रदेश का सेब देश के महानगरों के फाइव स्टार होटलों में भी धाक जमा चुका है। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, मद्रास सहित देश के हर महानगर में हिमाचल के सेब की मांग रहती है। यहां सेब की परंपरागत रॉयल किस्म के अलावा विदेशी किस्मों का भी उत्पादन होता है। हिमाचल प्रदेश में विगत डेढ़ दशक का आंकड़ा देखा जाए तो वर्ष 2010 में सबसे अधिक 4.46 करोड़ पेटी सेब का उत्पादन हुआ था।
सेब उत्पादन के लिए शिमला जिले का जुब्बल, कोटखाई, नारकंडा, चौपाल, कोटगढ़, क्यारी, रोहड़ू इलाका विख्यात है। शिमला जिले के अलावा कुल्लू, मंडी, किन्नौर, चंबा, लाहौल-स्पीति व सिरमौर में भी सेब पैदा होता है। लेकिन इस बार करीब 4 हजार करोड़ के सेब कारोबार की मार्केट डाउन हो गई है। बागवानों को अपनी उपज के बेहतर दाम नहीं मिल रहे हैं।
हिमाचल प्रदेश में रिकॉर्ड 4 करोड़ पेटी सेब का उत्पादन होने और एक साथ मार्केट में अधिक सप्लाई से अच्छे भाव नहीं मिल रहे हैं। पिछले 15 दिन में ही प्रति पेटी 1000 से 1200 रुपए तक थोक रेट कम हो गए हैं। पहले जो 25 से 30 किलोग्राम की पेटी 2700 रुपए की बिक रही थी, वह अब घटकर 1700 रुपए तक आ गई है।
इस वजह से गिरा हिमाचल के सेब का रेट
हिमाचल में मुख्यत: सेब उत्पादन तीन बेल्ट में होता है, इसे लोअर मिडिल व हाई बेल्ट कहा जाता है। लोअर बेल्ट में 15 जुलाई से 15 अगस्त तक सेब का सीजन चलता है। इस दौरान देश की पूरी मार्केट खाली होती है। ऐसे में बागवानों को अच्छे दाम मिलते हैं, लेकिन लोअर एलिवेशन में सेब उत्पादन का एरिया काफी कम है। फिर मिडिल बेल्ट में 15 अगस्त से 15 सितंबर के बीच सेब सीजन चलता है।
मिडिल बेल्ट में हिमाचल में सबसे अधिक एरिया आता है और इस कारण सेब उत्पादन का सबसे बड़ा हिस्सा इसी बेल्ट का होता है। इस समय देश की सेब मार्केट में बड़ी मात्रा में सेब पहुंचता है। इस दफा हिमाचल में लोअर और मिडिल बेल्ट में सेब की बंपर पैदावार हुई है। इस कारण लोअर बेल्ट का सेब अभी सिर्फ मार्केट में पहुंच रहा और मिडिल बेल्ट का सेब भी पूरी क्षमता के साथ पहुंचा है। ऐसे में मार्केट डाउन हो गई। इस बार असमय बारिश और ओलावृष्टि से भी सेब का आकार व रंग प्रभावित हुआ है।
2007 से लेकर 2020 तक इतनी पेटी पहुंची हिमाचली सेब के बाजारों में
साल पेटी
2007 2.96 करोड़ पेटी
2008 2.55 करोड़ पेटी
2009 1.40 करोड़ पेटी
2010 4.46 करोड़ पेटी
2011 1.38 करोड़ पेटी
2012 1.84 करोड़ पेटी
2013 3.69 करोड़ पेटी
2014 2.80 करोड़ पेटी
2015 3.88 करोड़ पेटी
2016 2.40 करोड़ पेटी
2017 2.08 करोड़ पेटी
2018 1.65 करोड़ पेटी
2019 3.75 करोड़ पेटी
2020 2.80 करोड़ पेटी
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