हिमाचल के शिमला नगर निगम (MC) पर लाखों रुपए की फिजूलखर्ची के आरोप लगे हैं। दरअसल, MC ने चार महीने पहले शिमला के जंगलों में 80 लाख रुपए खर्च कर गमले लगा डाले। दावा किया गया कि इनमें खिलने वाले रंग-बिरंगे फूल शिमला की खूबसूरती पर चार चांद लगाएंगे। जबकि सच ये है कि देखरेख के अभाव में इनमें से 85% से ज्यादा फूल सूख चुके है। इस पूरी कवायद में फायदा सिर्फ गमले लगाने वाले चंद ठेकेदारों को हुआ।
अब सवाल उठ रहे हैं कि जब शिमला शहर के अंदर बंदरों की वजह से फैंसिंग में लगे फूल-पौधे तक बचाना मुश्किल है तो ओपन में यह गमले लगाने का फैसला क्यों और किसकी सलाह से लिया गया? इन गमलों के जरिये किन अफसरों ने किन ठेकेदारों को फायदा पहुंचाया?
हैरानी वाली बात ये भी है कि शिमला निगम निगम के अफसरों ने देवदार के हरे-भरे जंगलों में भी फूलदार पौधों के गमले लगा डाले। यह सारे गमले मार्बल स्टोन के बने हैं। यही नहीं, गमले लगवाने वाले अफसरों ने इस बात की कोई प्लानिंग नहीं की कि इनमें जो पौधे लगाए जा रहे हैं, उनकी देखरेख की क्या व्यवस्था रहेगी?
लोग बोले- काम खत्म, पैसा हजम
शिमला नगर निगम के अफसरों की इस फिजूलखर्ची से शहर के लोग बेहद खफा है। शिमला के रवि कहते हैं कि नगर निगम को स्मार्ट सिटी मिशन के तहत काफी पैसा मिला। यह पैसा कहां और कैसे खर्च करना है? उसकी सही प्लानिंग करने में नगर निगम के अफसर पूरी तरह फेल रहे।
अर्चित भारद्वाज ने जंगलों में लगाए गए गमलों का मज़ाक उड़ाते हुए कहा कि जंगल में ये गमले लगाने के पिछे निगम की क्या सोच रही? यह बात समझ नहीं आई। अगर गमले लगा भी दिए तो उनकी देखरेख करनी चाहिए थी। उसे इस तरह अनदेखा करने का मतलब है काम खत्म पैसा हजम।
यहां लगाए गए गमले
शिमला नगर निगम के अफसरों ने बालूगंज, समरहिल, सांगटी, नवबहार और छोटा शिमला में मार्बल स्टोन के गमले लगाए। इनमें लाल गुलाब, गेंदा, कमल और सुरजमुखी के पौधे लगाए गए, लेकिन गमले लगाने के बाद नगर निगम अफसरों ने इनकी देखरेख की कोई व्यवस्था नहीं की। नतीजा- सारे गमले स्मार्ट सिटी के तहत किए जा रहे काम की पोल खोल रहे हैं।
ठेकेदार बोले- हम देखरेख कर रहे
स्मार्ट सिटी का काम देख रहे ठेकेदार दलीप सिंह ने दावा किया कि वह गमलों की देखरेख कर रहे हैं। इनमें लगे पौधों को सूखने से बचाने के लिए प्रयास हो रहे हैं।
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