हिमाचल में सिरमौर की पच्छाद विधानसभा क्षेत्र में 3 प्रत्याशियों के बीच कांटे की टक्कर है। पच्छाद विधानसभा में भाजपा के 2 बड़े नेताओं की साख दांव पर लगी है। भाजपा नेताओं के प्रति लोगों में नाराजगी है। भाजपा प्रत्याशी रीना कश्यप के लिए जहां लोगों की नाराजगी मुश्किलें पैदा कर सकती हैं।
वहीं अब मुसाफिर के मैदान में रहने से चुनौती मिल रही है। यहां पर कुल 6 प्रत्याशियों द्वारा नामांकन भरे गए थे। एक प्रत्याशी का नामांकन पत्र रद्द होने के बाद 5 प्रत्याशी मैदान में बाकी बचे हैं। अभी 29 अक्टूबर तक फार्म वापस लेने का समय है। अभी यहां कांग्रेस से टिकट न मिलने से नाराज चल रहे वरिष्ठ नेता व 7 बार के विधायक रहे गंगूराम मुसाफिर को मनाने में पार्टी को कामयाबी नहीं मिली है।
विधानसभा क्षेत्र से संबंध रखने वाले दो प्रमुख नेताओं के लिए खुद को साबित करना एक बड़ी चुनौती है। इस बार के चुनाव में न केवल नाराज भाजपाई, बल्कि जनता ने भी इन दोनों प्रमुख नेताओं को सबक सिखाने की ठानी हुई है। जनता का कहना है कि ज्यादा ऊंचा कद पाकर अपने क्षेत्र के लोगों को नजर अंदाज किया गया है। संगठन के लोगों को भी नाराज किया है।
पच्छाद विधानसभा क्षेत्र में राष्ट्रीय देवभूमि पार्टी को अच्छा समर्थन मिल रहा है, मगर इससे सबसे ज्यादा भाजपा को नुकसान उठाना पड़ सकता है। उप चुनाव में जीतकर विधानसभा पहुंची भाजपा प्रत्याशी रीना कश्यप को कम समय मिलने के कारण वह लोगों के बीच खास पहचान नहीं बना पाई है। वही इस मामले में गत उप चुनाव की आजाद प्रत्याशी एवं इस बार कांग्रेस के टिकट पर मैदान में उतरी दयाल प्यारी को समर्थक मजबूती प्रदान कर रहे हैं।
दयाल प्यारी को गंगूराम मुसाफिर का ज्यादा नुकसान
गंगूराम मुसाफिर के मैदान में डटे रहने से सबसे ज्यादा नुकसान दयाल प्यारी को ही हो रहा है। अब अगर गंगूराम मुसाफिर मैदान में डटे रहते हैं तो रणनीति के तहत भाजपा नेताओं को यहां अपनी साख बचाने में कामयाबी मिल सकती है। गंगूराम मुसाफिर को कांग्रेस के नाराज नेताओं का अच्छा समर्थन मिल रहा है, मगर यहां पर्दे के पीछे कुछ और ही खेल चल रहा है।
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