हिमाचल की राजनीति में शिमला संसदीय क्षेत्र का दबदबा रहा है। इस क्षेत्र से संबंध रखने वाले 3 दिग्गज नेता डॉ. यशवंत सिंह परमार, ठाकुर रामलाल और वीरभद्र सिंह न सिर्फ मुख्यमंत्री बने, बल्कि लंबे समय तक अपना वर्चस्व बनाए रखा। अब यह तीनों दिग्गज नेता नहीं रहे तो इनकी विरासत कौन संभाल सकता है, यह विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद तय होने वाला है।
भाजपा में इनकी विरासत को आगे बढ़ाने वाला इस संसदीय क्षेत्र से कोई उठता नहीं दिखा। यूं भी पार्टी ने सत्ता में आने पर जयराम ठाकुर को ही फिर से मुख्यमंत्री बनाने की बात कही है तो नजरें कांग्रेस की ओर जाती हैं। शिमला संसदीय क्षेत्र से प्रतिभा सिंह, कर्नल धनीराम शांडिल, हर्षवर्धन सिंह, विक्रमादित्य सिंह, रोहित ठाकुर, अनिरूद्ध सिंह, कुलदीप राठौर जैसे नेता संबंध रखते हैं।
जब भी कांग्रेस की सरकार बनी तो मुख्यमंत्री इसी संसदीय क्षेत्र से बना। इस विरासत को आगे बढ़ाने के लिए हॉली लॉज पर सबसे ज्यादा नजरें हैं। प्रतिभा सिंह इस समय मंडी संसदीय क्षेत्र से सांसद हैं तो साथ ही प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष भी हैं। प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता में वापसी करवाने की सबसे ज्यादा जिम्मेदारी भी इन्हीं पर है। इसी तरह गाहे-बगाहे कर्नल धनीराम शांडिल का नाम भी उछला।
तिकड़ी ने बनाया हिमाचल की राजनीति में दबदबा
शिमला संसदीय क्षेत्र से संबंध रखने वाले डॉ. परमार, ठाकुर रामलाल और वीरभद्र सिंह ने लंबे समय पर हिमाचल की राजनीति में अपना दबदबा बनाए रखा। इन तीनों कांग्रेस नेताओं ने एक साथ यहां की राजनीति में अलग-अलग दायित्व निभाए।
डॉ. यशवंत सिंह परमार को हिमाचल निर्माता के नाम से भी जाना जाता है। वे सिरमौर जिला के बागथन के चनालग गांव के रहने वाले थे। वे पहली बार 1952 में प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। 1956 में केंद्र शासित प्रदेश बनने पर वे इस पद से हटे, लेकिन 1963 में फिर से मुख्यमंत्री बन गए। वे 1977 तक इस पद रहे। उनके प्रयासों से ही 1971 में प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला।
ठाकुर रामलाल शिमला जिला की जुब्बल तहसील के बरथाटा से संबंध रखते थे। वे कभी विधानसभा चुनाव नहीं हारे। 1957 से लेकर अब तक वे लगातार विधानसभा पहुंचते रहे। उन्होंने 1977 में 2 माह के लिए मुख्यमंत्री का कार्यभार संभाला, फिर 1980 में कांग्रेस के सत्ता में आने पर मुख्यमंत्री बने। 1983 में प्रदेश की राजनीति में वीरभद्र सिंह की एंट्री होने पर ठाकुर रामलाल को आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया। इसके बाद भी वे जुब्बल-कोटखाई से 2002 तक विधायक रहे।
वीरभद्र सिंह का प्रदेश की राजनीति में वर्चस्व रहा है। वे 6 बार हिमाचल के मुख्यमंत्री बने। उन्होंने केंद्र की राजनीति से शुरूआत की। 1962, 1967, 1971, 1980 में लोकसभा चुनाव जीते। इसके बाद 1983 में प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने बने। 2009 में एक बार फिर से सांसद चुने गए और केंद्र की मनमोहन सिंह सरकार में इस्पात मंत्री बनाए गए।
आज यह तीनों दिग्गज नेता नहीं रहे तो सभी की निगाहें इस बात पर है कि क्या अब इस तरह का नेतृत्व शिमला संसदीय क्षेत्र से मिल पाएगा। 8 दिसंबर को विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद बनने वाली सरकार की तस्वीर से इस बात का फैसला होगा।
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