सोलन में BJP-कांग्रेस को भितरघात का खतरा:प्रचार के बाद भी बदले नहीं समीकरण; नालागढ़-अर्की में त्रिकोणीय, सोलन-कसौली-दून में सीधा मुकाबला

सोलन7 महीने पहले
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हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव प्रचार थम गया है, लेकिन सोलन जिला में प्रचार के बाद जो चुनावी समीकरण दिख रहे हैं, उसमें कोई भी सीट किसी पार्टी या उम्मीदवार के लिए सेफ नहीं मानी जा रही। कांग्रेस और भाजपा के लिए चिंता की बात यह है कि जिले की 3-3 सीटों पर भितरघात का खतरा है।

अब देखना यह है कि इससे किसे ज्यादा नुकसान पहुंचता है। हलके की 3 सीटों सोलन सदर, कसौली और दून में पुराने प्रतिद्वंदियों में कड़ा मुकाबला हो रहा है, जबकि नालागढ़ और अर्की विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस-भाजपा को निर्दलीय प्रत्याशी कांटे की टक्कर दे रहे हैं।

नालागढ़ में केएल ठाकुर के डटने से बंटेंगे भाजपा के वोट
खासकर, नालागढ़ और अर्की सीट पर भाजपा को खतरा है। दोनों सीटों पर प्रभावी निर्दलीय उम्मीदवारों के होने से समीकरण बने हैं। नालागढ़ में चुनाव की घोषणा से पहले ही उठापटक मच गई थी। जब कांग्रेस के विधायक लखविंदर राणा पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा ने उन्हें टिकट देकर चुनाव उम्मीदवार बनाया तो पूर्व विधायक केएल ठाकुर नाराज होकर बागी हो गए। उनके साथ करीब 150 भाजपा पदाधिकारियों ने भी पार्टी छोड़ दी।

इसके बाद भी भाजपा को यहां भितरघात का सामना करना पड़ सकता है। उनके चुनावी मैदान में रहने से यहां पर भाजपा के वोट बंटने की संभावना है। इस सीट पर यही हाल कांग्रेस का भी है। पार्टी के प्रत्याशी बावा हरदीप सिंह की सक्रियता के कारण ही लखविंदर राणा ने कांग्रेस छोड़ी थी। वहीं भाजपा के लखविंदर राणा, कांग्रेस उम्मीदवार बावा हरदीप सिंह व केएल ठाकुर 2017 का विधानसभा चुनाव भी आपस में लड़ चुके हैं।

तब इन तीनों का किरदार अलग था। केएल ठाकुर भाजपा, लखविंदर राणा कांग्रेस तो बावा निर्दलीय चुनाव लड़े थे। जीत कांग्रेस की टिकट पर लखविंदर राणा की हुई थी। यहां पर AAP के धर्मपाल ठाकुर की स्थिति भी खराब नहीं है। वे कांग्रेस से AAP में गए हैं। जिला परिषद अध्यक्ष रहे हैं। पंजाब से सटे होने का कुछ फायदा भी उन्हें मिल सकता है।

अर्की में निर्दलीय राजेंद्र ने बनाया तिकोना मुकाबला
अर्की में इस बार भाजपा ने एक बार फिर से पुराने चेहरे और 2 बार के विधायक गोविंद राम को मैदान में उतारा है। इससे पूर्व में प्रत्याशी रहे टिकट के बड़े दावेदार रतन पाल रेस से बाहर हो गए। उनके समर्थकों ने सीधा विरोध तो नहीं किया, लेकिन कई अंदरखाते इधर-उधर हो लिए हैं।

अर्की विधानसभा सीट पर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे राजेंद्र ठाकुर ने मुकाबले को तिकोना बनाया हुआ है। वे कांग्रेस और भाजपा को बराबरी की टक्कर दे रहे हैं। नामांकन के बाद दाड़लाघाट में बड़ी रैली करके वे अपनी ताकत दिखा चुके हैं। राजेंद्र ठाकुर ने पिछले साल हुए उप चुनाव में टिकट न मिलने पर कांग्रेस छोड़ी थी।

यहां पर कांग्रेस की ओर से निवर्तमान विधायक संजय अवस्थी तो भाजपा से 2 बार के विधायक रहे गोविंद राम शर्मा मैदान में हैं। गोविंद राम और संजय अवस्थी के बीच 2012 के विधानसभा चुनाव में मुकाबला हो चुका है, तब गोविंद जीते थे। अब यहां समीकरण राजेंद्र ठाकुर के निर्दलीय लड़ने से बदले हैं।

सोलन सदर सीट पर मुख्य लड़ाई ससुर-दामाद के बीच है।
सोलन सदर सीट पर मुख्य लड़ाई ससुर-दामाद के बीच है।

सोलन में ससुर-दामाद में दिलचस्प मुकाबला
सोलन सीट पर भाजपा और कांग्रेस में क्रॉस वोटिंग होने की आशंका है। यहां पर ससुर-दामाद में मुकाबला है। भाजपा में एक गुट डॉ. राजेश कश्यप का टिकट काटने के लिए सक्रिय रहा। इसके बावजूद उन्हें टिकट मिल गया तो वह गुट सीधा विरोध तो नहीं कर पाया, लेकिन पूरे मन से साथ दे, इसमें संशय है। इसी तरह चुनाव से पहले कांग्रेस के कई नेता कर्नल धनीराम शांडिल से नाराज चल रहे थे। शांडिल ने इनमें से कई को मना लिया तो कुछ अभी भी अंदरखाते साथ नहीं माने जा रहे।

वहीं चुनाव में आमने-सामने होने के बावजूद ससुर-दामाद रिश्तेदारी भी मर्यादा में निभाते हैं। दोनों एक दूसरे पर निजी हमले करते नहीं दिखते। पिछले चुनाव में कांग्रेस के कर्नल शांडिल नजदीकी मुकाबले में डॉ. राजेश से 671 वोट से जीते थे। वहीं सोलन सदर में दोनों पार्टियों में जबरदस्त गुटबाजी भी है, लेकिन यह दोनों एकजुटता दिखाते हुए साथ चल रहे हैं। AAP की अंजू राठौर भी चुनावी मैदान में हैं। वे पहले कांग्रेस में थीं और अब वे पार्टी के वोट बैंक में सेंध लगा सकती हैं।

कसौली में इन 3 दिग्गजों के बीच कांटे की चुनावी टक्कर है।
कसौली में इन 3 दिग्गजों के बीच कांटे की चुनावी टक्कर है।

कसौली में डॉ. सैजल को चौका लगाने से रोकने की चुनौती
कसौली सीट पर पिछले 2 चुनाव कांग्रेस गुटबाजी की वजह से ही नजदीकी मुकाबले में हारी थी। इस बार फिर विनोद सुल्तानपुरी पार्टी के उम्मीदवार हैं तो उनका विरोध करने वाले चुप्पी साधे हुए हैं। हालांकि पार्टी ने कुछ नाराज नेताओं को मनाने के लिए उन्हें संगठन में पद का तोहफा दिया गया है। वहीं यहां कांग्रेस के सामने भाजपा के डॉ. राजीव सैजल को जीत का चौका लगाने से रोकने की चुनौती है।

कांग्रेस उम्मीदवार विनोद सुल्तानपुरी पिछले 2 चुनाव नजदीकी मुकाबले में हारे हैं। 2012 के विधानसभा चुनाव में सुल्तानपुरी मात्र 24 वोट से हारे तो 2017 के चुनाव में इन दोनों के वोटों का अंतर 442 ही रहा। इस सीट पर कांग्रेस की गुटबाजी भारी पड़ती रही है। यहां पर AAP के हरमेल धीमान चुनाव लड़ रहे हैं। धीमान भाजपा से AAP में गए हैं और इनकी परवाणू क्षेत्र में लोगों के बीच काफी अच्छी पकड़ है।

दून में भाजपा-कांग्रेस में सीधा मुकाबला
दून सीट पर भी भाजपा-कांग्रेस के पिछले चुनाव उम्मीदवारों के बीच सीधा मुकाबला होता दिख रहा है। भाजपा की ओर से निवर्तमान विधायक परमजीत सिंह पम्मी मैदान में हैं। पूर्व विधायक राम कुमार कांग्रेस के टिकट पर फिर उन्हें चुनौती दे रहे हैं। पिछले चुनाव में पम्मी, राम कुमार पर भारी पड़े थे। राम कुमार के पिता चौधरी लज्जा राम इस सीट से 4 बार विधायक रहे हैं। 2003 के बाद यहां कांग्रेस-भाजपा बारी-बारी जीतती रही है।

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