ग्राउंड रिपोर्टहिमाचल की डगशाई जेल की कहानी,VIDEO:जहां महात्मा गांधी मेहमान और उनका कातिल गोडसे था आखिरी कैदी; माथे पर सलाखों से दागे जाते नंबर

पवन ठाकुर, डगशाई(सोलन)2 महीने पहले
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देश में जब अंग्रेजों का राज था, तब 2 ऐसी जेल थीं, जिनका नाम सुनकर कैदियों की रूह कांप जाती थी। इनमें एक अंडमान-निकोबार और दूसरी डगशाई जेल है। डगशाई जेल हिमाचल के सोलन जिले में बनी है। जिसमें गर्म सलाखों से दागकर कैदियों के नंबर लिखे जाते थे। इसी डगशाई जेल में महात्मा गांधी भी आए।

उनका कातिल नाथूराम गोडसे इस जेल का आखिरी कैदी था। इसीलिए इस जेल को काल पानी कहा जाता था। हाल ही में गांधी-गोडसे पर आई फिल्म की वजह से यह जेल फिर चर्चा में है...पढ़िए इस ऐतिहासिक जेल की पूरी कहानी...

1920 में आए थे महात्मा गांधी
प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटिश सेना ने बड़ी संख्या में आयरिश सैनिकों को बंदी बनाया था। इनमें से कइयों को हिमाचल लाकर डगशाई जेल में बंद करके कठोर यातनाएं दी गईं। आयरिश सैनिकों ने जेल की प्रताड़ना सहते हुए यहां अनशन भी किया था। यह बात जब जेल से बाहर निकली तो 1 अगस्त 1920 को महात्मा गांधी उन्हीं सैनिकों से मिलने डगशाई आए। इस दौरान वह 2 दिन तक इस जेल में रुके।

बताते हैं कि गांधी जी, आयरिश नेता इयामन डे वेलेरा के दोस्त और प्रशंसक भी थे। यही कारण था कि हिंदुस्तान की जेल में बंद होकर भी अपनी आजादी की जंग लड़ रहे आयरिश सैनिकों से मिलने बापू डगशाई पहुंचे। उस समय बापू को जिस कोठरी में ठहराया गया था, उसके बाहर महात्मा गांधी की तस्वीर लगी है। साथ ही उसमें एक कुर्सी और मेज के अलावा दीवार पर बापू की चरखे वाली बड़ी तस्वीर टंगी है।

शिमला ट्रायल के दौरान गोडसे रहा डगशाई जेल में
महात्मा गांधी की हत्या करने बाद जब गोडसे पर केस चला तो इसकी सुनवाई शिमला स्थित मिंटो कोर्ट में हुई। इसी दौरान जब गोडसे को ट्रायल के लिए शिमला लाया गया था तो उसे डगशाई में रखा गया। इस जेल के मेन गेट के साथ वाली सेल में उसे बंद किया गया था। आज भी यहां दीवार पर गोडसे की फोटो लटकी है। बताया जाता है कि नाथूराम गोडसे डंगशाई जेल का अंतिम कैदी था, जिसके बाद सरकार ने यहां किसी को भी बंद करना छोड़ दिया।

डगशाई जेल क्यों थी हिमाचल का काला पानी
डगशाई की इस जेल को हिमाचल का काला पानी कहा जाता था, क्योंकि यहां बंद कैदियों को कठोर यातनाएं दी जाती थीं। उन्हें तड़पाया जाता था। कइयों को इसी जेल में फांसी पर भी लटकाया गया। दरअसल इस जेल का नाम ही दाग-ए-शाही था, जो बाद में डगशाई पड़ गया। यहां बंदियों के माथे और शरीर के दूसरे भागों पर लोहे की गर्म सलाखों व सांचों से दाग लगा दिया जाता था।

इस जेल में आयरिश सैनिकों के साथ ही भारत की आजादी के मतवाले भी बंद रहे। 1857 के दौरान कसौली क्रांति के वीर सैनानियों को भी इसी जेल में डालकर प्रताड़ित किया गया था। किलेनुमा यह जेल दूर से T शेप में नजर आती है। इस जेल में कुल 54 कोठरियां हैं, जिसमें से 16 को एकांत कैद कक्ष कहा जाता है। जेल की छत व फर्श लकड़ी की बनी है। कहा जाता है कि जो कैदी ज्यादा खतरनाक होते, उन्हें एकांत कैद कक्ष में डाल दिया जाता था। इन कोठरियों में हवा व रोशनी का कोई प्रबंध नही होता था।

1849 में हुआ था डगशाई जेल का निर्माण
अंग्रेजी शासन काल में 1849 में यहां सेंट्रल जेल का निर्माण किया गया था। उस समय इस पर 72,875 रुपए खर्च हुए थे। चारों तरफ से बिलकुल बंद इस जेल में रोशनी एवं हवा के लिए एक ही खिड़की रखी गई थी। अंडर ग्राउंड पाइप लाइन से अंदर हवा आने की व्यवस्था थी। कैदियों की कोठरियों के गेट मजबूत लोहे से बनाए गए थे, जिन्हें आम तौर से काट पाना मुश्किल था।

एक मजबूत किलानुमा इस जेल का मेन गेट एक बार बंद होने पर इसे फांदकर न तो बाहर जाया जा सकता था और न ही कोई अंदर आ सकता था। ईस्ट इंडिया कंपनी ने पटियाला के राजा से डगशाई व आसपास के 5 गांवों को खरीदा था। सबसे पहले यहां पर अंग्रेजी सैनिकों की छावनी बनाई थी।

शिमला की मिंटो कोर्ट में चला था ट्रायल
महात्मा गांधी की 30 जनवरी 1948 को गोली मारकर हत्या कर दी गई। दिल्‍ली के बिड़ला भवन में शाम की प्रार्थना सभा से उठते वक्त गोडसे ने सेमी ऑटोमेटिक पिस्टल से उन्हें तीन गोलियां मारी थी. इसके बाद शिमला की मिंटो कोर्ट में ट्रायल चला. नाथूराम गोडसे को 8 नवंबर, 1949 को फांसी की सजा सुनाई गई थी.