प्रखंड क्षेत्र का मामला:बीटीएएम ने फूलों की खेती का निरीक्षण किया, फंगस सहित अन्य बीमारियों को दूर करने के दिए गए टिप्स

डंडई2 महीने पहले
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प्रखंड क्षेत्र के बालाझखड़ा गांव निवासी फिरोज आलम के द्वारा किए गए गेंदा फूल की खेती का बीटीएम अजय कुमार साहू ने निरीक्षण किया। निरीक्षण के दौरान लगभग 1 एकड़ में फैले गेंदा फूल की खेती देखकर बीटीएम काफी गदगद हुए। वही बीटीएम ने कृषक को गेंदा फूल खेती करने कि आसान विधि एवं फूलों कि खेती से संबंधित कई महत्वपूर्ण जानकारी दी।

इस दौरान किसान फिरोज आलम ने फूलों में लगे फंगस रोग की जानकारी मांगी जिस पर बीटीएम ने सही समय पर दवा का छिड़काव एवं अन्य वैज्ञानिक विधि से खेती करने का टिप्स बताया। इधर कृषक द्वारा बड़े पैमाने पर गेंदा फूल की खेती किए जाने पर बीटीएम अजय कुमार साहू काफी खुश थे। उन्होंने किसान की हौसला अफजाई करते हुए सभी तरह की सुविधाएं देने की बात कही। मौके पर बीटीएम ने कहा कि राजकीय बागवानी मिशन( गैर कार्यान्वित जिला) योजना से जोड़कर लाभ दिलाया जाएगा साथ ही फूलों के पटवन के लिए पंपसेट व अन्य उपकरण अनुदानित दर पर दिलाने की बात कही। मालूम हो कि किसान फिरोज आलम ने फूलों की खेती की शुरुआत छोटे स्तर से की थी। बाद में आमदनी बढ़ी तो खेती का रकबा भी बढ़ा दिया।

फिरोज आलम ने बताया कि गेंदा फूल की खेती तब शुरू कि जब वह आर्थिक दुश्वारियों का सामना कर रहे थे। इसी बीच उन्हें गेंदा के फूल की खेती करने का आइडिया आया। हिम्मत जुटाकर खेती की शुरुआत की। इन दिनों गेंदा फूल की खेती कर फिरोज आत्मनिर्भर बनने की राह पर हैं। गेंदा फूल की खेती की शुरुआत 5 कट्ठा बंजर जमीन से शुरू की थी, फिर उसे बढ़ाकर 10 कट्ठा किया। फिलहाल लगभग एक एकड़ भूमि में गेंदा की खेती कर दूसरों के लिए मिसाल बन गए हैं। किसान फिरोज आलम गेंदे का फूल लगाकर अन्य किसानों को भी इस खेती के बारे में सोचने को मजबूर किया है। उन्होंने बताया कि बाजारों में गेंदे का फूल की मांग काफी रहती है। शादी विवाह, पूजा पाठ व अन्य समारोह के मौके पर फुल लेने के लिए लोगों के आर्डर आने लगे हैं।

फिलहाल एक किलो गेंदा फूल की कीमत 40 रुपए है लेकिन डिमांड बढ़ने पर 40 से 50 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बेचते हैं। पहले जहां एक दिन में 10 किलो फूल तोड़ा जाता था, वहीं अब 30 से 40 किलो फूल तोड़ा जा रहा है। इससे उनकी कमाई भी अच्छी हो रही है। फिरोज आलम ने बताया कि इसके पहले बैलाझखड़ा गांव में वे पारंपरिक तरीके से खेती किया करते थे। लेकिन मौसम आधारित खेती होने के कारण पर्याप्त लाभ नहीं मिल पा रहा था। इसके बाद उन्होंने डंडई मुख्य बाजार में फूल कि एक छोटी सी दुकान खोली। बाद में फूलों से सजावट का भी काम करने लगे। लेकिन फूल बाहर से मंगाने पर मुनाफा कमा होता था। साथ ही गर्मी के दिनों में फूल सूख भी जाते थे।

तभी मैंने फूल की खेती करने के बारे में सोचा। इसके बाद विशेषज्ञों से संपर्क कर उन्होंने गेंदा फूल की खेती के बारीकियों को जाना। आज वह गेंदा फूल की खेती कर आत्मनिर्भर बनने की राह पर हैं। उन्होंने बताया कि शीघ्र ही अब वे गेंदा फूल की खेती के साथ-साथ रजनीगंधा व गुलाब फूल और पपीते की भी बड़े पैमाने पर खेती की योजना बना रहे हैं।