बांग्लादेश मत्स्य विभाग के पूर्व निदेशक एवं वैज्ञानिक डॉ. बिनय कुमार चक्रवर्ती ने मात्स्यिकी विज्ञान महाविद्यालय गुमला का भ्रमण किया। इस भ्रमण के दौरान उन्होंने महाविद्यालय के विद्यार्थियों एवं सभी प्राध्यापकों के साथ वार्तालाप किया। महाविद्यालय के सह प्राध्यापक डॉ. प्रशांत जना ने डॉ बिनय कुमार चक्रवर्ती का संक्षिप्त विवरण देते हुए बताया कि वैज्ञानिक डॉ बिनय, बांग्लादेश मत्स्य विभाग के पूर्व निदेशक के साथ-साथ कृषि विश्वविद्यालय के पर्यवेक्षक एवं अंतरराष्ट्रीय सलाहकार भी हैं।
उन्होंने कुल 70 शोध पत्र एवं 13 किताबें लिखी हैं। वह स्थायी कृषि और संबद्ध विज्ञानों के लिए वैश्विक अनुसंधान पहल पर आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लेने हेतु भारत आए थे। डॉ. बिनय ने अपने व्याख्यान की शुरुआत बांग्लादेश के भौगोलिक स्थिति से की। अपने व्याख्यान में उन्होंने बांग्लादेश की मात्स्यिकी से अवगत कराते हुए वहां पालन की जाने वाली प्रमुख मछलियों जैसे- मड ईल, तिलपिया, पंगास, हिल्सा, कोइ मछली, टेंगरा, कॉमन कार्प आदि के बारे में बताया। उन्होंने बंगलादेश में उपस्थित, मात्स्यिकी संसाधन, वहां के जैव विविधता एवं निर्यात अर्जन की स्थिति से भी सभी को अवगत कराया।
मछली की औषधीय एवं पोषक गुणवत्ता के बारे में चर्चा करते हुए कुचिया मछली के बारे में बताया। बांग्लादेश की जनजातीय समुदाय कुचिया मछली को खाना पसंद करते हैं एवं इसका उपयोग कमजोरी, अस्थमा, मधुमेह, रक्ताल्पता एवं बवासीर के उपचार के लिए किया जाता हैं। उन्होंने बताया कि कुचिया के ताजा रक्त को खाने से कमजोरी, अस्थमा एवं रक्ताल्पता ठीक होता है एवं इसके मांस को पकाकर खाने से मधुमेह, रक्ताल्पता एवं बवासीर ठीक होता है। उन्होंने केकड़ा के लिए विकसित तीन तकनीक जुवेनाइल पालन, पेन में क्रैब फैटेनिंग एवं पिंजड़े में क्रैब फैटेनिंग के बारे में बताया।
उन्होंने बायोफ्लोक, समन्वित मछली पालन (बत्तख सह मछली पालन, मुर्गी सह मछली पालन, बागवानी सह मछली पालन, धान सह मछली पालन), बॉटम क्लीन रेस वे पोंड कल्चर जैसे अन्य तकनीक के बारे में भी चर्चा की। व्याख्यान के उपरान्त डॉ. बिनय ने विद्यार्थियों एवं सह-प्राध्यापकों के संशय को दूर किया।
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