गणतांत्रिक भारत विभिन्न तरीके, राजनीतिक प्रयोगों व आंदोलनों का साथी रहा है। इनमें झारखंड की भी अग्रणी भूमिका रही है। राज्य के कई स्वतंत्रता सेनानी इन प्रयोगों व आंदोलनों में अपना अहम योगदान दिए है।
राज्य की दिशा व दशा को तय करने में उनकी महत्ती भूमिका रही है। 15 नवंबर 2000 को 18 जिला 81 विस व 14 लोकसभा क्षेत्रों के साथ बिहार से अलग होकर झारखंड राज्य बना। उपरोक्त 18 जिलों में गुमला जिला भी शामिल था।
गुमला वीर सपूतों की भूमि रही है। यहां कई ऐसे वीर सपूत पैदा हुए, जिन्होंने देश की खातिर अपनी प्राणों की आहुति दे दी। एक सपने के साथ जिला का स्थापना हुआ था। एकीकृत बिहार के समय, इस जिले का कोई विकास नहीं हुआ।
राज्य बनने के बाद लोगों के मन में विकास की उम्मीद जगी। मगर राज्य स्थापना के बाद भी गुमला जिला विकास की किरणों से कोसों दूर है। गुमला की तस्वीर, तो नहीं बदली लेकिन आज गुमला की पहचान नक्सलवाद व उग्रवाद प्रभावित जिला के रूप में बन चुकी है।
रोजगार के अभाव में बेरोजगार युवक समाज के मुख्य धारा से भटकते जा रहे है। परिणामस्वरूप कई युवा अपराध में संलिप्त होकर जेल की सलाखों के पीछे है। इतना ही नहीं खनिज संपदाओं से परिपूर्ण इस जिला के निवासी आज भी भय, भूख, भ्रष्टाचार, पलायन, बेरोजगारी जैसे ज्वलंत समस्याओं के मकड़जाल में फंसे हुए है। लोग विकास के रहनुमा के इंतजार में है। ताकि उन्हें भय, भूख, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, पलायन आदि समस्याओं से मुक्ति मिल सके।
पलायन जिले की सबसे बड़ी समस्या है। जो थमने का नाम नहीं ले रहा है। आये दिन ह्यूमन ट्रैफिकिंग के मामलों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। मानव तस्करी में रोक लगाने हेतु गठित सीडब्लयूसी व प्रशासन नाकाम साबित हो रही है। यहां की कई बेटियां अब भी दिल्ली व अन्य बड़े महानगरों में गुलामी की जिंदगी जी रही हैं।
गुमला के लोगों की वर्षों पुरानी मांगे रेल लाइन का विस्तारीकरण, कर कारखानों की स्थापना, बाइपास सड़क का निर्माण, लॉ, मेडिकल, टेक्निकल सहित अन्य उच्च स्तरीय पढ़ाई, आज भी सिर्फ मांगे बन कर रह गयी है।
आदिवासी बहुल इस जिला को शुरू से ही शिक्षा के क्षेत्र में हब बनाने की मांग की जा रही है। ताकि गरीब भी उच्च शिक्षा सुलभता से प्राप्त कर सके। यदि जिले का समुचित विकास हो पाता और तो यहां के गरीब बेटे-बेटियों को अपनी गाढ़ी कमाई खर्च कर दूसरे प्रदेशों का रास्ता देखना नहीं पड़ता।
जिले की 11 लाख लोगों की आबादी अपनी मांगों की पूर्ति के लिए सरकार, प्रशासन व जनप्रतिनिधियों की ओर आशा भरी निगाहों से टिकटिकी लगाये हुए है। बहरहाल आज ही का दिन था। जब 26 जनवरी 1950 को हम सभी ने गणतंत्र दिवस मनाना आरंभ किया।
आज ही के दिन प्रण लिया कि हर एक भारतवासी को भाई-बहन की तरह देखेंगे और उनके हक व अधिकार के लिए खुद की खुशियों को कुर्बान कर देंगे। मगर आज भी हम अपने गणतंत्र को गुणतंत्र में नहीं बदल सके है।
हम सभी समस्याओं व लोगों के हक व अधिकार को नहीं देख अपनी खुशियों में मग्न है। जरूरत है गणतंत्र को गुणतंत्र में बदलने की। अब तो जनता की उम्मीदों पर सरकार, प्रशासन व जनप्रतिनिधि को प्राथमिकता के आधार पर उनकी मांगों की पूर्ति हेतु कटिबद्ध हो जाना चाहिए।
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