आगामी 26 मई को ज्येष्ठ मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि पर अपरा एकादशी का व्रत रखा जाएगा। एकादशी तिथि बुधवार सुबह 10ः32 बजे से गुरुवार सुबह 10ः54 बजे तक रहेगी। ज्योतिषविद् के अनुसार अपरा एकादशी के दिन अनजाने में हुए पापों का उद्धार के लिए भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।
इस एकादशी का व्रत करने से जीवन के संकट दूर होते हैं और मनोवांछित फल व मोक्ष की प्राप्ति होती है। अजला और अपरा दो नामों से जानी जाने वाली एकादशी के दिन का पुण्य भी काफी मिलता है। इस दिन व्रत करने से कीर्ति, पुण्य और धन में वृद्धि होती है।
वहीं मनुष्य को ब्रह्म हत्या, परनिंदा और प्रेत योनि जैसे पापों से मुक्ति मिल जाती है। इस दिन तुलसी, चंदन, कपूर से भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। पंडित जगदीश दिवाकर ने बताया कि पुराणों में अपरा एकादशी का बड़ा महत्व बताया गया है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार जो फल गंगा तट पर पितरों को पिंडदान करने से प्राप्त होता है, वही अपरा एकादशी का व्रत करने से प्राप्त होता है। जो फल कुंभ में केदारनाथ के दर्शन या बद्रीनाथ के दर्शन, सूर्यग्रहण में स्वर्णदान करने से फल मिलता है, वही फल अपरा एकादशी के व्रत के प्रभाव से मिलता है।
मान्यता : राजा महीध्वज को प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने के लिए ऋषि ने रखा था व्रत
अपरा एकादशी के दिन व्रती कथा भी सुनते हैं। मान्यता है कि महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। राजा का छोटा भाई वज्रध्वज बड़े भाई से द्वेष रखता था। एक दिन अवसर पाकर इसने राजा की हत्या कर दी और जंगल में एक पीपल के नीचे गाड़ दिया।
अकाल मृत्यु होने के कारण राजा की आत्मा प्रेत बनकर पीपल पर रहने लगी। मार्ग से गुजरने वाले हर व्यक्ति को आत्मा परेशान करती।
राजा को प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने के लिए एक ऋषि ने स्वयं अपरा एकादशी का व्रत रखा और द्वादशी के दिन व्रत पूरा होने पर व्रत का पुण्य प्रेत को दे दिया। एकादशी व्रत का पुण्य प्राप्त करके राजा प्रेतयोनि से मुक्त हो गया और स्वर्ग चला गया।
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