अखिल भारतीय सराक जैन समिति कुंडहित इकाई द्वारा पारसनाथ विवाद को लेकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नाम प्रखंड विकास पदाधिकारी श्रीमान मरांडी को एक ज्ञापन सौंपा। समाज के लोगों ने मांग करते हुए कहा कि स्थानीय स्तर और राज्य स्तर पर पारसनाथ को लेकर जिन भी समितियों का गठन हो उसमें सराक जैन समाज का भी प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाए। ज्ञापन में उल्लेख किया गया है कि सराक जाति झारखंड की मूलवासी जनजाति है। सराक समाज को प्राचीन मूलवासी जैन जाति के रूप में मान्यता प्राप्त है।
सराक जैन समाज के लोगों को जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ भगवान के प्रारंभिक शिष्यों का वंशज माना जाता है। सराक जाति के लोगों के गोत्र देवता जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकार आदिदेव हैं। झारखंड में मुख्यतः बोकारो, धनबाद, जामताड़ा, सिंहभूम, सरायकेला, खरसावां, खूंटी, रांची, दुमका एवं गिरिडीह जिले के सराक जैन समाज के लोग प्राचीन समय से रहते आए हैं। इसके अलावा झारखंड से लगे बंगाल और उड़ीसा के दर्जनों जिलों में भी सराक समाज के लोगों का अधिवास है।
शिखरजी महातीर्थ को लेकर उत्पन्न विवाद के संदर्भ में सराक समाज का मानना है कि शिखरजी पारसनाथ जैनियों का पवित्र तीर्थ स्थल है। साथ ही यह आदिवासी समाज के लिए पवित्र मरांग बुरु भी है पारसनाथ पर्वत क्षेत्र और आसपास के अन्य इलाकों में आदिवासी और मूलवासी समाज के लोग एक साथ सद्भाव के साथ जीवन यापन करते आए हैं।
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