झारखंड कर्मचारी चयन आयोग (JSSC) द्वारा ली जाने वाली मैट्रिक और इंटर स्तर की प्रतियोगिता परीक्षाओं में उर्दू, भोजपुरी, मगही, अंगिका, बांग्ला और उड़िया भाषा को क्षेत्रीय भाषा की सूची में शामिल किया गया है। सभी 24 जिलों में उर्दू, 11 में बांग्ला, छह में मगही, पांच में अंगिका, चार में भोजपुरी और तीन जिलों में उड़िया भाषा इस सूची में है। इसके बाद राज्य में भाषा विवाद ने तूल पकड़ लिया है। जगह-जगह आंदोलन हो रहे हैं। जनभावनाओं से जुड़े इस मुद्दे पर राजनीति भी शुरू हो गई है। तर्क दिया जा रहा है कि इससे बाहरी युवाओं को नौकरी मिल जाएगी और स्थानीय युवा इससे वंचित हो जाएंगे। लेकिन वास्तव में सारा खेल कुरमी वो बैंक का है, क्योंकि राज्य में इनकी आबादी करीब 18 प्रतिशत है। इस विवाद का सबसे ज्यादा असर धनबाद और बोकारो में है। दरअसल कोयलांचल के विधानसभा क्षेत्रों में कुरमी वोटर निर्णायक हैं।
डुमरी, गोमिया, बेरमो, बोकारो, चंदनकियारी, सिंदरी, निरसा, धनबाद, झरिया, टुंडी, और बाघमारा इलाके में कुरमी वोटरों का विशेष प्रभार है। आंदोलन में भी कुरमी युवाओं की संख्या बहुतायत में है। हालांकि अधिकांश राजनीतिक पार्टियां तो अपना स्टैंड साफ नहीं कर रही है, लेकिन उस क्षेत्र के नेता नफा-नुकसान देखते हुए आवाज उठा रहे हैं। शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो ने मुख्यमंत्री से हस्तक्षेप की मांग की है। उनका कहना है कि धनबाद-बोकारो के किसी भी गांव में भोजपुरी-मगही नहीं बोली जाती। आजसू भी इसी तर्क के साथ सरकार के फैसले पर सवाल उठा रही है।
पार्टियों का स्टैंड : भाजपा पत्ते नहीं खोल रही तो कांग्रेस किसी की नाराजगी नहीं चाहती
झामुमो : पार्टी में ही छिड़ा है घमासान
शिक्षा मंत्री धनबाद-बोकारो से क्षेत्रीय भाषा से भोजपुरी-मगही को हटाने पर अड़े हैं। वहीं पेयजल मंत्री मिथिलेश ठाकुर पलामू-गढ़वा में इसे रखना चाहते हैं, क्योंकि नागपुरी के साथ यहां भोजपुरी-मगही भी बोली जाती है।
मायने: सरकार ने सोच-समझकर इस फैसले को लागू किया। लेकिन उनकी ही पार्टी के शिक्षा मंत्री विरोध में उतर आए। इससे सरकार में असमंजस की स्थिति बन गई और पार्टी में घमासान मच गया।
आजसू : क्षेत्र में प्रभाव जमाने की कोशिश
पार्टी का स्टैंड साफ है। वे मगही-भोजपुरी को हटाने का दबाव बना रहे हैं। पार्टी प्रमुख सुदेश महतो का कहना है कि किसी भाषा को थोपा नहीं जा सकता। भाषाई घुसपैठ को आजसू पार्टी बर्दाश्त नहीं करेगी।
मायने : आजसू का कुरमी बहुल अलग-अलग क्षेत्रों में प्रभाव है। लेकिन पार्टी प्रमुख सुदेश महतो इस फैसले का विरोध कर कुरमी समाज का सबसे बड़ा नेता बनने का मौका देख रहे हैं।
कांग्रेस : सबको खुश रखने का प्रयास
कांग्रेस सबको खुश रखने की कोशिश में है। प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद कहते हैं कि पार्टी सरकार के फैसले के साथ है। पर किसी समुदाय की भावना आहत करना नहीं चाहती। चिंतन शिविर में इस पर विचार होगा।
मायने : कांग्रेस खुद इस मामले में फंसी हुई है। क्योंकि भोजपुरी, मगही और अंगिका भाषियों का बड़ा वर्ग पार्टी के साथ है। उसे नाराज नहीं करना चाहती, लेकिन वह सरकार को भी खुश रखना चाहती है।
भाजपा : सरकार को घेरने का मौका
भाजपा पत्ते नहीं खोल रही है। जबकि उनकी पार्टी के पूर्व सांसद रवींद्र राय पर हमला हो चुका है। राय का कहना है कि सरकार को नौकरी नहीं देनी है, इसलिए भाषा के नाम पर लोगों को लड़ा रही है।
मायने : भाषा को लेकर आंदोलन में वही लोग शामिल हैं, जो पहले झामुमो के समर्थक थे। ऐसे लोगों की झामुमो से बढ़ती नाराजगी भाजपा को रास आ रही है। उसे सरकार को घेरने का अच्छा मौका मिल रहा है।
झारखंड में कुल आबादी का 26 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति, कुरमी दूसरे नंबर पर
एक अनुमान के अनुसार राज्य में सबसे ज्यादा 26% आबादी अनुसूचित जनजाति की है। वहीं 18% के साथ कुरमी दूसरे नंबर पर हैं। वैश्य समुदाय की आबादी भी 12% के करीब है। कोयलांचल के डुमरी, गोमिया, बेरमो बोकारो, चंदनकियारी, सिंदरी, निरसा, धनबाद, झरिया, टुंडी और बाघमारा में कुरमी की आबादी ज्यादा है, इसलिए आंदोलन भी इसी क्षेत्र में हो रहा है।
राज्य में क्षेत्रीय भाषा लागू करने के नफा-नुकसान
स्थानीय लोग जुड़ेंगे : सरकार की सोच है कि नियुक्त होने वाले कर्मचारी अपने जिले की भाषा से अवगत होंगे। इससे वे स्थानीय लोगों से सीधे जुड़ पाएंगे। उसी जिले के युवकों को नौकरी का मौका मिलेगा।
पर यहां परेशानी : जिन क्षेत्रीय भाषाओं पर विवाद है, वह राज्य की मूल भाषा नहीं है। ऐसे में उस जिले के सभी युवा क्षेत्रीय भाषाओं के जानकार नहीं होते। उन्हें परेशानी आएगी। नौकरी में ऐसे लोगों की संख्या कम हो सकती है।
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