राष्ट्रपति द्रौपदी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी (IIIT) रांची के दूसरे दीक्षांत समारोह में शामिल हुई। समारोह जेयूटी सभागार नामकुम में हुआ। यहां 109 छात्रों को राष्ट्रपति ने उपाधि दी। संबोधन की शुरुआत करते हुए राष्ट्रपति ने कहा, पदक विजेता 10 स्टूडेंट्स में आठ लड़कियां शामिल हैं। लड़कियों ने बता दिया है कि वो कम नहीं है। इसलिए उनके सम्मान में तालियां होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि पदक विजेताओं की संख्या में छात्राओं की संख्या अधिक होना इस संस्थान में छात्राओं की संख्या बढ़ाएगी। देंगी। मुख्य अतिथि के रूप में देश राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन शामिल रहे।
इससे पहले राष्ट्रपति खूंटी में स्वंय सहायका समूर की महिलाओं को संबोधित किया। उन्होंने कहा, महिला होना या आदिवासी समाज में पैदा होना कोई बुराई नहीं है। हमारे देश में महिलाओं के योगदान के अनगिनत प्रेरक उदाहरण हैं। महिलाओं ने सामाजिक सुधार, राजनीति, अर्थव्यवस्था, शिक्षा, विज्ञान और अनुसंधान, व्यवसाय, खेल और सैन्य बलों और कई अन्य क्षेत्रों में अमूल्य योगदान दिया है। गुरुवार को झारखंड के खूंटी में केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा आयोजित एक महिला सम्मेलन में भाग लिया। इस मौके पर वे महिलाओं को संबोधित कर रही थीं। राष्ट्रपति मुर्मू के झारखंड दौरे का आज दूसरा दिन है।
राष्ट्रपति ने कहा कि किसी भी क्षेत्र में सफल होने के लिए अपनी प्रतिभा को पहचानना और दूसरों के पैमाने पर खुद को आंकना महत्वपूर्ण नहीं है। उन्होंने महिलाओं से अपने भीतर की असीम शक्ति को जाग्रत करने का आग्रह किया। उन्होंने यह भी कहा कि मैं ओड़िशा से जरूर हूं लेकिन मेरी रगों में झारखंड का खून है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने झारखंड के आदिवासी, राज्य में महिलाओं की स्थिति और यहां से अपने जुड़ाव को लेकर विस्तार से अपनी बात रखी है। उन्होंने कहा, आदिवासी महिलाओं के जीवन में सुधार उनकी तरक्की देखकर मुझे बेहद खुशी होती है। झारखंड राज्य को अलग हुए 22 साल हो गए। अधिकांश सीएम आदिवासी हुए। 28 से अधिक एमएलए आदिवासी हैं। फिर भी झारखंड को जितनी तरक्की करनी चाहिए थी, उतना नहीं हो सका। इसके बारे सोचने की जरूरत है। । लोगों को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा, सरकार 100 कदम चल रही है तो आपको भी 10 कदम बढ़ाना होगा। सरकार ही सकुछ कर दे, ऐसा नहीं होता है। उन्होंने अपनी कहानी बताने के दौरान कहा कि बचपन में हम वनोपज जमा करते थे। तब उसकी कीमत पता नहीं चलती थी। आज वही वनोपज को बाजार मिल रहा है। यह देख कर अच्छा लगता है। बिरसा मुंडा की धरती को नमन करते हुए कहा कि इतने कम उम्र में उनका देश को अमूल्य योगदान है। हमे उन्होंने कई चीजें दे रखी हैं, जिसका अनुसरण करना है।
आदिवासी महिलाएं मजबूत हो रही हैं - राज्यपाल
कार्यक्रम में राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने कहा, मुझे राज्यपाल बनने के बाद उलिहातू जाने और बिरसा मुंडा के परिजनों से मिलने का अवसर मिला। बिरसा मुंडा ने जनजातिय संस्कृति की रक्षा की। लोग उन्हें भगवान मानते हैं। उन्होंने जो काम किया वह समाज के लिए प्रेरणादायक हैं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का राज्य के प्रति विशेष लगाव का जिक्र करते हुए राज्यपाल ने कहा, राष्ट्रपति महोदया को इस राज्य से विशेष लगाव है। राज्यपाल रहते हुए उन्होंने महिलाओं से बात करने और उन्हें मजबूत करने का काम किया है। स्वंय सहायता समूह और आदिवासी महिलाएं मजबूत हो रही हैं। मैंने भी राज्यपाल होते हुए यह महसूस किया है।
कार्यक्रम में में जनजातीय कार्य मंत्री श्री अर्जुन मुंडा, जनजातीय कार्य राज्य मंत्री श्रीमती रेणुका सिंह सरूता, झारखंड के माननीय राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन और झारखंड के माननीय मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन भी मौजूद है।
हेमंत सोरेन ने जताई पलायन और आदिवासियों के अस्तित्व की चिंता
सीएम हेमंत सोरेन ने खूंटी में कार्यक्रम के दौरान राष्ट्रपति के सामने पलायन पर अपनी चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा आदिवासियों की स्थिति में अभी भी सुधार नहीं हो रहा है। राज्य से पलायन के आंकड़ों को देख चिंतित हो जाता हूं। राज्य अलग होने के बीस साल बाद भी आज भी कोई ऐसा सार्थक प्रयास हमारे यहां के आदिवासियों के बीच नहीं हो पाया। सभी काम सिर्फ कागजों पर हो रहे हैं। यहां कोई संगठन सक्रिय रूप से काम नहीं कर रहा है। हम कहीं मुख्य अतिथि बन कर जाएं, तो अधिकाारी स्टॉल लगा कर बस दिखा देते है लेकिन वस्तुस्थिति कुछ और होती है। अधिकारी झांकी दिखाते हैं लेकिन हम इस झांकी के पीछै देखने की कोशिश करते हैं।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अर्जुन मुंडा की तारीफ करते हुए कहा, यह मंत्री रहेंगे, तो तब तक झारखंड को लाभ मिलेगा। सिद्धू कान्हू वनोपज संघ गठित किया है। राज्य में 225 एसएचजी काम कर रहे हैं। राज्य में 14 हजार से अधिक गांव वनोपज से सीधा जुड़ा हुआ है। लेकिन इन वनोपाज की सही कीमत नहीं मिलती है। बिचौलिये हावी है। एमएसपी भी चिंता का विषय है। लाह का एमएसपी 380 से जबकि बाजार में हजारों में बिकता है। सिद्धू कान्हू फेडरेशन के माध्यम से सभी वनोपज को एकत्रित कर बाजार मूल्य के बराबर पैसे दिए जाएंगे। सरना धर्म कोड, हो मुंडारी कुडूख को आठवीं अनुसूची में शामिल करना सहित आदिवासियों की कई मांगे हैं, जिन्हें केंद्र पूरा करे, तो आदिवासियों का अस्तित्व बचेगा।
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