झारखंड आज अपना 22वां स्थापना दिवस मना रहा है। इस आयोजन को खास और ऐतिहासिक बना दिया राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने। पहली बार कोई राष्ट्रपति भगवान बिरसा मुंडा की जन्मस्थली खूंटी जिले के उलिहातू में पहुंचा। द्रौपदी मुर्मू ने उलिहातू पहुंचकर धरती आबा को नमन किया। उनकी जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि दी। इस दौरान उन्होंने बिरसा मुंडा के वंशजों से भी मुलाकात की, उनसे स्थानीय भाषा में बातें की।
भगवान बिरसा के वंशज आज भी कच्चे मकानों में रहने को मजबूर हैं। उन्होंने राष्ट्रपति से पक्के मकान बनवाने की गुहार लगाई है। रांची से हेलीकॉप्टर से राष्ट्रपति खूंटी के उलिहातू पहुंची थीं। उनके साथ झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी थे। सभी ने बिरसा मुंडा को श्रद्धांजलि दी। राष्ट्रपति का कार्यक्रम यहां आधे घंटे का था। कार्यक्रम में शामिल होने के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू मध्य प्रदेश रवाना हो गईं।
इस दौरान केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री अन्नपूर्णा देवी और झारखंड की महिला, बाल विकास और समाज कल्याण मंत्री जोबा मांझी ने उलीहातू में भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि दी।
इससे पहले झारखंड पहुंचने के बाद रांची एयरपोर्ट पर राष्ट्रपति का राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने स्वागत किया। झारखंड के लिए आज का दिन बेहद खास है। झारखंड ने अलग राज्य के लिए आज की तारीख चुनी थी। 15 नवंबर साल 2000 को झारखंड अलग हुआ। भगवान बिरसा मुंडा की जयंती के साथ राज्य स्थापना दिवस का जश्न भी मनाया रहा है।
राष्ट्रपति बनने के बाद पहली बार मुर्मू का झारखंड दौरा
राष्ट्रपति बनने के बाद द्रौपदी मुर्मू पहली बार झारखंड आईं हैं। राज्यपाल के तौर पर उनका इस राज्य से गहरा रिश्ता रहा है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को इस राज्य की पहली महिला राज्यपाल होने का गौरव प्राप्त है। द्रौपदी मुर्मू का झारखंड में छह साल एक माह अठारह दिनों का कार्यकाल रहा। वे इस दाैरान विवादों से बेहद दूर रहीं।
बतौर कुलाधिपति द्रौपदी मुर्मू ने अपने कार्यकाल में झारखंड के विश्वविद्यालयों के लिए चांसलर पोर्टल शुरू कराया। विश्वविद्यालयों के कॉलेजों के लिए एक साथ छात्रों का ऑनलाइन नामांकन शुरू कराया। विश्वविद्यालयों में यह नया और पहला प्रयास था। राज्य राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के नाम ऐसे कई बेहतरीन फैसले दर्ज हैं। झारखंड आने का मुख्य उद्देश्य है भगवान बिरसा मुंडा को श्रद्धांजलि अर्पित करना। इस यात्रा के दौरान राष्ट्रपति के साथ राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी होंगे।
टाना भगत को भी 12 किलोमीटर पहले रोका
झारखंड के कई जिलों से लगभग 30 की संख्या में हर साल टाना भगत पहुंचते हैं। इस बार भी टाना भगत पहुंचे हैं। उन्हें भी भगवान बिरसा मुंडा की जन्मस्थली उलिहातू से 12 किमी पहले रोक दिया गया है। टाना भगत विश्राम पूर्ति ने कहा, हम हर साल आते हैं, भगवान बिरसा मुंडा की पूजा करते हैं जल चढ़ाते हैं। इस बार हमें रोक दिया गया है।
सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम, उलिहातू से 12 किमी पहले पत्रकारों को रोका गया
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के झारखंड दौरे के मद्देनजर सुरक्षा के पुख्ता इतंजाम किये गये हैं। उलिहातू में कार्यक्रम की कवरेज करने पहुंचे पत्रकारों को सुरक्षा की दृष्टि से कार्यक्रम स्थल से 12 किमी पहले ही रोक दिया गया है। राष्ट्रपति के कार्यक्रम में शामिल होने वाले लोगों को विशेष पास दिया गया है।
भगवान की तरह पूजे जाते हैं बिरसा मुंडा
बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 के दशक में छोटे किसान के गरीब परिवार में हुआ था। बिरसा 19वीं सदी के प्रमुख आदिवासी जननायक थे। उनके नेतृत्व में मुंडा आदिवासियों ने उलगुलान आंदोलन को अंजाम दिया। बिरसा को मुंडा समाज के लोग भगवान के रूप में पूजते हैं। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन किया। लगान माफ करने को लेकर मुंडा समाज को एकजुट किया। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाने के कारण उन्हें गिरफ्तार किया गया था। बिरसा ने अपनी अंतिम सांसें 9 जून 1900 को रांची कारागार में लीं थी।
अपने जीवन काल में ही एक महापुरुष का दर्जा पाया। उन्हें उस इलाके के लोग 'धरती बाबा' के नाम से पुकारा और पूजा जाता था। उनके प्रभाव की वृद्धि के बाद पूरे इलाके के मुंडाओं में संगठित होने की चेतना जागी। आज भी बिहार, ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में बिरसा मुण्डा को भगवान की तरह पूजा जाता है।
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