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बड़ा हो कर क्या बनूंगा, यह सपना हमने नहीं देखा था सपना देखने का मौका भी नहीं मिला ना। क्योंकि पिता के निधन के बाद मां के लिए इकलौता सहारा मैं हूं। घर चलाने के लिए कुछ कमा सकूं इसके लिए पढ़ाई कर रहा था। लेकिन पुलवामा में जब घटना घटी। टीवी और अखबारों में लगातार समाचार आने लगे तो बस मैं सोच लिया कि मैं भी अब आर्मी बनूंगा और अपने देश के ऊपर आंख दिखाने वाले लोगों से जमकर लड़ूंगा।
इसके लिए मुझे पढ़ाई भी करना है। यह तभी संभव है जब मैं दो पैसा किसी तरह कमा सकूं। इसलिए मैं आर्मी बनने का सपना को साकार करने के लिए साइकिल लेकर सड़क पर निकल गया हूं और अखबार बेचना शुरू कर दिया है। यह कहना है छठी क्लास में पढ़ाई कर रहा 10 साल के बालक ऋषि राज का। ऋषि राज शहर के कोरा तीन नंबर थाना चौक का रहने वाला है। उसके सिर से पिता का साया भी हट चुका है। घर में मां है तीन बहनों की शादी हो गई है। एक बहन घर पर है।
ऋषिराज बोला-लगता है जल्दी बड़ा हो जाऊं और देश के लिए लड़ूं
ऋषि ने कहा हमको दो फायदा हो रहा है अखबार भी बेच लेते हैं और साइकिल चलाने से शरीर भी मजबूत हो रहा है। शरीर को ऐसा बनाएंगे कि आर्मी में बहाल हो कर रहेंगे। कहा की सीआरपीएफ कॉलोनी तरफ ही अधिकतर अखबार बेचने आता हूं। यहां सीआरपीएफ के लोगों को जब वर्दी में देखता हूं तो हमें भी लगता है कि मैं जल्दी बड़ा हो जाऊं और मैं भी इनकी तरह वर्दी पहन कर देश के लिए लड़ूं।
स्कूल बंद है इसलिए दोपहर तक बेचता हूं: ऋषि राज झील रोड में कैफेटेरिया के आसपास और सीआरपीएफ कॉलोनी के करीब कैरियर में अखबार दबाए साइकिल को दौड़ा रहा था। वह सीआरपीएफ चौक के पास खड़े कुछ लोगों के पास पहुंचा। उसने अपनी दास्तान अपने सपने और उसके ऊपर पिता के निधन के बाद आई जिम्मेदारी को रखा।
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