पाएं अपने शहर की ताज़ा ख़बरें और फ्री ई-पेपर
Install AppAds से है परेशान? बिना Ads खबरों के लिए इनस्टॉल करें दैनिक भास्कर ऐप
आज नर्मदा जयंती मनाई जाएगी। रूपमती महल और बाज बहादुर महल के समीप मांडू का रेवा कुंड नर्मदा परिक्रमा में विशेष महत्व रखता है। यहां के रेवा कुंड में स्नान और जलाचमन करने से ही परिक्रमा पूरी हाेती है। इसके लिए सालभर परिक्रमावासियाें का आना जाना लगा रहता हैं। रानी रूपमती की तपस्या के बाद मां नर्मदा ने दर्शन दिए थे। बाज बहादुर ने जब खुदाई कराई ताे शंख, शिवलिंग और नर्मदा का पानी निकला था। इसके लिए कुंड का निर्माण कराया गया था।
गाइड राजू गोरासिया और शोधकर्ता विनायक साकले ने बताया रानी रूपमती नर्मदा दर्शन के बाद ही अन्न, जल ग्रहण करती थी। नर्मदा परिक्रमा में यह कुंड विशेष महत्व रखता है। इस कुंड में गहराई से अस्तर का कार्य किया है।
परमारकालीन है इसकी वास्तुकला
कुंड के नीचे जाने की सीढ़िया भी है। इसके निर्माण का कोई शिलालेख नहीं है मगर इसकी वास्तुकला परमारकालीन है। पुरातत्वशास्त्री जीएस यजदानी की सन 1929 में ऑक्सफाेर्ड प्रेस में प्रकाशित रिपोर्ट में भी इसका उल्लेख है। 16 वीं शताब्दी में फारसी लेखक अहमद उल उमरी ने फारसी भाषा में रानी रूपमती पर आधारित कहानियों और काव्यों को सन 1599 में पांडुलिपियों पर फारसी में लिखकर लगभग छब्बीस काव्य रचना का संकलन किया था। जिसे बाद में इंग्लैंड के इतिहासकार एलएम क्रुम्प ने अंग्रेजी में अनुवाद कर द लेडी ऑफ लोटस पुस्तक का प्रकाशन किया था।
इसमें उल्लेखित है कि 17 वीं शताब्दी में रानी रूपमती नर्मदा दर्शन करने के बाद ही अन्न जल ग्रहण करती थी। मालवा सल्तनत के समय इस कुंड का पुनः निर्माण किया गया था। इसके दक्षिण छोर पर पहाड़ी है। जिसकी ढाल से पानी उतारकर एक झरने के रूप में बहता है। उत्तरी छोर पर 73 फीट चौड़ा नाला है। इसमें एक पुरानी ईंट की दीवाल भी है। बाजबहादुर महल के मुख्य प्रवेश द्वार के सामने आज भी प्राचीन कृतिम जल प्रणाली के अवशेष है।
पॉजिटिव- आज समय कुछ मिला-जुला प्रभाव ला रहा है। पिछले कुछ समय से नजदीकी संबंधों के बीच चल रहे गिले-शिकवे दूर होंगे। आपकी मेहनत और प्रयास के सार्थक परिणाम सामने आएंगे। किसी धार्मिक स्थल पर जाने से आपको...
Copyright © 2020-21 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.