धनबाद अग्निकांड में हुई 14 लोगों की मौत ने राज्य के दूसरे बड़े शहरों के लिए भी सवाल खड़ा किया है कि इस तरह के हादसे से निपटने के लिए राज्य के दूसरे बड़े शहर कितने तैयार हैं, प्रशासन कितना तैयार है। रांची में 20 जनवरी को चर्च कॉम्प्लेक्स की एक दुकान में आग लगी। एक सप्ताह में दूसरी घटना थी जब इस कॉम्प्लेक्स की दुकान में आग लगी थी।
आग पर काबू पाने पहुंची दमकल का पाइप ही फटा निकला था।
इस तरह की घटना को लेकर अग्निशमन विभाग कितना गंभीर है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 20 जनवरी को रांची चर्च कॉम्प्लेक्स में लगी आग पर जब काबू पाने के लिए दमकल पहुंचा तो गाड़ी की पाइप ही फटी हुई निकली। एक दमकल की गाड़ी का पानी ही खत्म हो गया। इस हादसे में किसी की जान नहीं गयी लेकिन इस तरह के हादसे से निपटने के लिए अग्निशमन विभाग की तैयारी की पोल जरूर खुल गयी।
कई बड़ी इमारते दे रही हैं हादसे को न्योता
राज्य की राजधानी में अगर धनबाद की तरह हादसा हुआ तो क्या विभाग इतना तैयार है कि आसानी से इस तरह के हादसों से निपट सके। राजधानी के तीन हजार भवनों और मॉल के पास फायर डिपार्टमेंट का एनओसी है, पर हकीकत में यहां पर फायर फाइटिंग की सुविधाएं कई इमारतों में ना के बराबर दिखती है। एनओसी के साथ-साथ भवनों का नक्शा भी नगर निगम पास कर देता है। रांची की कई बड़ी इमारतों में इस तरह के हादसों से निपटने की बिल्कुल तैयार नहीं है। शहर के कई बड़े मॉल, बड़ी इमारते इस तरह के हादसों से निपटने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं है। ना ही किसी विभाग ने इन भवनों की जांच की है और ना ही इस तरह की इमारतों पर कोई कार्रवाई हो रही है। अगर धनबाद की तरह हादसा इन भवनों में हो तो रेस्क्यू ऑपरेशन चलाना मुश्किल होगा।
एनओसी मिल जाती है कोई जांच करने नहीं आता
इन बड़ी इमारतों को बनाने की एक प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया के तहत विभाग से इजाजत लेनी होती है। इसमें विभाग को यह बताना होता है कि इस तरह के हादसों से निपटने के लिए बिल्डिंग में क्या उपाय हैं। एनओसी के लिए फायर डिपार्टमेंट के पास भेजा जाता है. वहां से एनओसी मिलने के बाद जब फाइल निगम के पास आती है, तो वह इसे मंजूरी मिलती है। जब इमारत तैयार होती है तो फायर फाइटिंग के मानकों का निरीक्षण करने कोई नहीं जाता है। यह एक बड़ी वजह है कि इमारत में इस तरह के हादसों से निपटने के लिए कोई ठोस उपाय नहीं होते। कागज में तो इस तरह के हादसों से निपटने की पूरी तैयारी दिखा दी जाती है लेकिन इन ऊंची इमारतों के पीछे की सच्चाई कुछ और होती है।
ऊंची इमारतों में खतरा भी उतना ही ऊंचा
राजधानी रांची में ऊंची इमारते बन रही हैं। नगर निगम इसकी इजाजत दे रहा है लेकिन इन ऊंची इमारतों में हादसा हो तो क्या हमारी तैयारी इतनी है कि हम इस ऊंचाई को छू सकें। आंकड़ों पर नजर डालेंगे तो पायेंगे रांची में पिछले पांच सालों में कई ऊंची बिल्डिंग बनी है। 15 बिल्डिंग ऐसी हैं, जिन्हें 12 मंजिल से ऊपर बनाने की अनुमति दी गयी है. इसमें से सात कांके रोड, लालपुर चौक में दो और अरगोड़ा चौक व कटहल मोड़ मार्ग में छह इमारत हैं। लालपुर बाजार के समीप स्थित बिल्डिंग हैं की ऊंचाई 22 मंजिला है।
हम कितने तैयार हैं कितनी मजबूत है फायर ब्रिगेड
राजधानी में चार फायर ब्रिगेड स्टेशन हैं। इनमें धुर्वा , डोरंडा, आड्रे हाउस के पास और पिस्का मोड़ में। इन चारों के पास 15 बड़ी तथा चार छोटी फायर ब्रिगेड की गाड़ियां है जिससे वह शहर के किसी भी बड़े खतरे से निपटने की कोशिश करती हैं। 15 साल पुराना एक हाउड्रोलिक प्लेटफार्म है, जो 14 मंजिला बिल्डिंग तक लोगों की रेस्क्यू कर सकता है। सवाल है कि अगर किसी 15 मंजिला से ऊंची इमारत पर हादसा हुआ तो क्या होगा
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